आदिवासी लोक कथाओं में बादलों की कड़क और बिजली

डॉ वेरियर ऐल्विन
भारतीय आदिवासियों के अधिकांश सृष्टि-संबंधी विश्वासों की पृष्ठभूमि में लोकप्रिय हिंदू-धर्म की परंपरा है और इंद्र, राम, भीम और कभी-कभी अर्जुन भी शास्त्र के महान पृष्ठों से आदिवासियों की गृह निर्मित पौराणिक-कथाओं को प्रेरणा देने तथा विविधता प्रदान करने के लिए चले आते हैं। बिजली मारुति के कतिपय अस्त्रों में से है और वज्र को तो पर्जन्य ने ही प्रयोग किया था।
कहा जाता है कि प्रथम पुरुष कीे आत्मा, बिजली रूप में, सबसे पहले
ऐन्थोवन ने, पश्चिमी भारत में प्रचलित विविध विश्वासों का अच्छा वर्णन किया है। बादलों की कड़क कभी इंद्र का रुष्ट स्वर है, तो कभी उसका अट्टहास। यह वह होहल्ला है, जो वह बादलों में 'गुल्ली-डंडाÓ या 'फुटबालÓ खेलते समय करता है। उसका विवाह होता है, वह युद्ध करता है, वर्षा लाने को अपना बाण चलाता है, या अपने हंटर से बादलों की पिटाई करता है। कभी बादलों की कड़क भगवान के रथ के आकाश में चलने से उत्पन्न हुई कही जाती है और यह उन नक्कारों की ध्वनि है, जो देवगण वर्षा के आने पर बजाते हैं, या यह किसी बूढ़े खूसट द्वारा आकाश में पत्थर लुढ़काने या पीसने की आवाज है।
पृथ्वी पर आई। महाभारत में कहा गया कि बिजली दधीचि की अस्थियों से निकली, पर एक और भी प्राचीन विश्वास है कि बिजली शेषनाग की फुंकार है, जो सांपों का राजा है। जिस प्रकार अग्नि काष्ठ का भक्षण करती है, उसी प्रकार बिजली जल का भक्षण कर लेती है। यह उस पर प्रहार करती है, जिसने 'बज्र-पापÓ या ब्रह्म-हत्या किया हो।

इस विषय की आदिवासी परंपराओं के अध्ययन से लेखन योग्य विविधता दृष्टिगोचर होती है और कम से कम छह अभिप्राय अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं। प्रथम और सबसे लोकप्रिय है कि बिजली एक लड़की है, जो विवाह-दिवस पर आकाश में भागी फिरती है और बादलों की कड़क उसके दुष्ट स्वामी का शोर है, जो उसके पीछे दौड़ रहा है। एक बैगा कथा वर्णन करती है कि किस प्रकार लक्ष्मण ने 'बीजलदाई कन्याÓ के लिए बारह वर्ष बिताए, जो दर्पण की भांति सुंदर थी, जिस पर एक युवक सूर्य की किरणों की प्रतिच्छाया डालता है। वह प्रकाश की भांति ही विलीन हो जानेवाली है। इस समय (12वर्ष) की समाप्ति पर उसके श्वसुर ने एक घड़ा, जिसमें उसी का रक्त भरा था, दिया और घर ले जाने और भीतर न देखने के लिए कहा। पर लक्ष्मण उसे अपने कक्ष में ले गया और खोल डाला। भीतर से उसकी वधू इतनी शक्तिशाली निकली कि छत को तोड़कर आकाश में जाकर बिजली बन गई। लक्ष्मण ने अपना धनुष-बाण संभाला ओर उसकी पीछा किया, घनगर्जन बादलों को चीरते हुए उसके बाणों का रव है।
 इसी प्रकार एक 'देवारÓ कथा में एक युवा नेता 'बेल कुंवरÓ का विवाह बीजल कन्या से होता है। वह एक बांस की नाल में छिप जाती है और उस नाल को बेल कुंवर के धनुष-बाण के साथ विवाह-स्तंभ के चारों ओर घुमाया जाता है। लड़का बांस को घर ले जाता है, पर रास्ते में-कितनी ही बार मना करने पर भी इसे मत खोलना-वह भीतर देखता है, उसकी वधू उछलकर बाहर निकल आती है ओर एक खोखले वृक्ष में छिप जाती है। बेल कुंवर उस पर बाण चलाता है, वह चरका देती है, बाण बांस के झुरमुट में लगता है। बेल कुंवर बार-बार बाण चलाता है, पर वह एक गांठ से दूसरी गांठ सरकती रहती है और अन्त में आकाश पर पहुंच जाती है। इस प्रकार बिजली अभी तक कुंवारी ही है और बादलों की कड़क सदा के लिए उसकी रुष्ट आवाज है, जब भी वह उसे देखता है, चिल्लाता है।
'कोंडÓ और 'सावराÓ कथाओं का अभिप्राय वही है। एक लड़की जो अग्नि सदृश सुंदर है, किसी लोहार के आसोत्र में ज्वालामय लोहे से उत्पन्न होती है। वह इतनी सुंदर है कि सभी लोहार उससे प्रेम करते हैं और एक ईष्र्यालु पत्नी उसे शाप देती है कि विवाह होने पर भी उसे अपने पति से सदा अलग रहना पड़ेगा। इस प्रकार जब उसका विवाह होता है तो पतिगृह जाते समय रास्ते में ही उसके कंधों में पंख निकल आते हैं और वह उड़कर आकाश चली जाती है।
ये मनोरंजक विचार हैं, पर कार्य-रूप में परिणित नहीं हुए। बिजली गिर जाना भयंकर तथा बुरी बात है। प्राय: यह पाप का दंड माना जाता है या किसी जातीय टैबू का तोडऩा। जिस वृक्ष या घर पर बिजली गिर जाती है, उसे भारी जादू से भरा समझा जाता है और वह बड़े विचार से स्पर्श या व्यवहार किया जाता है। 'सावराÓ लोगों का कहना है कि बिजली से मरने वालों की आत्मा पृथ्वी पर जुगनू बनकर लौट आती है और अपने अन्य जीवन को सदा जल-जलकर कष्ट में बिताती है।
                                                                                                                  (1959, विशाल भारत)