प्रो गिरिधारी राम गौंझू
गोपाल दास मुंजाल और बलवीर दत्त दोनों जन्मना पंजाब (अब पाकिस्तान) के पंजाबी भारतीय लेखक, संपादक, पत्रकार, साहित्यकार और राँची निवासी हैं। दोनों जयपाल सिंह से गहरे रूप से जुड़े हुए हैं। गोपाल दास मुंजाल की 16 जनवरी 1955 अंक 3 ‘अबुआ झारखण्ड’ जयपाल सिंह विशेषांक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुई। इसमें आवरण पृष्ठ पर लिखा है - ‘मुण्डा जाति का अनमोल रत्न’ - ‘लाखों लाख झारखण्डियों के मरङ गोमके श्री जयपाल सिंह जिन्होंने राजनीतिक महारथियों को विस्मय चकित सा कर रखा है।’
और बलबीर दत्त की पुस्तक आयी झारखण्ड निर्माण के 17 वर्षों की तपस्या के उपरान्त अप्रेल 2017 में - ‘जयपाल सिंह एक रोमांचक अनकही कहानी (जीवनी, संस्मरण एवं ऐतिहासिक दस्तावेज)’ इसके अनुक्रम के कुछ प्रकरण देखिए वे जयपाल सिंह को किस नजरिए से देखते रहे हैं -
“1. जयपाल सिंह एक रोमांचक अनकही कहानी,
2. एक जीनियस का दिशाहीन सफर
3. जयपाल सिंह का रहस्मय जीवन
4. इतिहास की निष्ठुर शक्ति
5. राँची के लोगों से जयपाल सिंह की शिकायत
6. अनमोल प्रतिभा का दुरूपयोग
7. निष्ठा और साहसपूर्ण प्रतिबद्धता की कमी
8. पुस्तक में बहुत ही कड़वीं सच्चाइयाँ
9. धर्म परिवर्त्तन का डर
10. फाइनल (अमस्टरडम ओलम्पिक हॉकी 1928) में नहीं खेले जयपाल
11. क्यों नहीं बन सके आई. सी. एस. अफसर?
12. ब्रिटेन के प्रति वफादारी
13. मुख्य मंत्री (श्री कृष्ण सिंह-बिहार) से तीखी तकरार-नतीजा सिफर
14. बेकार की कसरत
15. गांधी जी की राँची यात्रा पर हड़ताल का विचित्र आह्वान
(जयपाल सिंह का)
16. कहाँ गाँधी कहाँ जयपाल ?
17. दोनों नावों पर सवार
18. सुभाष बाबू मुझे जेल जाने से डर लगता है!
19. डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद से जयपाल सिंह की लंबी रंजिश
20. बिहारी विरोधी रवैया
21. जयपाल सिंह का मुसलिम लीग का फंड
22. सहयोगियोें की किनाराकशी
23. राँची में जयपाल सिंह के विरूद्ध विशाल भंडा फोड़ रैली।
24. आदिवासियों के विदोहन का आरोप
25. किस्मत की रोटी
26. झारखण्ड या नागपुरी प्रदेश
27. चुनाव में हारते हारते बचे जयपाल सिंह
28. तन कांग्रेस में मन झारखण्ड पार्टी में
29. भूमि अधिग्रहण व विस्थापन - कहाँ थी झारखण्ड पार्टी
30. जयपाल बनाम कार्तिक
31. जिंदगी की दो महागलतियाँ
32. मदिरा प्रेम का अनर्थ
33. नायक पूजा एक अभिशाप
34. जवानी का बुढ़ापा बनाम बुढ़ापे की जवानी
35. नेहरू ने धोखा दिया कितना सच कितना झूठ?
36. जयपाल सिंह को चुनौती: कार्यकर्त्ताओं के नाम हरमन लकड़ा का
खुला-पत्र।
37. झारखण्ड आन्दोलन के साथ विश्वास घात आदि“
लहलहाते धान के खेतों से कोई घास काटता है कोई धान। इन प्रकरणों से लेखक पाठकों को क्या बताना चाहते हैं?
