जहां होती थी हर दिन एक शिवलिंग की पूजा


झारखंड में एक ऐसा जिला भी है, जहां हर दिन एक शिव लिंग पूजने की परंपरा है और उतने ही तालाब भी। हालांकि अब न उतने शिवलिंग हैं, न तालाब बचे हैं। उनके अवशेष देख सकते हैं। यही नहीं, कहा जाता है कि गांव के आस-पास महुआ के अनेक पेड़ भी थे। 
यह गांव है गुमला का आंजन, जहां पवन पुत्र हनुमान का जन्म हुआ। अब धीरे-धीरे यह धाम हो रहा है। श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है। अभी संसद में राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने भी इस मामले को उठाया कि क्यों न उसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए। 
झारखंड एक तरह से शैव भूमि माना जाता है। इसलिए यहां प्राय: हरेक गांव में शिवलिंग मिल जाते हैं। टांगी नाथ भी शिव भूमि है और देवघर का तो क्या कहना?
शिव को रूद्र भी कहा जाता है और रूद्र के अवतार हनुमान कहे जाते हैं। आंजन इसी से जुड़ा है। यहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता अंजना और महावीर के दर्शन को आते हैं। राजधानी रांची से 80 किलोमीटर दूर गुमला जिला के टोटो प्रखंड में  आंजन गांव स्थित है और यहीं वह आंजन धाम भी है।
पौराणिक आख्यानों में बहुत सी कहानियां है, पर यहां की लोक स्मृतियों में इंद्र, अहल्या से लेकर आंजन तक कथा जुड़ती है। आदिवासी बहुल इलाके में इनकी लोककथाओं में पूरा इतिहास दर्ज है। इसी विषय पर संतोष किड़ो का उपन्यास आया है, 'द इटरनल मिस्ट्रीÓ। इसमें आंजन ग्राम और हनुमानजी से संबंधित भ्रांतियों को अकाट्य उदाहरणों से पेश किया है। संतोष ने बताया कि शोध करके लिखा गया है। वह बताते हैं कि हनुमान का जन्म जहां हुआ था, वह पहाड़ी गुफा भी है। यहां घने जंगल के बीच पहाड़ पर मंदिर में स्थापित हनुमान जी को गोद लिए माता अंजना की प्रतिमा दुनिया में अकेली ऐसी प्रतिमा है। इसे बजरंगबली का ननिहाल भी माना जाता है। हालांकि दुर्गम पहाड़ी रास्ते की वजह से श्रद्धालुओं ने माता अंजना और बालक हनुमान की प्रतिमा को मूल स्थान से सात किलोमीटर पहले ही स्थापित कर दिया है।
365 शिवलिंग, 365 तलाब और 365 महुआ के पेड़
संतोष बताते हैं कि यहां के स्थानीय लोग इस बारे में जो जानकारी देते हैं, वह यह कि गर्भावस्था के दौरान माता अंजना ने 365 तलाबों में स्नान किया। हर दिन वह एक तालाब में स्नान कर  शिवलिंग पर जल चढ़ाती थीं। 365 जो महुआ के पेड़ थे, उस पेड़ से दातून तोड़ती थीं। हर दिन का यही उनका काम था। इसलिए यहां शिवलिंग, तालाब व महुआ पेड़ बिखरे पड़े हैं। अब बहुत से तालाब पाट दिए गए हैं। महुआ के पेड़ भी कुछ ही बचे हैं और शिवलिंग का भी यही हाल है। राज्य सरकार का अभी ध्यान नहीं गया है। कुछ मारवाड़ी युवा रांची से आंजन धाम की यात्रा करते हैं। कला-संस्कृति और पर्यटन विभाग यहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए सुविधा उपलब्ध कराए तो यह एक बड़ा पर्यटन केंद्र बन सकता है।  

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