काशी नरेश संग की थी भारतेंदु ने बाबा धाम की यात्रा


आज से सावन चढ़ गया। बाबा धाम की यात्रा भी प्रारंभ हो चुकी है। एक यात्रा हिंदी के युग निर्माता भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी काशी नरेश के संग की थी, जिसका पूरा विवरण 1880 में हरिश्चंद्र चंद्रिका और मोहन चंद्रिका में छपा था।
भारतेंदु की यात्रा दिन के दो बजे बनारस से ट्रेन द्वारा शुरू हुई। सांझ हुई तो बक्सर पहुंचे। आगे बढ़ तो एक बड़ा विघ्न हुआ। जिस गाड़ी पर महाराज सवार थे, उसके धुरे घिसने से गर्म होकर शिथिल हो गए। भारतेंदु लिखते हैं, 'वह गाड़ी छोड़ देनी पड़ी। इधर तो यह आफत, उधर फरऊन क्या फरऊन के भी बाबाजान रेलवालों को जल्दी, गाड़ी कभी आगे हटै, कभी पीछे। खैर, किसी तरह सब ठीक हुआ।Ó...'अब आगे बढ़ते-बढ़ते सबेरा ही होने लगा। निद्र वधू का संयोग भाग्य में न लिखा था, न हुआ। एक तो सेंकेड क्लास की एक ही गाड़ी, उसमें भी लेडिज कंपार्टमेंट निकल गया, बाकी जो कुछ बचा उसमें बारह आदमी। गाड़ी भी ऐसी टूटी फूटी, जैसी हिंदुओं की किस्मत और हिम्मत।Ó
कैसी रेल थी, क्या व्यवस्था था, इस पर भी भारतेंदु तंज कसते हुए लिखते हैं, 'इस कम्बख्त गाड़ी से और तीसरे दर्जे की गाड़ी से कोई फर्क नहीं, सिर्फ एक धोके की टट्टी का शीशा खिड़कियों में लगा था। न चौड़े बेंच न गद्दा, न बाथरूम। जो लोग मामूली से तिगुना रुपया दें, उनको ऐसी मनहूस गाड़ी पर बिठलाना, जिसमें कोई बात भी आराम की न हो, रेलवे कंपनी की सिर्फ बेइंसाफी ही नहीं वरन धोखा देना है। क्यों नहीं ऐसी गाडिय़ों को आग लगाकर जला देती।Ó
अंगरेज किस तरह अपने लोगों के साथ पक्षपात करते थे। इसकी भी बानगी देखिए...'लेडीज कंपार्टमेंट खाली था, मैंने गार्ड से कितना कहा कि इसमें सोने दें, न माना। और दानापुर से दो चार नीम अंगरेज (लेडी नहीं सिफै लैड)मिले। उनको बेतकल्लुफ उसमें बैठा दिया। फस्र्ट क्लास की सिर्फ दो गाड़ी-एक में महाराज, दूसरी में आधी लेडीज, आधी में अंगरेज। अब कहां सौवें कि नींद आवै।Ó खैर, किसी तरह भारतेंदु और काशी नरेश बैजनाथ धाम पहुंचे।
यहां पहुंचकर भारतेंदु ने बैजनाथ गांव का खाका खींचा है, 'बैजनाथ जी एक गांव है, जो अच्छी तरह आबाद है। ...लोग काले-काले और हतोत्साह व गरीब हैं। यहां सौंथाल (संताल) एक जंगली जाति होती है। खाने-पीने की जरूरी चीजें यहां मिल जाती हैं।Ó इसके बाद बैजनाथ की कहानी का वर्णन है। रावण प्रसंग, किसने मंदिर को बनवाया, निज मंदिर के लेख, सभा मंडप के लेख को दिया गया है। अंत में लिखा है, 'कहीं जैन मूर्तियां हिंदू मूर्ति बनकर पूजती हैं। दो भैरव की मूर्ति, जिससे एक तो किसी जैन सिद्ध की और एक जैन क्षेत्रपाल की है, बड़ी ही सुंदर है। लोग कहते हैं कि भागलपुर के किसी तालाब से निकली थी।Ó