जानी-मानी लेखिका अरुंधती रॉय ने माओवाद और भारत सरकार की शल्य चिकित्सा करते हुए कहा कि समाज से तो नक्सली जुड़े हुए हैं, लेकिन सरकार आजादी के बाद से आज तक नहीं जुड़ सकी। जुड़ी होती तो माओवाद पैदा ही नहीं होता।
अरुधंती रविवार को एसडीसी सभागार में 'इंडिपेंडेंट पीपुल्स ट्राइब्यूनल ऑन आपरेशन ग्रीन हंटÓ विषय पर जनसुनवाई के बाद अपनी बात रख रही थीं। कार्यक्रम का आयोजन झारखंड वैकल्पिक विकास मंच ने किया था।
विकास और नरसंहार का क्या कोई रिश्ता है? अरुधंती ने कहा औपनिवेशिक युग में विकास के लिए नरसंहार होते रहे हैं। यह रिश्ता बहुत पुराना है। जो भी आज विकसित देश बने हैं, वे अपने पीछे नरसंहार छोड़ आए हैं। लैटिन अमेरिका, दक्षिण अफ्रिका आदि देशों में विकास के लिए बड़े पैमाने पर नरसंहार किए गए। अपने देश में भी सरकार विकास के लिए आदिवासियों का नरसंहार कर रही है। आपरेशन ग्रीन हंट इसीलिए चलाया जा रहा है। इसके जरिए सरकार आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण कर कारपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। वे धरती के गर्भ में छिपे बाक्साइट को कंपनियों के हवाले करना चाहते हैं। इससे किसका विकास होगा? देश का? नहीं। इससे कंपनियां मालामाल हो जाएंगी, हो रही हैं। सरकार के हाथों कुछ नहीं आएगा। रॉय ने कहा, देश में नई स्थिति है। अब अपने देश में ही आदिवासी क्षेत्रों में नई कालोनियां बनाई जा रही हैं। यह आंतरिक उपनिवेशवाद है।
अरुंधती ने कांग्रेस और भाजपा के समान चरित्र का उद्घाटन करते हुए कहा कि दोनों में एक ही तरह का जेनोसाइड है। यानी भाजपा के लिए हिंदुत्व पहले है और आर्थिक फासीवाद दूसरे नंबर पर है जबकि कांग्रेस के लिए पहले नंबर पर आर्थिक फासीवाद और दूसरे नंबर पर है हिंदुत्व। दोनों के लिए इंडिया चमक रहा है। यही वजह है कि देश के सौ करोड़पतियों के पास देश की संपत्ति का 25 प्रतिशत है।
रॉय ने 1986 के बाद का जिक्र करते हुए कहा कि देश और देश के बाहर कई घटनाएं घटीं। अफगानिस्तान पर अमेरिका ने अपना प्रभाव जमा लिया। उस समय पूरी दुनिया बदल गई। और, इसी समय दो घटनाएं हुई। बाबरी मस्जिद का ताला खुलना और देश में बाजार का प्रवेश। देश कहा खड़ा है, यह दिखाई दे रहा है। उदारीकरण का जिक्र करते हुए रॉय ने कहा कि नरसिंहा राव सरकार ने इंटरनेशल मानेटरी से लोन लिया। उसने दो शर्तों पर लोन दिया। 1. दुनिया के लिए बाजार खोलना व निजीकरण करना और 2. हमारे आदमी को वित्तमंत्री बनाना। उस समय रॉव ने मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाया, जिन्हें देश में उदारीकरण का जनक माना जाता है। देश कहां जा रहा, यह सबको पता है। इन बीस सालों में बीस रुपए रोज पर गुजारा करती है अस्सी करोड़ आबादी। इसी को हम विकास कह रहे हैं। यही कारण है कि न्यायालय, संसद, प्रेस सब कुछ खोखला हो गया है। लेकिन इन सबके बीच आशा की किरण भी हैं। रॉय ने झारखंड को संदर्भित करते हुए कहा कि यहां बड़े-बड़े कारपोरेट कंपनियों को छोटे-छोटे किसानों ने रोक रखा है। सौ एमओयू हुए हैं, लेकिन धरातल पर कोई नहीं उतरा। यहां के लोगों को मैं सलाम करती हूं। रॉय ने कहा, विकास होना चाहिए लेकिन दिल्ली में बैठकर योजना बनाने वालों की तर्ज पर नहीं। विकास के लिए आदिवासियों के पास जाना चाहिए। उनके मॉडल का विकास होना चाहिए। एक प्रश्न के जवाब में अरुंधती रॉय ने कहा कि हम माओवादियों के हर कदम का समर्थन नहीं करते हैं। इंदुवार फ्रांसिस व लुकस टेटे की हत्या की घोर निंदा करते हैं। यह यह क्रांतिकारिता नहीं है। कस्टडी में किसी की भी मौत हो, उसकी निंदा करती हूं।