श्री गोपाल दास मुंजाल ने - मरङ गोमके जयपाल सिंह : एक महान व्यक्तित्व की भूमिका में किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है देखिए --
“-
नेतृत्व की अदभुत क्षमता
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महान आदिवासी
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मुण्डा जाति का वीर पुत्र
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महान व्यक्तित्व का केवल रेखा चित्र
श्री मुंजाल ने इस छोटी पुस्तक के आरंभ में जयपाल सिंह के ओलम्पिक हॉकी खेल के वर्णन से किया है --
“सन् 1928 के अमस्टरडम में होने वाले नवें ओलम्पिक में श्री जयपाल सिंह ने हॉकी खेलने में अपने जिस अद्भुत कौशल का प्रदर्शन किया था उसे देख कर खिलाड़ियों का सारा संसार बिस्मित तथा मुग्ध हो उठा था। उस दिन विश्व के महान खिलाड़ियों ने 25 वर्षीय जयपाल को एक स्वर से सारे संसार का सर्वश्रेष्ठ हॉकी खेलने वाला स्वीकार किया। जयपाल भारतीय हॉकी टीम के कैप्टन थे। इनके नेतृत्व में ही उस वर्ष भारत ने हॉकी का विश्व चैम्पियनशिप प्राप्त किया था। उस दिन प्रथम बार सारी दुनिया ने जयपाल सिंह मुण्डा को अद्भुत क्षमता के दर्शन किये थे।“(पृ0 1)
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जिस जाति ने बिरसा भगवान जैसे देश भक्त, वीर तथा त्यागी
नेता को जन्म दिया था, आप उसी मुण्डा जाति के अनमोल रत्न
हैं। (पृ01)
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दृढ़ चरित्र
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नेतृत्व क्षमता
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पढ़ने-लिखने की विलक्षण प्रतिभा
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छात्र-गुरु जन विस्मय भरी प्रशंसा करते थे
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अपने क्लास में सदा प्रथम आता था
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फुटबॉल का कुशल खिलाड़ी
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स्कूली हॉकी टीम का कैप्टन
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सभी हिन्दू मुसलमान ईसाई छात्र अपना नेता मानते थे।
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समाज कल्याण
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जन्म सिद्ध नेता
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दृष्टिकोण विस्तृत
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संेट पॉल राँची के प्राचार्य का कथन - प्रत्येक दृष्टिकोण से उसके
चरित्र की श्रेष्ठता एवं दृढ़ता का मैं आरंभ से ही प्रशंसक रहा
हूँ।(पृ02)
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रेव. केनोन कौसग्रेभ जयपाल सिंह की प्रतिभा से इतने अधिक
प्रभावित तथा मुग्ध हुए कि सन् 1919 में उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने
के लिए अपने साथ ही इंग्लैण्ड ले गए।(पृ0 2)
-
इंग्लैण्ड के ब्रिटिश शिक्षक एच.ए. जेम्स ने 17-6-1924 के पत्र
में लिखा - “जयपाल एक अन्य श्रेष्ठ विद्याभ्यासी तथा दृढ़
चरित्र का युवक है। मेरा यह विश्वास है कि यह युवक जीवन के
जिस क्षेत्र में भी प्रवेश करेगा, उसी क्षेत्र में यह असाधारण
सफलता प्राप्त करेगा। जयपाल में एक दीप्ति है जो इसे हर कहीं
