पहला जुलूस महावीर चौक से सदर अस्पताल तक गया था

अशोक पागल, रंगकर्मी-लेखक।

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि। उत्तम पुरुष श्री राम का जन्म। यानी रामनवमी। एक व्रत, एक त्योहार, एक उत्सव का दिन।
रामनवमी का पर्व पूरे छोटानागपुर में अपना एक विशेष महत्व रखता है। होली के बीतते ही रामनवमी की धूम शुरू हो जाती है। होली के बाद पडऩे वाले पहले मंगलवार को ही विभिन्न अखाड़ों में महावीरी पताका फहरने लगते हैं। जगह-जगह अस्त्र-शस्त्र संचालन का कौशल प्रदर्शन शुरू हो जाता है। मंगलवारी जुलूस अपर बाजार, महावीर चौक स्थित हनुमान मंदिर तक आता है। यहां हनुमानजी को भोग लगाया जाता है। उत्साही भक्त माथा टेकते हैं।
रामनवमी के एक दिन पहले अष्टमी को पौराणिक कथा पर आधारित आकर्षक झांकियों की प्रतियोगिता होती है। झांकी प्रतियोगिता का आयोजन श्री रामनवमी शृंगार समिति करती है। अनुष्ठान देर रात तक चलता है। इस दिन अखाड़ों, झंडाधारियों के अतिरिक्त दर्शकों की भीड़ उमड़ती है। आयोजन स्थल महावीर चौक होता है। अब डोरंडा, चर्च रोड आदि क्षेत्रों में भी झांकी प्रतियोगिता होने लगी हैं।
रामनवमी की मुख्य शोभायात्रा की विशालता का कहना ही क्या? लाखों लोग इस दिन सड़क पर उतरते हैं। चारों तरफ जयश्री राम का उद्घोष। हाथ में महावीरी पताका। घरों पर महावीरी पताका। इसके आरंभ की भी अनोखी कहानी है।
सन् 1928 में जमादार मौलवी के घर मुस्लिम लीग का गठन हुआ। इसी की प्रतिक्रिया में अपर बाजार, महावीर चौक के नेमन साहु के घर पर ङ्क्षहदू महासभा का गठन किया गया। महंत ज्ञान प्रकाश नागा बाबा इसके प्रथम अध्यक्ष हुए। मुहर्रम के समानांतर रामनवमी के अवसर पर शोभायात्रा निकालने की योजना सबसे पहले यहीं बनी। इस योजना में नेमन साहु, जगन्नाथ साहु, रामचंद्र साहु, कृष्ण लाल साहु, गंगाधर वर्मा, राम बड़ाइक आदि प्रमुख थे। 1929 में पहली बार राम नवमी की शोभायात्रा निकली थी। इस अवसर पर एकमात्र महावीरी झंडा निकला था और वह एकमात्र झंडा जगन्नाथ साहु का था। झंडा ढोने वाले थे अनिरुद्ध राम। साथ में नौवा टोली के 15-20 उत्साही नौजवान लाठी-भाला लेकर जै-जै करते चल रहे थे।
राम नवमी का यह पहला जुलूस अपर बाजार, महावीर चौक से निकल कर सदर अस्पताल गेट तक गया था। तब सदर अस्पताल का गेट मेन रोड पर, अल्बर्ट एक्का चौक से थोड़ा आगे था। जुलूस में दो हाथ रिक्शे भी शामिल थे, जिनमें से एक पर नंदकेश्वर पाठक व बुधना बतौर गायक बैठे थे। दूसरे रिक्शे पर खोखा और सूरज गोप ढोलक पर ठेका देते चल रहे थे।
सन् 1929 के बाद 1930 में भी रामनवमी शोभायात्रा का यही मोटा-मोटी स्वरूप था। इस बार भी इसका गंतव्य सदर अस्पताल गेट ही था। सन 1931 में जुलूस में दो झंडे शामिल हुए। इनमें से एक झंडा नेमन साहू का था व दूसरा कांग्रेसी झंडे की तरह तिरंगा था, जिसकी एक ओर चरखा व दूसरी ओर हनुमानजी की आकृति बनी हुई थी। यह झंडा किसका था, ज्ञात नहीं। इस वर्ष रामनवमी जुलूस चर्चा रोड स्थित महावीर मंदिर तक गया। सदर अस्पताल के गेट से आगे बढ़ाकर जुलूस चर्च रोड स्थित महावीर मंदिर तक गया था। सदर अस्पताल के गेट से आगे बढ़ाकर जुलूस को चर्च रोड, महावीर मंदिर तक ले ताने का श्रेय गुलाब नारायण तिवारी को जाता है। इस समय तक रामनवमी महोत्सव शोभायात्रा में गंगाधर वर्मा, जैन मुंशी, नान्हू गोप, शिवदीप सहाय, हंसेश्वर दयाल, गंगा प्रसाद बुधिया, राधाकृष्ण बुधिया आदि लोगों की भूमिकाएं उल्लेखनीय हो गईं।
सन 1935 में रामनवमी व मुहर्रम एक दिन पड़ा था। प्रशासन द्वारा दोनों ही जुलूसों पर रोक लगा दी गई। तब ङ्क्षहदुओं की ओर से राधाकृष्ण बुधिया व मुसलमानों की ओर से खान बहादुर हबीबुर्रहमान द्वारा बांड भरे जाने के बाद दोनों जुलूस निकले थे। इसी वर्ष रामनवमी जुलूस पहली बार डोरंडा के तपोवन स्थित राम मंदिर तक गया था। तब से अब तक रामनवमी जुलूस तपोवन मंदिर तक ही जाता है। इसी वर्ष महावीर मंडल के गठन की बात चली और सन 1936 में इसका गठन हुआ। तब से इस संगठन के माध्यम से ही इसका आयोजन होता आ रहा है।

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