झारखंड की सराक जाति

बंगाल, बिहार, ओडिशा और झारखंड में सराक जाति भी रहती है। झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में सराकों के कई गांव हैं। 1996 में प्रकाशित एक पुस्तक के हवाले से सिंहभूम जिले में छह गांव, रांची में 49 गांव, दुमका में 29 गांव, वीरभूम में तीन गांव, धनबाद में 12 गांव, संताल परगना में 29 गांव हैं। डाल्टन एवं एचएच रिसले ने बंगाल-पुरी गजेटियर में लिखा है-सराकगण झारखंड में बसने वाले पहले आए हैं। ये अहिंसा धर्म में आस्था रखते हैं। सराक एक ऐसी जाति की संतान हैं जो भूमिजों के आने से पूर्व बहुत प्राचीन काल से यहां बसी हुई है, इनके पूर्वजों ने पहले अनेक स्थानों पर मंदिर बनवाए थे। यह अब भी एक शांतिमयी जाति है, जो भूमिजों के साथ बहुत मेलजोल से रहती है। इनके कुल देवता पाश्र्वनाथ हैं। सराक को श्रावक का अपभ्रंश भी कहा जाता है। बंगाल डिस्ट्रिक गजेटियर में बताया गया कि सरावक, सरोक, सराक श्रावक का अपभ्रंश रूप है। यह संस्कृत में सुनने वाले के लिए कहा जाता है। उस समय जैन धर्म में परिवर्तित व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता था। ये श्रावक जैन धर्म प्रवर्तत यति, मुनि, संन्यासी से भिन्न होते थे। डाल्टन लिखता है, सराकगण झारखंड में बसने वाले पहले आर्य हैं, वे अहिंसा धर्म में आस्था रखते हैं। सिंहभूम में तांबे की खानें व मकान हैं, जिनका काम प्राचीन लोग करते थे। ये लोग श्रावक थे। पहाडिय़ों के ऊपर घाटी में व बस्ती में बहुत प्राचीन चिह्न हैं। यह श्रावकों के हाथ में था। सिंहभूम श्रावकों के हाथ में था जो अब करीब-करीब नहीं रहे हैं। परंतु तब वे बहुत अधिक थे।
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महावीर का एक नाम वीर भी था। तो क्या वीरभूमि उनके नाम पर ही है। इतना तो तय है कि झारखंड जैन धर्म के लिए पवित्र क्षेत्र रहा है। 24 में से 20 तीर्थंकर यहां निर्वाण को प्राप्त हुए। पं बंगाल का बर्धमान जिला भी भगवान महावीर के नाम पर ही है।

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