प्रकाशमान रखेगी।“(पृ02)
-
इनके कॉलेज के एक प्रो0 जे. एल. स्टोक्स ने अपने 18-6-1924
के पत्र में लिखा है वह (जयपाल सिंह) - जब भाषण देता है तो
श्रोताओं को जैसे किसी मंत्रवल से मुगध सा कर लेता है। जयपाल
के वक्तव्य, श्रोताओं में एक अविचल तथा अखण्ड विश्वास की
सृष्टि करने की क्षमता से भरे होते हैं। इसके बोलने का
ढंग श्रोताओं को इस पर भरोसा रखने के लिए सशक्त रूप से
प्रेरित करता है।(पृ0 3)
-
श्री ध्यानचंद, श्री मैनेजर तथा श्री शौकत अली आदि भारत के
प्रसिद्ध खिलाड़ी इस टीम में सम्मिलित हुए थे, श्री एलेन गोलकीपर
थे। एक महान खिलाड़ी तथा कैप्टन के रूप में हमारे मरङ गोमके
श्री जयपाल सिंह ने ही इस (1928 अमस्टरडम ओलम्पिक में) टीम
का नेतृत्व किया था। (पृ04)
-
सन् 1932 में आपको (जयपाल सिंह को) लोसएजेंल्स में होने
वाले ओलियम्पिक में पुनः भारतीय टीम का कैप्टन बनकर जाने का आमंत्रण दिया गया। किन्तु कम्पनी के कार्यों से अवकाश नहीं
मिल पाने के कारण आप उसमें सम्मिलित नहीं हो सके। (पृ04)
गोल्डकोस्ट कोलोनी के गवर्नर श्री रोन्टोन थोमस को लिखे 4-12-1933 के एक पत्र में रेव. ए. जी. फ्रेजर एम.ए., सी.बी.ई. ने लिखा है - “यह युवक, जयपाल सिंह शिक्षा देने की अदम्य भावना तथा योग्यता से ओत-प्रोत है। यह एक श्रेष्ठ खिलाड़ी, श्रेष्ठ व्यवस्थापक, सुसंस्कृत तथा अनेक भाषाओं का विद्वान है। शिक्षक के कार्य की इसकी दक्षता असाधारण है। अपनी शिक्षा संस्था में व्यापारिक शिक्षा देने के लिए जयपाल सिंह से और अधिक योग्य शिक्षक मिलने की आशा मुझे तनिक भी नहीं है। इसकी विद्वता बहु-प्रशंसित तथा व्यक्तित्व आकर्षक है।(पृ05)
एलेक पेटरसन ने रेव. ए. जी. फ्रेजर को बधाई देते हुए लिखा - आप बड़े ही भाग्यवान हैं जो आपको अपने कॉलेज के लिए श्री जयपाल सिंह जैसे योग्य तथा विद्वान व्यक्ति प्राप्त हुए हैं। (पृ0 5)
- जयपाल सिंह के प्राचार्य रेव. केनोन कौसग्रेभ ने लिखा है - मैं
भारत के अपने दस वर्षों के आवास में जयपाल से अधिक दृढ़ चरित्र तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व के व्यक्ति से नहीं मिला हूँ।(पृ05)
- कलकत्ता हाई कोर्ट के जज श्री टोरिक अमीर अली ने 27-8-1936 के एक पत्र में लिखा है - ‘जयपाल सिंह के
व्यक्तित्व में एक ऐसा शक्तिशाली चुम्बक है कि जो व्यक्ति एक
बार उनसे मिल लेता है फिर वह उनसे भागने की अपनी सारी
शक्ति खो बैठता है।’ (पृ0 6)
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बिहार के तत्कालीन गवर्नर ने 22-3-1937 के पत्र में लिखा -
‘मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि आप राजकुमार कॉलेज,
रायपुर में सिनियर असिस्टेंट मास्टर के पद पर नियुक्त हो कर
भारत पधार रहे हैं।’ (पृ0 6)
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राजकुमार कॉलेज रायपुर के प्रिन्सिपल ने एक पत्र में लिखा है -
“मैं अपने कॉलेज के शिक्षक पद के लिए जैसे व्यक्तित्व की कामना
करता था उसे मैंने आप के (जयपाल सिंह के) रूप में पा लिया
है। आप का अध्ययन तथा चरित्र असाधारण है। अध्यापन के आपके अनुभव भी अद्वितीय हैं। छात्रों पर पड़ने वाली आप के
व्यक्तित्व के प्रभाव की मात्रा को देख कर तो विस्मय सा होता
है।(पृ0 6)
-
चारों ओर एक नयी आशा की लहर नाच रही। इस विचार से कि
वीर बिरसा मुण्डा के 40 वर्षों की लम्बी अवधि के बाद आज उन्हें