इसके पहले शनिवार को बातचीत करते हुए राय ने कहा कि सरकार जंग चाहती है। ऐसा नहीं होता तो आजाद की हत्या नहीं होती। एक ओर बातचीत की तैयारी दूसरी ओर हत्या। यह दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती। उन्होंने छत्तीसगढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार चाहती है कि सलवा जुडूम के जरिए गांव के गांव खाली हो जाएं, ताकि जमीन को कारपोरेट कंपनियों के हवाले कर दिया जाए। एक सवाल के जवाब में कहा कि गरीबों का निवाला छिना जा रहा है। उनकी जमीन, जल, जंगल सबकुछ छीनी जा रही है। इसके लिए सरकार ने दो लाख जवानों को लगा रखा है। क्या लड़ाई गांधीवादी तरीके से नहीं लड़ी जा सकती। रॉय ने कहा, अब समय बदल गया है। वह दौर खत्म हो चुका है कि भूख हड़ताल से समस्या का समाधान होगा। जो खुद भूखे हैं, वह कैसे भूख हड़ताल करेंगे। अब तो लड़ाई दो तरफा है। कौन किस तरफ है या होगा, यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि सरकार असंवैधानिक तरीके से काम कर रही है। वह कानून का उल्लंघन कर आदिवासियों की जमीन छिन रही है, जबकि माओवादी संविधान की रक्षा कर रहे हैं। वे आदिवासियों के हक में लड़ रहे हैं। जल, जंगल, जमीन की रक्षा कर रहे हैं। कश्मीर के सवाल पर उन्होंने कहा कि कश्मीर समस्या बहुत पेचीदा हो गया है। समाधान के लिए हमें कश्मीरियों की आवाज सुननी होगी। समस्या का समाधान तभी होगा।
अरुधंती रविवार को एसडीसी सभागार में 'इंडिपेंडेंट पीपुल्स ट्राइब्यूनल ऑन आपरेशन ग्रीन हंटÓ विषय पर जनसुनवाई के बाद अपनी बात रख रही थीं। कार्यक्रम का आयोजन झारखंड वैकल्पिक विकास मंच ने किया था।
विकास और नरसंहार का क्या कोई रिश्ता है? अरुधंती ने कहा औपनिवेशिक युग में विकास के लिए नरसंहार होते रहे हैं। यह रिश्ता बहुत पुराना है। जो भी आज विकसित देश बने हैं, वे अपने पीछे नरसंहार छोड़ आए हैं। लैटिन अमेरिका, दक्षिण अफ्रिका आदि देशों में विकास के लिए बड़े पैमाने पर नरसंहार किए गए। अपने देश में भी सरकार विकास के लिए आदिवासियों का नरसंहार कर रही है। आपरेशन ग्रीन हंट इसीलिए चलाया जा रहा है। इसके जरिए सरकार आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण कर कारपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। वे धरती के गर्भ में छिपे बाक्साइट को कंपनियों के हवाले करना चाहते हैं। इससे किसका विकास होगा? देश का? नहीं। इससे कंपनियां मालामाल हो जाएंगी, हो रही हैं। सरकार के हाथों कुछ नहीं आएगा। रॉय ने कहा, देश में नई स्थिति है। अब अपने देश में ही आदिवासी क्षेत्रों में नई कालोनियां बनाई जा रही हैं। यह आंतरिक उपनिवेशवाद है।
अरुंधती ने कांग्रेस और भाजपा के समान चरित्र का उद्घाटन करते हुए कहा कि दोनों में एक ही तरह का जेनोसाइड है। यानी भाजपा के लिए हिंदुत्व पहले है और आर्थिक फासीवाद दूसरे नंबर पर है जबकि कांग्रेस के लिए पहले नंबर पर आर्थिक फासीवाद और दूसरे नंबर पर है हिंदुत्व। दोनों के लिए इंडिया चमक रहा है। यही वजह है कि देश के सौ करोड़पतियों के पास देश की संपत्ति का 25 प्रतिशत है।
