गुमनाम की गजल

1933 में बेटाबर खुर्द, जमानियां में जन्मे श्री हरिवंश पाठक 'गुमनामÓ हिंदी, भोजपुरी, उर्दू में समान अधिकार से लिखते हैं। हाल ही में उनका तीनों में भाषाओं में एक-एक संग्रह प्रकाशित हुआ है। यहां उनकी एक गजल पेश की जा रही है। बाद में उनकी भोजपुरी व हिंदी कविताओं को भी प्रस्तुत किया जाएगा। प्रस्तुत गजल यदि पसंद आए तो उन्हें इस नंबर 09415809541 पर जरूर बधाई दें।
-संजय कृष्ण



सा$गरे-लब गुलाबी की खातिर
मेरे अरमान कुछ कम नहीं थे।
सिर्फ तुमने न पर्दा उठाया
मरने वालों में क्या हम नहीं थे॥

रात थी, चांद था, चांदनी थी
रात-रानी महकने लगी थी।
कल बहुत रंग पर थीं बहारें
क्या नहीं था मगर तुम नहीं थे॥

बारहा जहर हमने पिए हैं
संग है दिल कि अब तक जिए हैं।
बर्ना बेदर्द बेदिल जहां में
जो सहे हमने गम कम नहीं थे॥

मैं कहीं भूल जाऊं न तुमको
सैकड़ों अह्द तुमने लिए थे।
आज खुद इस तरह भूल जाना
जैसे हम तेरे हमदम नहीं थे॥

बेबसी में बड़ी मुश्किलों से
दर्द के घूंट दिल पी रहा है।
जितने बल पड़ चुके हैं जिगर में
गेसुओं में तेरे खम नहीं थे॥

सैकड़ों प्यार जिसकी जबीं पे
मुद्दतों तुमने बा-लब लिखे हैं
इश्क का वह खतावार शायद
कोई ''गुमनामÓÓ था हम नहीं थे॥