कैनवस पर झांकते बुद़ध

पायल सोनी संकोची हैं। अपने बारे में कुछ नहीं बतातीं। पर उनका काम बोलता है। कोमल उंगलियां जब ब्रश पकड़ती हैं तब कोई जीवंत आकृति कैनवस पर उभर जाती है। पेंटिंग बचपन की आदत है। घर का माहौल भी कुछ कला-कला जैसा था। सो, स्कूल में मौका मिला। जब अवार्ड मिला तो हौसला भी बढ़ा। तब, प्रशिक्षण की चिंता हुई। रांची के ही मनोज सिन्हा से कला का प्रशिक्षण लिया। रंग और रेखाओं के महत्व को समझा। हर रंग अपना दर्शन है, उसकी पहचान है, इसे बखूबी जाना। इसी के साथ बीए भी पूरा किया। पिता के आकस्मिक निधन से मन को और मजबूत किया। परिस्थितियों से लडऩा सीखा। हिम्मत नहीं हारी। पिता ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे। लेकिन मां ने साथ दिया। आर्थिक तंगी तो थी ही फिर भी पुणे से एनिमेशन का कोर्स किया। कोर्स करने के बाद वहीं जॉब भी मिल गया। बतौर कैरेक्टर डिजाइन काम करना शुरू कर दिया। काम आगे बढ़ा तो खुद प्रोडक्शन हाउस खोल दिया। कई उतार-चढ़ाव भी आए। संघर्ष जारी रहा। बहन ने भी साथ दिया। इसके बाद कई प्रोजेक्ट मिले। काम किया। महाभारत, रामायण, हनुमान आदि के एनिमेशन बने। पर परिस्थितियां एक जैसी नहीं रहती। समय भी परीक्षा लेता है। सो, एक बार फिर रांची आना पड़ा। पेंटिंग का सफर फिर शुरू हुआ। कई प्रदर्शनियों और कार्यशालाओं में भाग लिया। रांची, जमशेदपुर, एसपीटीएन, कला-संस्कृति विभाग, पलाश आदि की कार्यशालाओं में भाग लिया। बुद्ध की एक चर्चित पेंटिंग बनाई, जिसे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भेंट किया। रांची के ही मशहूर कलाकार प्रवीण कर्मकार से भी सीखा। सीखने का क्रम जारी है। 
पर, पायल की पेंटिंग देखने से लगता है हम किसी परिपक्व कलाकार के काम को देख रहे हैं। आयल, वाटर और एक्रेलिक। तीनों में काम करती हैं। हालांकि अभी एक्रेलिक पर काम कर रही हैं। पायल अमूर्त में विश्वास नहीं करती। इसलिए, वह मूर्त काम करती हैं। बुद्ध प्रिय हैं। इसलिए, बुद्ध कहीं न कहीं उनके कैनवस से झांकते हैं। उनकी ध्यानस्थ मुद्राएं ध्यान खिंचती हैं। इसी तरह, इसे संयोग ही माने, बुद्ध के बाद देश में मूर्ति निर्माण शुरू हुआ, सो, पायल मूर्तियों को भी कैनवस पर साकार करती हैं। हजार-डेढ़ हजार साल पुरानी प्रतिमाएं कैनवस पर आकार ग्रहण करने के बाद सजीव लगने लगती हैं। काम में भी सजीवता दिखाई पड़ती है। एक-एक बारीकी देख सकते हैं। यदि प्रतिमाओं में कोई खरोंच है, दरार पड़ गई है, तो भी बहुत खूबी के साथ दर्शाती हैं। इधर, मध्यप्रदेश में होने वाली कला प्रदर्शनी की तैयारी कर रही हैं। वहां राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनी होनी है। निमंत्रण आ चुका है। सो, पेंटिंग बनाने में लगी हैं। पायल को प्राचीन प्रतिमाओं के साथ आदिवासी जीवन भी प्रिय है। सो, आदिवासी जीवन भी कागजों पर उतरता है।

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