कोरोना का डर पहुंचा रहा झारखंड के पर्यावरण को फायदा

डॉ  नितीश प्रियदर्शी
पर्यावरणविद

24 मार्च से भारत में लागू देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश के कई हिस्सों में भी इंसानी गतिविधियों की रफ्तार थमी है और इस दौरान प्रकृति अपनी मरम्मत खुद करती नजर आ रही है।  गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लगने और ज्यादातर कारखानें बंद होने के बाद दुनिया समेत देश के कई शहरों की हवा की क्वालिटी में जबरदस्त सुधार देखने को मिला है। जिन शहरों की एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI खतरे के निशान से ऊपर होते थे। वहां आसमान गहरा नीला दिखने लगा है।
झारखण्ड के भी  शहरों में इस लॉक डाउन का प्रभाव दिखा रहा है। अगर रांची की बात ले तो लगता है शायद इसी मौसम के चलते अंग्रेजों ने रांची को बिहार झारखण्ड का उस वक़्त ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाया था। ऐसा लगता है मौसम के हिसाब से रांची आज से ५० साल पीछे चला गया है। तापमान ज्यादा होने पे भी उतनी गर्मी नहीं लग रही है जितनी पिछले साल थी। बता दें कि कई महीनों से झारखण्ड  में वाहन प्रदूषण के खिलाफ जांच अभियान चलाया जा रहा था।  जगह-जगह दोपहिये एवं चार पहिये वाहन,  मिनी बस और टेंपू समेत विभिन्न कॉमर्शियल वाहनों के प्रदूषण स्तर को चेक किया जा रहा था और निर्धारित मात्रा से अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर कार्रवाई की जा रही थी।  इसके बाद भी न तो वाहनों द्वारा छोड़े जा रहे प्रदूषणकारी गैसों की मात्रा कम हो रही थी और न ही वायु प्रदूषण में कमी आ रही थी।  लेकिन, कोरोना के भय से सड़क पर चलने वाले वाहनों की संख्या में आयी भारी गिरावट आने के कारण पिछले एक महीने  से इसमें काफी सुधार दिखता है।  वाहनों की आवाजाही न होने से सड़कों से अब धूल के गुबार नहीं उठ रहे हैं। झारखण्ड का एयर क्वालिटी इंडेक्स वायु प्रदुषण के कम हो जाने से  ५० - ७० के बीच आ गया है जो पिछले साल १५० से २५० तक रहता था।  ये हवा मनुष्य के स्वस्थ लिए फायदेमंद है।  वायु और धुल प्रदुषण के काफी कम हो जाने से आसमान  में रात को सारे तारे दिख रहे हैं जो पहले नहीं दीखते थे। ध्वनि प्रदुषण तो इतना कम है की आपकी आवाज दूर तक सुनाई दे रही है। चिड़ियों का चहचहाना सुबह से ही शुरू हो जा रहा है।  कुछ ऐसी भी चिड़ियाँ नज़र आ रही हैं जो पहले कम दिखती थीं। जहाँ पहले झारखण्ड में फ़रवरी से ही भूमिगत जल नीचे चला जाता था और चापाकल सूखने लगते थे इस वर्ष स्थिति काफी अच्छी है।  कम तापमान होने की वजह से मिट्टी से वाष्पीकरण काफी कम है वहीं बीच बीच में बारिश हो जाने से मिट्टी में नमी बनी  हुई है। लॉक डाउन की वजह से बड़े बड़े मॉल और होटल्स बंद हैं जिसकी वजह से भूमिगत जल का दोहन भी कम हो रहा है। भूमिगत जल का दुरुपयोग कम हो रहा है।  अगर अभी भूमिगत जल नीचे चला जाता तो स्थिति और भी भयावह हो जाती।  लोग पानी के लिए सड़कों पे उतरते।  इस लॉक डाउन से एक और बड़ा फायदा नदियों को होगा।  हर साल प्रदूषित रहने वाली नदियां अब खुल के सांस ले पा रही होंगी।  पेड़ एवं फूल पौधे भी खुल के सांस ले रहे होंगे क्योंकि उनके पत्तों पे अब कोई धुल कण नहीं बैठ रहा होगा। आने वाले मौसम पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।  तापमान हो सकता है की औसत से कम रहे ।  गाड़ियों और फैक्टरियों के बंद होने से ग्रीन हाउस गैस जो ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है का उत्सर्जन भी नहीं के बराबर होगा।  इसमें दो राय नहीं की इस लॉक  डाउन की वजह से गरीब मजदूरों को मृत्यु तुल्य कष्ट  हो रहा है और बहुत लोग अवसाद में हैं लेकिन अगर पर्यावरण को देखे तो ये हमे अभी सुकून ही दे रही है।