आदिवासी लेखन का कोई प्रवक्ता नहीं : सूरज प्रकाश

संजय कृष्ण : हिंदी के जाने-माने कथाकार, अनुवादक, व्यंग्यकार सूरज प्रकाश से मुलाकात इत्तेफाकन हुई, कथाकार रणेंद्र के सौजन्य से। रांची में हैं। रविवार को मुंबई रवाना होंगे। कई मुद्दों पर बातें हुईं। कई संस्मरण सुनाएं। काशी का अस्सी पर बन रही फिल्म के किस्से भी सुनाए।
पूछता हूं, दस करोड़ की आदिवासी आबादी आखिर हिंदी साहित्य में उपेक्षित क्यों है? दलित लेखन हाशिए से केंद्र में स्थापित हो गया, पर आदिवासी लेखन?
उन्हें उनका प्रवक्ता नहीं मिला। शाइस्तगी और ईमानदारी से वे जवाब देते हैं। कहते हैं, आदिवासी समाज को उनका कोई अपना प्रवक्ता नहीं मिला है। दलित लेखन में कई प्रवक्ता हैं। पर, आदिवासी समाज का अपना कोई नहीं है। निर्मला पुतुल दिखाई पड़ती हैं। मधु कांकरिया, राकेश कुमार सिंह, संजीव ने आदिवासी जीवन पर कहानियां-उपन्यास लिखे हैं। पर वह आब्र्जवेशन ही है। आदिवासी साहित्य की उपेक्षा एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि उन्हें अभी तक मंच नहीं मिला। दलित लेखन के पास मंच है, अकादमी है, रचनाकार हैं, संपादक हैं। पर, आदिवासी समाज के पास इनका अभाव है। यह चिंताजनक है।
चालीस के करीब कहानियां लिख चुके सूरज प्रकाश कहानी के क्षेत्र में सक्रिय वर्तमान पीढ़ी से आश्वस्त हैं। आश्वस्त इस बात को लेकर भी हैं कि उनके पास नई भाषा है, विश्लेषणात्मक नजरिया है, नए विषय हैं। वे भावुक नहीं हैं। बहुत मोह नहीं पाले हुए हैं। हालांकि सूरज जी मानते हैं कि वे थोड़ी हड़बड़ी में हैं। पुरस्कार और मान्यता को लेकर भी कुछ ज्यादा जल्दबाजी उनमें है। यह उनके लिए घातक है। सृंजय का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उन्हें तब बहुत उछाला गया, पर आज कहां हैं? तो इस प्रवृत्ति से युवा लेखकों को बचना चाहिए।
'लेखन बहुत बड़ी शक्ति देता है। छोटे पद या ओछेपन से मुक्ति दिलाता हैÓ-के कायल सूरज एक घुमक्कड़ इंसान हैं। हिमाचल प्रदेश के अपने घुमक्कड़ी का संस्मरण सुनाते हैं। कुल्लू घाटी में सिकंदर के भगोड़े सैनिकों का गांव है मलाना। दस हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में भारत का कानून नहीं, उनका अपना कानून चलता है। गांव के दो हिस्से हैं, जो आपस में शादियां करते हैं। कोई विवाहित महिला किसी दूसरे पुरुष के साथ रहना चाहे तो वह रह सकती है। इसके बदले वह जिस पुरुष के साथ वह रहने चली जाती है, वह उसके पहले पति का कुछ रुपये दे देता है। वहां कई अजीब रिवाज हैं। हालांकि धीरे-धीरे शिक्षा की रोशनी उनके अंधेरे जिंदगी को प्रकाशित कर रही है।
सूरजजी ने अनुवाद भी काफी किए हैं। चाल्र्स डार्विन व चार्ली चैपलिन की आत्मकथा। गांधी के बड़े बेटे हरिलाल गांधी की जीवनी उजाले की ओर का अनुवाद भी छप रहा है। गांधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग का अनुवाद अभी-अभी खत्म किया है। जार्ज आर्वेल, गैब्रियल गार्सिया मार्खेज की रचनाओं को भी हिंदी में उपलब्ध कराया है। मूलत: पंजाबी भाषी सूरज प्रकाश ने गुजराती से भी काफी अनुवाद किए हैं। गांधी की आत्मकथा के अनुवाद को लेकर कहते हैं कि हर युग के पाठक को ताजा अनुवाद चाहिए। आज की भाषा पहले की भाषा से अलग हैं। हमें आज के मुहावरे में बात करनी चाहिए। चलते-चलते चार्ली चैप्लिन का एक वाक्य सुनाते हैं, 'मैं बरसात में भिंगते हुए रोता हूं, ताकि कोई मेरे आंसू न देख ले।Ó