पुनः एक दृढ़, वीर, तेजस्वी तथा विद्वान मुण्डा (जयपाल सिंह के)
का ही नेतृत्व प्राप्त होगा। जनता उत्साह तथा उल्लास से भर
आयी। (पृ0 8)
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जनता ने जयपाल के दर्शन किये - गोल चेहरे पर अन्याय
के सम्मुख कभी नहीं झुकने वाली विशिष्ट मुण्डा - रेखाएँ, सहज ही अपनी ओर खींचने वाली आकर्षक मुद्रा,
जनता के मन में एक क्षण को भी यह नहीं आया कि विलायती
शिक्षा तथा वेश-भूषा के कारण जयपाल मुण्डा उनसे कुछ भिन्न
हो गया है। जयपाल आदिवासियों का था और आदिवासी जयपाल के थे। (पृ0 9)
-
ऐसे विलक्षण जयपाल सिंह को उसके समस्त पृथक-पृथक गुणों की विस्तृत नाप-जोख के साथ रखने के लिए मैं शीघ्र ही पृथक से एक मोटा ग्रंथ लिखूँगा। (पृ0 11)
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हम अपने उन समस्त आदिवासी भाइयों के प्रति जो देशी
राज्यों, ब्रिटिश-भारत तथा संसार के अन्य भागों में बस रहे हैं
अपनी सहानुभूति प्रकट करते हैं। हम उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि
स्वतंत्रता प्राप्त करने के संघर्ष में हम सब एक हैं तथा एक ही
रहेंगे। (पृ0 12)
आदिवासीस्थान के विरोध में जयपाल सिंह ने कहा था - “मुझे भय है कि अपने आप को इस तरह पृथक रखने की कोई भी चेष्टा अन्ततः हम आदिवासियों के लिए घातक सिद्ध होगा। हमें भारत के सम्पूर्ण राष्ट्रीय जीवन में (उसके एक अंग की तरह) अपने लिए एक पृथक प्रान्त चाहिए। जिसका प्रशासन हमारे हाथ में हों तथा हम अपनी संस्कृति के अनुरूप ही जिस प्रशासन के द्वारा अपनी आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक स्थिति को अपने ढंग से उन्नत कर सकें।“ (पृ0 12)
-
इग्नेस बेक का कहना है - मेरा विश्वास है कि आदिवासियों
में जयपाल के अतिरिक्त अन्य कोई भी व्यक्ति सच्चाई तथा
निर्भीकता का प्रदर्शन इतने उच्च स्तर पर नहीं कर सकता
था।“ (पृ0 13 - मुख्यमंत्री बिहार श्री कृष्ण सिंह के बंगले में
जयपाल के उद्गार के संबंध में)।
मरङ गोमके जयपाल सिंह के विरोधियों के उदृगार को भी श्री गोपाल दास मुंजाल ने इस प्रकार रखा है -- “सारे बिहार में राजनैतिक विरोध जितना जयपाल सिंह का हुआ है, उतना अन्य किसी भी दूसरे नेता का नहीं हुआ है। - विरोधी राजनैतिक संस्थाओं के समाचार पत्र इन्हें अपने मन पसंद की, तरह तरह की उपाधियाँ (गालियाँ) देते रहे हैं - 1. जयपाल प्रतिक्रियावादी हैं, 2. जयपाल बिहार का राजनैतिक शत्रु न एक, 3. जयपाल बिहार का राहू,
4. राजनैतिक खिलाड़ी इत्यादि। किन्तु जयपाल ने कभी इस ओर ध्यान भी नहीं दिया, वह अन्धड़ और तूफान की गति से अपने रास्ते चलते चला। उसका विचार है कि जो लोग जान बूझ कर आदिवासियों की उन्नति के मार्ग में रोड़े अटकाए हुए हैं वे ही प्रतिक्रियावादी हैं, वे ही मानवता के राहू हैं वे बिहार का सत्यानाश करने पर तुले हुए हैं तथा भारत के सबसे बड़े शत्रु भी वे ही हैं।“
आदिवासियों को झारखण्ड में आदिवासियों की तरह रहने तथा जीने का पूर्ण अधिकार है। “वे बिहार के गुलाम बन कर नहीं रहेंगे।“ श्रीजयपाल सिंह का यही नारा है - वे यही चाहते हैं क्या दुनियाँ का कोई भी न्याय पसन्द व्यक्ति यह कह सकता है कि जयपाल की यह मांग, आदिवासी महासभा का यह सिद्धान्त, झारखण्ड पार्टी का यह नारा अनुचित है। क्या देश के स्वतंत्र नागरिक की तरह जीने के अधिकार की चाहना प्रतिक्रियावादिता है। क्या अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाना देश की शत्रुता हैं यही वे प्रश्न हैं जो श्री जयपाल सिंह बार-बार अपने उन भाइयों के सम्मुख रखते हैं जो उन्हें प्रतिक्रियावादी, राहु तथा देश का शत्रु नम्बर एक कहते हैं।(पृ0 13)
