आजादी से ही लड रहे हैं अपनी जमीन वापसी के लिए टाना भगत

टाना भगतों का योगदान देश की आजादी में भी तो अभूतपूर्व रहा, लेकिन इन्हें वह सम्मान आज तक नहीं मिला। कुछ ताम्रपत्र जरूर मिले, लेकिन उनकी जमीन नहीं मिली। इसके लिए ये आज भी अपनी लड़ाई अहिंसात्मक ढंग से जारी रखे हुए हैं। नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक ने इसकी कहानी सुनी, वादा किया, लेकिन वादे आज तक पूरे नहीं हो सके। अपने अधिकार और हक की लड़ाई ये आज भी लड़ रहे हैं। शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन के जरिए सरकार को अपनी बात भी सुनाते हैं, लेकिन सरकार इतनी संवेदनशील होती तो ये 66 सालों से लड़ते ही क्यों?
यह लड़ाई वैसे तो आजादी के तुरंत बाद ही शुरू हो गई थी। सरकार ने इनकी जमीन वापसी की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी, लेकिन बहुतों को जमीन का आज भी इंतजार है। आजादी के तत्काल बाद, 1947 में ही इनकी जमीन वापसी का कानून बना। बिहार राज्य सरकार ने रांची जिला टाना भगत रैयत कृषि प्रत्यावर्तन अधिनियम पारित किया, जिसके अनुसार सन् 1913 से 1942 तक स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लगान नहीं देने पर नीलाम कर दी गई उनकी जमीन वापसी का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत उस समय कुल 358 टाना भगतों को कुल 3722.26 एकड़ जमीन वापस की गई एवं जमीन पर दखलकार विपक्षियों को कुल 13,05,669 रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान किया गया है।
हालांकि इस कानून में कुछ कमियां थीं। यह रांची तक ही सीमित था, जबकि कई अन्य जिलों के टाना भगतों को इससे लाभ नहीं मिलता था। फिर इस कानून को 1961-62 में संशोधित किया गया। 1968-69 में जो जमीन वापसी की गई थी, उस बारे में पता चलता है कि उस समय कुल 1,200 मुकदमे दायर हुए। 232 परिवारों को लाभ मिला। 7,38,98 रुपये खर्च हुआ। 88 मामले लंबित दिखाया गया और 2,808 एकड़ 80 डिसमिल जमीन वापस की गई।
तत्कालीन बिहार सरकार ने इनकी समस्याओं को निपटारे के लिए 1966 में टाना भगत बोर्ड का गठन किया, जिसमें 14 टाना भगत इसके सदस्य थे। यह बोर्ड कल्याण विभाग के अधीन था। प्रत्येक महीने इसकी बैठक होने की बात कही गई थी, लेकिन चार-पांच महीने बाद ही बंद कर दी गई।
हालांकि बोर्ड के बंद हो जाने के बाद भी जमीन वापसी का सिलसिला जारी रहा। 1972 में भी इन्हें सरकारी जमीन दी गई। उस समय कुल 389 टाना भगतों को कुल 827.06 एकड़ जमीन सरकार से बंदोबस्त की गई। बंदोबस्त की गई जमीन ऐसी थी कि उसमें फसल भी नहीं होती। इसके लिए भूमि कर्षण विभाग से कृषि योग्य बनाने के लिए संपर्क किया गया था।
जमीन वापसी के संघर्ष का उनका लंबा इतिहास है। इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और राहुल गांधी तक अपनी बात रख चुके हैं। फिर भी इनकी मांग पूरी नहीं हो पा रही है। एक समय टाना भगतों को न्याय दिलाने के लिए परमेशचंद्र सिंह ने अखिल भारतीय टाना विकास परिषद् नामक संस्था का गठन किया था। उन्होंने टाना भगतों को इंदिरा गांधी व राजीव गांधी से मिलवाया। परमेशचंद्र सिंह अपने नेतृत्व में 28 दिसंबर, 1983 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कलकत्ता में हो रहे अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में मिलवाया और अपनी बात सुनाई। प्रधानमंत्री ने इन्हें पूर्ण आश्वासन दिया। यही नहीं, उन्होंने इनके एक प्रतिनिधि को राज्यसभा में तथा प्रांतीय स्तर पर एक प्रतिनिधि को कौंसिल में भी मनोनीत करने का आश्वासन दिया। इसके बाद 3 जनवरी, 1984 को रांची के मेसरा में अखिल भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अधिवेशन के मौके पर भी परमेशचंद्र सिंह ने टाना भगतों को फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलवाया। पर, इसी साल अक्टूबर में उनकी हत्या कर दी गई और आश्वासन भी उन्हीें के साथ दफन हो गया। पर, टाना भगतों ने हिम्मत नहीं हारी। परमेशचंद्र सिंह ने फिर इन्हें प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मिलवाया। यह दिसंबर 1985 की बात है। टाना भगतों ने राजीव गांधी को सम्मानित कर रस्म पगड़ी और मान पत्र भेंट किया। प्रधानमंत्री ने मार्च 1986 में इनकी नीलाम जमीन की वापसी के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे को आदेश दिया। आदेश के बाद काफी लोगों को जमीनें मिलीं। पर सभी को नहीं। लंबे समय बाद आज फिर 48 टाना भगतों को हेमंत सोरेन ने जमीन का पट्टा दिया। हेमंत को पहल कर सभी टाना भगतों को उनकी जमीन दे देनी चाहिए। ये गांधी के सच्चे अनुयायी हैं और अहिंसक तरीके से आज भी ये लड़ रहे हैं।

                                                                     संजय कृष्ण