हॉकी की धरती पर क्रिकेट का जुनून

संजय कृष्ण
क्रिकेट की दीवानगी बुधवार की रात हरमू रोड में भी दिखी। पीली रौशनी में धौनी के घर का बाहरी हिस्सा नहाया हुआ था तो सड़क भी पीताभ हो चुका था। आकाश का चांद अलबत्ता दूधिया रोशनी फेंक रहा था। शायद, दूर क्षितिज में चांद को अपने क्रिकेट टीम के धुरंधरों को देखने की व्याकुलता हो...। खैर, हम थे, भीड़ थी, शोर था, जोश था, जुनून थी और था जज्बा। 
जमीं और आसमां के बीच के खालीपन को शोर भर रहा था। सड़क को बांटने वाले डिवाइडर से लेकर आस-पास की दीवारों तक में तील रखने की जगह नहीं थी। धौनी-धौनी का शोर मौसम में गर्मी पैदा कर रहा था। यह मत सोचिए कि यहां महेंद्र सिंह धौनी की एक झलक पाने के लिए सिर्फ  क्रिकेट के जुनूनी युवा ही थे, 45-50 की उम्र लांघ रहीं सिबयंती लकड़ा से लेकर छह साल की बिटिया आयशा तक...। सभी एक ही रंग में रंगे थे। वह रंग था क्रिकेट का। हॉकी की धरती पर क्रिकेट का जुनून चढ़कर बोल रहा था...।
हजारों की भीड़ यहां संध्या सात बजे से ही डट गई थी। बाधित हो रही आवाजाही के लिए ट्रैफिक पुलिस तो थी ही, लेकिन उसे यहां की ट्रैफिक संभालने में भी खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी। फिर भी यहां भीड़ तो भीड़ थी। रह-रहकर कभी सीटियां बजा रही थी तो कभी हा हू की आवाज निकाल रही थी। शायद, अब धौनी सुन लें...। तभी भीड़ से किसी ने कहा, भगवान सुन सकता है, भैया धौनी नहीं।
भीड़ से निकल डिवाइडर आते हैं तो यहां महिलाओं का हुजूम था। सिबयंती लकड़ा हरमू की ही थीं। धौनी की एक झलक पाने के लिए न जाने कब से खड़ी थीं। उम्र यही कोई पचास के करीब। बताती हैं, एक झलक दिख जाए तो चली जाऊं। उन्हीं की बगल में खड़ी मार्गेट बाखला मेरी ओर इशारा कर कहती हैंं, इधर आइए, हम हैं क्रिकेट के दीवाने। उम्र यही कोई 45 साल। उनकी दीवानगी पर कोई भी युवा शरमा जाए। साढ़े सात बज रहे थे। पूछा कब से खड़ी हैं, बोली एक घंटा हो गया।
आयशा की उम्र छह साल थी। पिता के कंधे पर उचक-उचक कर एक झलक देखने की असफल कोशिश कर रही थी। पिता बोले, घर से जिद कर आई है। धौनी अपने घर तो साढ़े पांच बजे पहुंच गए। सीधे एयरपोर्ट से अपने घर अपनी गाड़ी चलाते हुए। इंडियन टीम के कुछ खिलाड़ी सात बजे उनके घर दावत उड़ाने पहुंचे। यह खबर जब फैली तो भीड़ बढ़ती ही गई। डेढ़ घंटे से खड़े-खड़े एक दर्शक से रहा नहीं गया। कहा, दीखिए जाएगा। डेढ़ घंटा हो गया, अब चला जाए। एक दूसरे व्यक्ति का सीना थोड़ा गर्व से चौड़ा हो गया। रांची के अतीत को याद करते हुए बोला, रांची क्या से क्या हो गया। पहले एक छोटा शहर था। पर आज इसकी पहचान अंतरराष्ट्रीय हो गई। वहीं पास खड़ा एक इंस्पेक्टर बोला, उससे क्या हो जाएगा। रांची की गरीबी तो नहीं दूर हो जाएगी...
शोर-शराबे के बीच घड़ी अपनी रफ्तार से चल रही थी। नौ बजे थे कि युवाओं का धैर्य जवाब देने लगा। सो, किसी ने बस की ओर अपनी टोपी उछाल दी तो किसी ने एक ढेला धौनी के घर की ओर ...। इतने में धौनी के पिता पान सिंह और जीजा दोनों गेट से बाहर निकले और पुलिस को हिदायत दे अपने घर में समा गए...। हालांकि युवाओं ने जैसे ही ढेला फेंका था, पुलिस तुरत हरकत में आ गई और हवा में लाठियां लहराने लगी...भीड़ का रेला अपने पीछे वालों को धकेलते सड़क की ओर भागा....। थोड़ा मामला शांत हुआ तो एक पुलिस वाला बोला, अब बताइए, हम लोग लाठी चला दें तो आप लोग कहिएगा की पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया...। खैर, जब 10.30 बजा तो भीड़ से आवाज आई, अरे बस का ड्राइवर बैठ गया। लगता है टीम अब निकलेगी।  दूसरे ने कहा, अरे उ कब से बैठा है। चलो घर चलें। पर, थोड़ी देर बाद, 10.45 पर गेट पर हलचल हुई। गेट खुला और धीरे-धीरे खिलाड़ी बस के अंदर समाते चले गए..युवराज को देख लड़कियां ..युवराज-युवराज चिल्लाने लगीं....पर खिलाडिय़ों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। काले शीशे वाले बस की ओर टकटकी लगाई देख रही थीं, पर भीतर कुछ दिख नहीं रहा था...।
धौनी के घर से बस सीधे रेडिशन ब्लू की ओर चल पड़ी। ओवरब्रिज होते हुए। पीछे-पीछे पुलिस तो मोटरसाइकिल से युवाओं की टोली भी पीछा करते हुए... होटल में भी दीदार के लिए उमड़ पड़े लोग ...बस से निकलते ही होटल के अंदर प्रवेश करते ही ईशांत और युवराज झूमते हुए अंदर समा गए। भुवनेश्वर ने जरूर थोड़ी प्रतिक्रिया दी और हंसते हुए हाथ हिलाते होटल की लॉबी में चले गए...।