रॉय ने 1986 के बाद का जिक्र करते हुए कहा कि देश और देश के बाहर कई घटनाएं घटीं। अफगानिस्तान पर अमेरिका ने अपना प्रभाव जमा लिया। उस समय पूरी दुनिया बदल गई। और, इसी समय दो घटनाएं हुई। बाबरी मस्जिद का ताला खुलना और देश में बाजार का प्रवेश। देश कहा खड़ा है, यह दिखाई दे रहा है। उदारीकरण का जिक्र करते हुए रॉय ने कहा कि नरसिंहा राव सरकार ने इंटरनेशल मानेटरी से लोन लिया। उसने दो शर्तों पर लोन दिया। 1. दुनिया के लिए बाजार खोलना व निजीकरण करना और 2. हमारे आदमी को वित्तमंत्री बनाना। उस समय रॉव ने मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाया, जिन्हें देश में उदारीकरण का जनक माना जाता है। देश कहां जा रहा, यह सबको पता है। इन बीस सालों में बीस रुपए रोज पर गुजारा करती है अस्सी करोड़ आबादी। इसी को हम विकास कह रहे हैं। यही कारण है कि न्यायालय, संसद, प्रेस सब कुछ खोखला हो गया है। लेकिन इन सबके बीच आशा की किरण भी हैं। रॉय ने झारखंड को संदर्भित करते हुए कहा कि यहां बड़े-बड़े कारपोरेट कंपनियों को छोटे-छोटे किसानों ने रोक रखा है। सौ एमओयू हुए हैं, लेकिन धरातल पर कोई नहीं उतरा। यहां के लोगों को मैं सलाम करती हूं। रॉय ने कहा, विकास होना चाहिए लेकिन दिल्ली में बैठकर योजना बनाने वालों की तर्ज पर नहीं। विकास के लिए आदिवासियों के पास जाना चाहिए। उनके मॉडल का विकास होना चाहिए। एक प्रश्न के जवाब में अरुंधती रॉय ने कहा कि हम माओवादियों के हर कदम का समर्थन नहीं करते हैं। इंदुवार फ्रांसिस व लुकस टेटे की हत्या की घोर निंदा करते हैं। यह यह क्रांतिकारिता नहीं है। कस्टडी में किसी की भी मौत हो, उसकी निंदा करती हूं।
इसके पहले शनिवार को बातचीत करते हुए राय ने कहा कि सरकार जंग चाहती है। ऐसा नहीं होता तो आजाद की हत्या नहीं होती। एक ओर बातचीत की तैयारी दूसरी ओर हत्या। यह दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती। उन्होंने छत्तीसगढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार चाहती है कि सलवा जुडूम के जरिए गांव के गांव खाली हो जाएं, ताकि जमीन को कारपोरेट कंपनियों के हवाले कर दिया जाए। एक सवाल के जवाब में कहा कि गरीबों का निवाला छिना जा रहा है। उनकी जमीन, जल, जंगल सबकुछ छीनी जा रही है। इसके लिए सरकार ने दो लाख जवानों को लगा रखा है। क्या लड़ाई गांधीवादी तरीके से नहीं लड़ी जा सकती। रॉय ने कहा, अब समय बदल गया है। वह दौर खत्म हो चुका है कि भूख हड़ताल से समस्या का समाधान होगा। जो खुद भूखे हैं, वह कैसे भूख हड़ताल करेंगे। अब तो लड़ाई दो तरफा है। कौन किस तरफ है या होगा, यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि सरकार असंवैधानिक तरीके से काम कर रही है। वह कानून का उल्लंघन कर आदिवासियों की जमीन छिन रही है, जबकि माओवादी संविधान की रक्षा कर रहे हैं। वे आदिवासियों के हक में लड़ रहे हैं। जल, जंगल, जमीन की रक्षा कर रहे हैं। कश्मीर के सवाल पर उन्होंने कहा कि कश्मीर समस्या बहुत पेचीदा हो गया है। समाधान के लिए हमें कश्मीरियों की आवाज सुननी होगी। समस्या का समाधान तभी होगा।
बहुत अच्छी प्रस्तुति, संजय भैया. We need to understand this lady. She is saying something very valuable.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...सच बोलने की इस हिम्मत के लिए भी मुबारक.....!!
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