महाराष्ट्र का गढचिरौली जिला नक्सली हिंसा के लिए जब-तब सुर्खियों में रहता है, लेकिन इसी जिले का एक गांव मेढ़ा लेखा सामुदायिकता की नई कहानी लिख रहा है। यहां पांच सौ की आबादी है, लेकिन किसी के नाम जमीन नहीं। जो जमीन है, वह ग्रामसभा के नाम है। सामुदायिकता ही यहां के जीवन का आधार है।
रांची में चल रहे आदि दर्शन पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लेने आए मोहन हीरभाई हीरालाल व देवजी नवलू तोफा ने जागरण से अपने अनुभव साझा किए। तोफा ने कहा, यह गांव आदि दर्शन को जीता है। यहां किताबों में नहीं, जीवन में दर्शन का समावेश है। हीरालाल कहते हैं कि यहां 1000 हेक्टेअर में जंगल है और सौ हेक्टेअर में खेती होती है। जंगल व खेती पर पांच सौ आबादी का अधिकार है। अधिकार को लेकर कई बार वन विभाग के साथ अङ्क्षहसक संघर्ष भी हुआ। संघर्ष जब लंबा चला तो तत्कालीन वन-पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश गांव में आए और फिर उन्होंने कानून के अनुसार वन का अधिकार ग्रामसभा को दिया। वनोपज पर भी जंगल का अधिकार है। यहां बांस की प्रचुर खेती होती है। इसे ग्रामसभा ही बेच सकती है। निजी कुछ भी नहीं। खेती भी सामूहिक होती है। जब गांव में नए बच्चे का जन्म होता है तो उसका भी हक हो जाता है। वे जोर देकर कहते हैं, हमारा बस एक ही नारा है-'केंद्र व राज्य में हमारी सरकारÓ, 'मेरे गांव में हम हीं सरकार।Ó इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि केंद्र व राज्य में हमारी सरकार है, यानी हमारे प्रतिनिधि वहां हैं, जिन्हें अपना वोट देकर भेजते हैं, लेकिन गांव में हमारी सरकार होगी यानी ग्रामसभा की। यहां सभा में हर परिवार से एक महिला-एक पुरुष का भाग लेना अनिवार्य है। यदि एक भी अनुपस्थित रहता है या एक भी व्यक्ति किसी योजना या विचार से सहमत नहीं होता है, उसे लागू नहीं किया जाता है। हमारे यहां सब काम सर्व सहमति से होता है। इसके तीन मूलाधार है-अध्ययन, अङ्क्षहसा व सर्वसहमति। अध्ययन यानी अपने हक-कानून को जानना। वे इस गांव में 1986 में अध्ययन के सिलसिले में आए थे फिर यह गांव-घर भी अपना ही हो गया।
तोफा जनजाति समुदाय हैं। इसे कोया कहते हैं। बाहरी लोग गोंड नाम से पुकारते हैं। तोफा कहते हैं, जो बाहरी लोग आदिवासियों के जीवन का अध्ययन करने आए, गोंडवाना लैंड पर जो आदिवासी आबादी रहती है, उसे गोंड नाम दे दिया जबकि हम सब कोया है यानी इंसान। जैसे झारखंड के हो। हो का मतलब आदमी होता है। तोफा आदि दर्शन के बारे में ईश्वर की अवधारणा जैसी हमारे यहां ऐसी कोई अवधारणा नहीं है। हां, कोया भाषा का एक शब्द है पेन। हम उसे ही पेन कहते हैं, जो हमारे समाज का ऐसा कोई आदमी जो समाज के लिए बड़ा काम किया हो। सीएए व एनआरसी के सवाल पर कहते हैं कि हमारे यहां इसकी कोई समस्या नहीं है। हमारी ग्रामसभा बहुत मजबूत है। जब जिसे 'आदिवासीÓ कहते हैं, उसे सरकार भी मान लेती है। हम कानून को मानने वाले हैं। हम अपनी आजादी के साथ दूसरों की आजादी की भी कद्र करते हैं। हां, चलते-चलते हीरालाल जरूर कहते हैं, यहां आदि दर्शन पर सेमिनार हो रहा है, लेकिन वनाधिकार पर कोई बात नहीं कर रहा, जबकि जंगल के बिना आदिवासी का अस्तित्व नहीं। यही उसके जीवन का दर्शन है।
