मैकलुस्की ने बसाया था गंज


मैकलुस्कीगंज को कलकत्ते के कारोबारी टिमोथी मैकलुस्की ने बसाया था। उन्होंने ‘कॉलोनाइजेशन सोसाईटी आफ इंडिया लिमिटेड नाम की एक संस्था बनाई और इसी संस्था के नाम पर रातू महाराज से 10,000 एकड़ जमीन खरीदी। यह जमीन हरहू, दुल्ली, रामदगा, कोनका, लपरा, हेसालौंग, मायापुर, महुलिया एवं बसरिया गांव तक फैली है। तीन नवंबर 1934 को इस गांव की नींव रख थी। इसके बाद मैक्लुस्की ने प्रकृति के इस स्वर्ग में पूरे देश से एंग्लो-इंडियन समुदाय को यहां बसने का आमंत्रण दिया। 400 एंग्लो इंडियन परिवारों ने मैक्लुस्कीगंज में बसना तय किया। पर, पांच साल बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध ने संकट पैदा कर दिया और बहुत से एंग्लो इंडियन परिवार रोजगार के कारण पलायन करने लगे। कुछ ने अपने बंगले कोलकाता के भद्र बंगालियों को बेच दिया तो कुछ ऐसे ही छोड़कर चले गए। देश की आजादी के बाद लगभग 200 एंग्लो इंडियन परिवार ही यहां बचे थे। वर्ष 1957 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल जाकिर हुसैन ने सोसायटी के लोगों को सलाह दी कि जो लोग ब्रिटेन जाना चाहते हैं, उनके लिए सरकार व्यवस्था करेगी। राज्यपाल के सलाह पर 150 परिवार पुनः विदेश चले गए। अब मात्र दस परिवार ही बचे हुए हैं।


लेखकों को आकर्षित करता रहा मैकलुस्कीगंज

मैकलुस्कीगंज लेखकों-पत्रकारों को आकर्षित करता रहा। बांग्ला के प्रसिद्ध उपन्यासकार बुद्धदेव गुहा, बांग्ला व हिंद फिल्मों की अभिनेत्री अपर्णा सेन ने भी मैकलुस्कीगंज में एक-एक बंगला खरीदा था। बुद्धदेव गुहा के मैक्लुस्कीगंज पर लिखे बांग्ला उपन्यास ने मैक्लुस्कीगंज को कोलकातावासियों के बीच काफी लोकप्रिय बनाया। अभिनेत्री अपर्णा सेन अपने जर्नलिस्ट पति मुकुल शर्मा के साथ मैकलुस्कीगंज में काफी दिनों तक रहीं। अपर्णा सेन ने अपनी फिल्म 36 चौरंगी लेन की पटकथा मैकलुस्कीगंज से प्रेरित होकर ही लिखी थी। साठ के दशक में मैकलुस्कीगंज आए एंग्लोइंडियन कैप्टन डीआर कैमरोन ने मैकलुस्की के हाइलैंड गेस्ट हाउस को खरीद लिया और मैकलुस्कीगंज के पुराने गौरव को लौटाने के लिए सभी तरह के उपाय किए। बेरोजगारी झेल रहे एंग्लो इंडियन परिवारों के लिए आशा की किरण तब जगी जब वर्ष 1997 में बिहार के मनोनीत एंग्लो इंडियन विधायक अलफ्रेड डी रोजारियो ने डान बास्को एकेडमी की एक शाखा मैकलुस्कीगंज में खोल दी। डान बास्को एकेडमी ने इस विश्वविख्यात धरोहर को उजड़ने से बचा लिया। एंग्लों इंडियन परिवारों ने अपने बंगलों को पेइंग गेस्ट के रूप में बच्चों का हास्टल बना दिया।


यहां देखने के लिए बहुत कुछ है

रांची से 40 किमी दूर मैकलुस्कीगंज में प्रकृति का खूबसूरत नजारा है। कई बंगले हैं। यहां बीच-बीच में फिल्मों की शूटिंग भी होती रहती है। यहां डुगडुगी नदी है। जंगल है। लातेहार जाने वाले रास्ते पर निद्रा गांव है। यह टाना भगतों के लिए मशहूर है। मंदिर और मस्जिद एक ही परिसर में बने हुए हैं।

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