कौन हैं कलाम

संजय कृष्ण : भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम गुरुवार को टोरियन वल्र्ड स्कूल के प्रांगण में गिरिडीह से चलकर आए बिरहोर जनजाति के बच्चों से मिले। गिरिडीह के सरिया बगोदर से चलकर 48 बच्चे अपने शिक्षक गेंदू प्रसाद वर्मा के साथ रांची आए थे। पिंटू बिरहोर कक्षा तीन पढ़ता है। पूछने पर वह नहीं बता पाता कि कलाम कौन हैं? बस उसे यही पता कि किसी से मिलना है। उसकी इस जानकारी पर आश्चर्य नहीं होता। वह ऐसे दूर गांव से आया है, जहां विकास की रोशनी भी नहीं पहुंच पाई है। वह भला टोरियन के फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते बच्चों के साथ अपनी तुलना कैसे कर सकते हंै? पता नहीं, गिरिडीह की डीसी ने इन बच्चों को कलाम से मिलने के लिए क्यों भेजा था? इनकी नुमाइंगी किए लिए? क्या आदिवासी प्रदर्शनी के ही काबिल हैं?
सचमुच टोरियन वल्र्ड स्कूल में एक ओर दीनहीन भारत था तो दूसरी ओर चमकदार इंडिया था। दीनहीन भारत का प्रतिनिधित्व यही बिरहोर बच्चे कर रहे थे, जिनके शरीर पर सरकार द्वारा दी गई ड्रेस थी। ये बच्चों झारखंड के उन जनजातियों के हैं, जो विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। इनको बचाने के लिए न जाने कितनी योजनाएं केंद्र और राज्य सरकार की चल रही हैं। पर, सरकार की योजनाएं पहाड़ों तक नहीं पहुंच पातीं, जहां ये पत्तों का आशियाना बनाकर रहते हैं। एक दूसरे बच्चे राजेश बिरहोर से पूछता हूं तुम्हारे पिता क्या करते हैं? वह कहता है, गाड़ी चलाते हैं। स्कूल में मध्याह्न भोजन मिलता है? हां। क्या-दाल, भात और सब्जी। मीनू में और भी कुछ है, पर इन्हें दाल-भात से ही संतोष करना पड़ता है। ये बच्चे ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाते। कलाम से हाथ मिलाने से क्या उनकी तकदीर बदल जाएगी, जिसे पता ही न हो कि कलाम कौन है? यही है हमारे देश की शिक्षा-व्यवस्था। एक देश में कई देश।