रांची में चल रहे आदि दर्शन पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लेने आए मोहन हीरभाई हीरालाल व देवजी नवलू तोफा ने जागरण से अपने अनुभव साझा किए। तोफा ने कहा, यह गांव आदि दर्शन को जीता है। यहां किताबों में नहीं, जीवन में दर्शन का समावेश है। हीरालाल कहते हैं कि यहां 1000 हेक्टेअर में जंगल है और सौ हेक्टेअर में खेती होती है। जंगल व खेती पर पांच सौ आबादी का अधिकार है। अधिकार को लेकर कई बार वन विभाग के साथ अङ्क्षहसक संघर्ष भी हुआ। संघर्ष जब लंबा चला तो तत्कालीन वन-पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश गांव में आए और फिर उन्होंने कानून के अनुसार वन का अधिकार ग्रामसभा को दिया। वनोपज पर भी जंगल का अधिकार है। यहां बांस की प्रचुर खेती होती है। इसे ग्रामसभा ही बेच सकती है। निजी कुछ भी नहीं। खेती भी सामूहिक होती है। जब गांव में नए बच्चे का जन्म होता है तो उसका भी हक हो जाता है। वे जोर देकर कहते हैं, हमारा बस एक ही नारा है-'केंद्र व राज्य में हमारी सरकारÓ, 'मेरे गांव में हम हीं सरकार।Ó इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि केंद्र व राज्य में हमारी सरकार है, यानी हमारे प्रतिनिधि वहां हैं, जिन्हें अपना वोट देकर भेजते हैं, लेकिन गांव में हमारी सरकार होगी यानी ग्रामसभा की। यहां सभा में हर परिवार से एक महिला-एक पुरुष का भाग लेना अनिवार्य है। यदि एक भी अनुपस्थित रहता है या एक भी व्यक्ति किसी योजना या विचार से सहमत नहीं होता है, उसे लागू नहीं किया जाता है। हमारे यहां सब काम सर्व सहमति से होता है। इसके तीन मूलाधार है-अध्ययन, अङ्क्षहसा व सर्वसहमति। अध्ययन यानी अपने हक-कानून को जानना। वे इस गांव में 1986 में अध्ययन के सिलसिले में आए थे फिर यह गांव-घर भी अपना ही हो गया।
तोफा जनजाति समुदाय हैं। इसे कोया कहते हैं। बाहरी लोग गोंड नाम से पुकारते हैं। तोफा कहते हैं, जो बाहरी लोग आदिवासियों के जीवन का अध्ययन करने आए, गोंडवाना लैंड पर जो आदिवासी आबादी रहती है, उसे गोंड नाम दे दिया जबकि हम सब कोया है यानी इंसान। जैसे झारखंड के हो। हो का मतलब आदमी होता है। तोफा आदि दर्शन के बारे में ईश्वर की अवधारणा जैसी हमारे यहां ऐसी कोई अवधारणा नहीं है। हां, कोया भाषा का एक शब्द है पेन। हम उसे ही पेन कहते हैं, जो हमारे समाज का ऐसा कोई आदमी जो समाज के लिए बड़ा काम किया हो। सीएए व एनआरसी के सवाल पर कहते हैं कि हमारे यहां इसकी कोई समस्या नहीं है। हमारी ग्रामसभा बहुत मजबूत है। जब जिसे 'आदिवासीÓ कहते हैं, उसे सरकार भी मान लेती है। हम कानून को मानने वाले हैं। हम अपनी आजादी के साथ दूसरों की आजादी की भी कद्र करते हैं। हां, चलते-चलते हीरालाल जरूर कहते हैं, यहां आदि दर्शन पर सेमिनार हो रहा है, लेकिन वनाधिकार पर कोई बात नहीं कर रहा, जबकि जंगल के बिना आदिवासी का अस्तित्व नहीं। यही उसके जीवन का दर्शन है।