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निकट रहने वाले साथियों का कहना है - समय आया है
जब जयपाल लगातार तीन-तीन दिनों तक भूखे रह गए हैं।
चने फांक कर पानी पी लिया है। किसी को कहा तक नहीं और
अपनी तूफानी गति से कार्य करते रहे हैं। आज झारखण्ड क्षेत्र
के प्रत्येक घर में जिस राजनीतिक चेतना का स्फुरण दिखलायी दे
रहा है वह सब केवल जयपाल सिंह के महान व्यक्तित्व अथक
श्रम तथा इनके राजनीति की अद्भुत सूझ-बूझ के द्वारा ही संभव
हो पाया है। (पृ0 14)
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पंडित जवाहर लाल नेहरू को संबोधित करते 19-12-1946
के संविधान सभा में जयपाल सिंह ने कहा था - “हम चाहते हैं
कि हमारे साथ ठीक वैसा ही वर्त्ताव किया जाए जैसा कि अन्य
किसी भी दूसरे भारतीय के साथ किया जाता है। ----
भारत के गैर आदिवासियों के द्वारा परिचालित विद्रोहों तथा
अराजकता के द्वारा निरंतर शोषित तथा विस्थापित किए जाना
ही मेरे लोगों का सम्पूर्ण इतिहास है। फिर भी मैं पंडित जवाहर
लाल नेहरू के वचन पर विश्वास करता हूँ ----- अब हम
अपने जीवन का एक नया अध्याय आरंभ करने जा रहे हैं -
स्वतंत्र भारत का एक नया अध्याय, जहाँ सब लोगों को समान
सुअवसर है, जहाँ कोई भी उपेक्षित नहीं रहने पाएगा। मेरे
समाज में जाति भेद का कोई प्रश्न नहीं हैं। हम सब बराबर हैं।
(पृ0 14-15) आइए हम सब देश की स्वतंत्रता के लिए साथ
ही जूझें, साथ-साथ बैठे तथा साथ ही साथ काम करें। तभी हम
वास्तविक स्वतंत्रता को प्राप्त करेंगे। (पृ0 15)
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झारखण्ड पार्टी की स्थापना ने झारखण्ड क्षेत्र के जन जन
में राजनैतिक चेतना की भेरी फूँक दी। --- प्रत्येक व्यक्ति
‘झारखण्ड एक पृथक प्रान्त’ के नारे से गुंजायमान हो रहा है।
इस सम्पूर्ण जागृत, चेतना तथा उल्लास के पीछे जो शक्ति है,
वह शक्ति इस महान मुण्डा जयपाल सिंह के जादू भरे व्यक्तित्व
की ही है। (पृ0 15)
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भारत के प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू आप के
(जयपाल सिंह के) गुणों पर मुग्ध हैं तथा आप का बहुत सम्मान
करते हैं। दिल्ली के राजनैतिक तथा सरकारी क्षेत्रों में किसी
महत्वपूर्ण पद पर कार्य करने वाला शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो
जो इन्हें (जयपाल सिंह को) नहीं जानता हो तथा इनसे प्रभावित
नहीं हो। (पृ0 15)
भारत स्थित विदेशी राजदूतों में से प्रायः सब के सब इनके प्रशंसक तथा मित्र हैं। हमारे मरङ गोमके दिल्ली के राजकुमार हैं। (पृ0 16)
ये कुछ उद्गार है जयपाल सिंह विशेषांक अबुआ झारखण्ड पत्र के जो श्री गोपाल दास मुंजाल द्वारा लिखे तथा संकलित किए गए हैं। दूसरी ओर बलबीर दत्त की जयपाल सिंह पर 54 वर्षों के कठिन अन्वेषण के बाद (37$17 वर्ष) प्रकाशित हुआ है। दोनों एक पंजाब (पाकिस्तान) के संपादक, पत्रकार तथा साहित्यकार हैं। दोनों तराजू के पलड़े पर तौल कर देखे मरङ गोमके जयपाल सिंह क्या हैं।