ओ, गंगा तुम बहती हो क्यों

आज गंगा दशहरा है। गंगा के अवतरण का दिन। गंगा, न जाने कितने सालों से हमारी स्मृतियों में रची-बसी हैं। सैकड़ा, हजार-दो हजार....। पता नहीं। कहते हैं, गंगा जीवन देती हैं। सेनापति कहते हैं, पावन अधिक सब तीरथ तैं जाकी धार, जहा, मरि पापी होत सुरपुर पति है/देखत ही जाकौ भलो घाट पहचानियत, एक रूप बानी जाके पानी की रहति है...गोमुख से गंगा सागर तक 2525 किलोमीटर का सफर तय करने वाली गंगा मैया सैकड़ों शहरों की जननी भी हैं। इसी के किनारे न जाने कितने तीर्थ हैं। एक तीर्थ बनारस भी है। मोक्ष के लिए लोग काशी आते हैं। जीवन भर के पाप की गठरी लादे वे यहीं पर मुक्ति का उपाय खोजते हैं। काशी तीर्थ है तो गंगा के कारण और मुक्ति की नगरी भी है तो गंगा के कारण। सुनते हैं कि जहां-जहां गंगा उत्तराभिमुख हुईं, वहां-वहां वह क्षेत्र अनायास ही तीर्थ बन गया। यहां भी गंगा अर्धचंद्राकार है और चंद कदम उत्तर की ओर भी चलती हैं। पर, अपन का गांव या छोटा-मोटा कस्बाई शहर कह लीजिए, गंगा के किनारे ही है। उसे भी मदन बनारस या कि मदन काशी कहा गया है। अब उसका आधुनिक नाम जमानिया है। पहले-पहले हमने अपने इस नगर के बारे में 'बाबरनामाÓ में पढ़ा। वह अपने लाव-लश्कर के साथ नाव से यात्रा कर रहा था। उसका कारवां जमानियां के पास दो दिन रुका रहा। शिकार किया और फिर आगे बढ़ गया। उसने ही इस स्थान को 'मदन बनारसÓ नाम से संबोधित किया।
इसी जगह के पास जब भगीरथ गंगा को लेकर धरती पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे कि उनके रथ का चक्का यहीं आकर फंस गया। गंगा गोल-गोल चक्कर काटने लगीं। भगीरथ को भान हुआ कि यह तो परम पावन जमदग्नि ऋषि का क्षेत्र है। सो, उन्हें प्रणाम किया तो उनका रथ पुन: गतिशील हो गया। कहते हैं, जहां उनका चक्का फंसा, वहां एक बस्ती विकसित हुई, जिसे चक्का बांध कहा गया। यहीं से गंगा उत्तर की मुड़ती हैं और करीब-करीब आठ-दस किमी तक सीधे उत्तर ही बहती हैं। गंगा, जहां गोल-गोल घूमती रहीं, वहां आज भी घूमती हैं। उसमें कोई फंसा तो फिर बाहर नहीं निकल पाता। बरसात में इसकी विकरालता देखते बनती हैं। पुराण यही कथा सुनाते हैं। आप विश्वास करें, न करें। पर, गंगा भी सच हैं, चक्का बांध भी। इसी पूरे क्षेत्र को महाश्मशान भी कहा जाता है। यह काशी से भी पवित्र है। जो मरे, सो तरे। इसीलिए, गाजीपुर को भी लहुरी काशी कहा जाता है।
गंगा हमारी सांस्कृतिक विरासत भी हैं। इसी गंगा पर रवींद्रनाथ टैगोर भी मोहित हुए थे और राही मासूम रजा ने तो गंगा के नाम वसीयत ही लिख डाली है। राही की तरह किसी हिंदू ने घोषणा नहीं कि वह तीन मांओं का बेटा है-नफीसा बेगम, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और गंगा। नफीसा बेगम मर चुकी हैं। अब साफ याद नहीं आतीं। बाकी दोनों माएं जिंदा हैं और याद भी हैं। वसीयत में लिखते हैं-
मेरा फन तो मर गया यारो
मैं नीला पड़ गया यारो
मुझे ले जाके गाजीपुर की गंगा की गोदी में सुला देना।
मगर शायद वतन से दूर मौत आए
तो मेरी वसीयत यह है
अगर उस शहर में छोटी-सी एक नदी बहती हो
तो मुझको
उसकी गोद में सुलाकर
उससे कह देना
कि यह गंगा का बेटा आज से तेरे हवाले है।
आप सुन रहे हैं न, राही क्या कह रहे हैं?
बात सिर्फ राही की नहीं। गाजीपुर की मिट्टी ही ऐसी है। गाजीपुर के उसिया जैसे बड़े गांव की पैदाइश नजीर हुसैन ने जब पहली भोजपुरी फिल्म बनाई तो उसका नाम रखा-'हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो।Ó 
आप, समझ सकते हैं, गंगा हमारे लिए एक नदी का नाम नहीं, जल की धारा नहीं। वह जीवन है, संस्कृति है, हमारी सांस है। पर, हम अब उसकी ही सांस लेने में कोई हिचक नहीं रखते। अपने मन की गंदगी, समाज की गंदगी, विकास की गंदगी, सब उसके गोद में। विकास करते-करते हम अपनी मां के आंचल को ही मैला कर डाले। कितना पहले, राजकपूर उलाहना देता हैं-राम तेरी गंगा मैली हो गई और भूपेन दो-बड़ी पीड़ा से कहते हैं-ओ गंगा तुम बहती हो क्यों...। पर, मां तो मां ही है, हम कितना ही उसे गंदा करें, वह अपना स्वभाव तो नहीं छोड़ सकती। सफाई के नाम पर कितना भी हम रुपया बहा लें, लेकिन जब मन ही स्वच्छ नहीं तो गंगा को हम कैसे स्वच्छ रख सकते हैं?
संस्कृत कवि पंडितराज जगन्नाथ तो पहले ही भांप गए थे-भवत्या हि व्रात्याऽधम पतित पाषण्डपरिष
परित्राणस्नेह श्लथयितुमशक्य खलु यथा।
ममाप्येवं प्रेमा दुरितनिवहेष्वम्ब जगति
स्वभावोऽयं सर्वैरपि खलु यतो दुष्परिहर।।
जैसे आप पतित, अधम और पाखंडियों के उद्धार का बिरद नहीं छोड़ सकती, ऐसे ही मैं भी दुष्कर्म और अधमता का त्याग नहीं कर सकता. अरे मां, कोई कैसे अपने स्वाभाव का परित्याग कर सकता है।
लेकिन अब मां को कैसे याद करूं? अब तो गंगा बेसिन ही रोग का घर हो गया है। गंगा हमारे कर्मकांड से पुनर्जीवित नहीं होंगी। न गंगा को रोज-रोज नमामि कहने से। गंगा मरीं तो यह सभ्यता भी नहीं बचेगी? फिर तो हमारे अवशेष किसी म्यूजियम में रहेंगी और हमारी कहानी किसी इतिहास के किताब में दर्ज। सिंधु घाटी की तरह गंगा घाटी....।


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