संजय कृष्ण : रांची की दीपिका कुमारी ने तीरंदाजी से देश का मान ही नहीं बढ़ाया है, उसने अपने संघर्ष से कथाकारों की नई पीढ़ी को भी प्रभावित किया है। अनुज नई पीढ़ी के कथाकार हैं। परिकथा के नए अंक में उनकी कहानी 'टार्गेटÓ आई है। कहानी दीपिका पर लिखी गई है, लेकिन क्रिकेट की चकाचौंध से इतर हाशिए पर जाते खेलों की चिंता भी कहानी में दर्ज है। अनुज रांची में हैं। बुधवार की शाम फिरायालाल की गहमगहमी के बीच दो पल बात करने का मौका मिला। उनके साथ थे युवा कथाकार पंकज मित्र, परिकथा के संपादक शंकर व अनुज के बहनोई डा. डीके सहाय। पूछता हूं, दिल्ली में रहते हुए रांची की दीपिका का ख्याल कैसे आया? बड़ी शाइस्तगी से कहते हैं, पहली बात तो यह खेल केंद्र में नहीं है। हाशिए पर चल रहा है। अखबारों के जरिए पता चला कि दीपिका के पिता रांची में आटो चलाते हैं। सो, इससे बेहतर कोई विषय नहीं हो सकता कहानी के लिए। और, इस तरह टार्गेट पाठकों के बीच आई। कहानी के केंद्र में दीपिका तो है ही लेकिन यहां उस ओर ध्यान दिलाया गया कि कैसे किसी की उपलब्धि को हमारे नेता 'इनकैशÓ करते हैं। मीडिया में भी नेताओं की बातें ज्यादा आईं। उसकी प्रतिभा, उसका संघर्ष नजरअंदाज कर दिया गया। मीडिया हाशिए के लोगों की नोटिस नहीं ले रहा है। जबकि उसे सपोर्ट करना चाहिए। अनुज कहते हैं, मीडिया का काम विचार बनाना है। उसे दिशा देना है।
कहानी के वर्तमान दौर पर चर्चा होती है। काशीनाथ सिंह चर्चा में हैं। सवाल वहीं से उठाता हूं। वरिष्ठ कथाकार काशीनाथ सिंह कहते हैं, युवा कथाकारों के पास जमीन नहीं है। वह कहां से लिख रहे हैं, कहां के रहने वाले हैं, कहानी में पता नहीं चलता। इस बात से कितना इत्तेफाक रखते हैं।
अनुज थोड़े गंभीर होते हैं। लंबी सांस छोड़ते हैं। फिर जवाब देते हैं। कहते हैं, उनकी (काशीनाथ सिंह) मजबूरी यह है कि वह किन कारणों से, शायद उम्र का तकाजा हो, वे पढ़ते नहीं हैं। दावे के साथ कह सकता हूं कि चाहे काशीनाथ सिंह हों, या उनकी पीढ़ी के दूसरे कथाकार, जो बड़े लोग हैं, उनमें बहुत कम लोग ऐसे हैं, जिन्होंने युवा कहानी या कहानीकारों पर टिप्पणी करते हुए, या करने से पहले युवाओं को पढ़ा है। दूसरी बात, पुरानी पीढ़ी में असुरक्षा की भावना है। उन्हें लगता है कि उनकी सत्ता अब खत्म हो रही है, उन्होंने जो कुछ लिखा है, वह सब युवाओं के आने के बाद खत्म हो रहा है, हालांकि ऐसा है नहीं। काशीनाथ सिंह युवा कथाकारों को मानवविरोधी कहते हैं, जो कहीं से भी स्वीकार्य नहीं है। अनुज कहते हैं, काशीनाथ सिंह से सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर नए लोगों ने कुछ नया नहीं लिखा है तो किए नए की अपेक्षा करते हैं। अनुज पूछते हैं, जो पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, उनमें इतनी बेचैनी क्यों है कि युवा कहानीकार कुछ नहीं कर रहे हैं?
अनुज मौजूं सवाल उठाते हैं कि अभी तक पुरानी पीढ़ी का ही मूल्यांकन ठीक से नहीं हुआ है तो, अभी से कैसे तय हो गया कि युवा कुछ नहीं लिख रहे हैं। पहले पूरा मूल्यांकन तो होने दीजिए। कौन कहां रहेगा, यह तो समय बताएगा। कथा की दुनिया में आए हुए अनुज को अभी पांच साल ही हुए हैं। पहली कहानी वागर्थ में 2005 में आई थी। उनकी निगाहें प्रेमचंद से होती हुई रेणु, जैनेंद्र, अज्ञेय पर आकर ठहरती हैं। इसके बाद उदय प्रकाश पर आकर टिकती हैं। नई कहानी के दौर को भी अनुज नहीं भूलते, जिसमें से कमलेश्वर, मोहन राकेश और राजेंद्र यादव की तिकड़ी आई थी। खैर, चलते-चलते अनुज बताते हैं कि एक उपन्यास पर काम कर रहे हैं, जिसमें देश की राजनीति है मगर फंतासी के साथ। खैर, उनका साथ छोड़ आफिस की ओर चल पड़ता हूं।
very good, achcha laga, koi inko jawab bhi de raha hai.varna inki nazar kamzor to ho hi rahi hai.
जवाब देंहटाएंthanks