रांची का फिरायालाल चौक अब अल्बर्ट एक्का चौक कहा जाता है। अल्बर्ट उन
शहीदों में शुमार हैं, जिन्होंने अपना बलिदान देकर बांग्लादेश को
पूर्वी पाकिस्तान से आजाद कराया। अल्बर्ट को मरणोपरांत परमवीर चक्र से
सम्मानित किया गया। बांग्लादेश की आजादी में अल्बर्ट अकेले नहीं थे,
रांची और आस-पास के करीब 26 जवानों ने अपनी जान की आहुति दी थी।
बंगलादेश की आजादी में भारत की बड़ी भूमिका रही। भारती
देश में भी एक उत्साह था। सैनिकों ने देश का मस्तक ऊंंचा किया था। सैनिकों के प्रति देश नतमस्तक था। रांची में शहीद परिवारों को सहयोग देने के लिए होड़ लग गई थी। 26 शहीद परिवारों को पांच-पांच हजार की मुआवजा राशि तो दी ही गई। जमीन, नौकरी आदि का आश्वासन भी सरकार की ओर से दिया गया। 21 जनवरी को रांची के बारी पार्क में एक समारोह का आयोजन किया गया। इसमें 7 लाख, पांच हजार रुपयों का वितरण किया गया। बिहार के राज्यपाल देवकांत बरुआ ने शहीद परिवार वालों को ये रुपये दिए। परमवीर चक्र विजेता अल्बर्ट एक्का के परिवार को राज्यपाल ने अपनी ओर से 25 हजार रुपये देने की घोषणा की। उनके गांव में पांच एकड़ भूमि भी दी गई, जिसका पर्चा 21 जनवरी को ही राज्यपाल ने अल्बर्ट एक्का के पिता को दिया। उस समय श्रीमति डेविस ने श्रीमति एक्का के लिए डेड़ सौ रुपये मासिक की नौकरी की व्यवस्था की। कहा कि जब वे चाहेंगी, उन्हें यह सुविधा मुहैय्या करा दी जाएगी। यही नहीं, अल्बर्ट एक्का की स्मृति में वेलफेयर सिनेमा के पास स्थित सरकारी भवन का नाम भी अल्बर्ट एक्का के नाम पर किए जाने की सहमति बनी।
रांची के तत्कालीन डीसी ईश्वर चंद्र कुमार ने भी शहीद परिवार वालों के लिए कई योजनाओं की घोषणा की। कुमार ने बताया कि '12 शहीदों के परिवार वालों को नौकरी देने की बात तय हो गई है। तीन लोगों ने शिक्षक बनने की चाहना की है। जिला परिषद की ओर से उन्हें शिक्षक का पद दिया जाएगा। 4 व्यक्तियों ने एचइसी में नौकरी करने की इच्छा व्यक्त की है। उन्हें टाउन प्रशासकीय विभाग में नौकरी दिलाने के लिए एचइसी के अधिकारियों से मैंने बात कर ली है। 3 व्यक्तियों को पुलिस की नौकरी में बहाल कर दिया जाएगा। घर बनाने के लिए जो खर्च पड़ेगा उसके लिए मैंने रांची नगर पालिका के अध्यक्ष शिव नारायण जायसवाल से बातें कर ली है। वे खर्च अपने पास से देने को प्रस्तुत हैं।Ó
शहीद परिवारों की सहायता के लिए कई संगठन भी आए और आर्थिक सहायता दी। कुमार ने इसकी भी जानकारी दी, '5.51 लाख रुपये नागरिकों एवं ग्रामीणों द्वारा, 51हजार विजय मेले से आई राशि, 11 हजार विधवा कल्याण हेतु श्रीमती अरोड़ा को प्रेषित, 11 हजार श्री बागची द्वारा, 27,800 रोमन कैथोलिक द्वारा, 3,500 एक अन्य चर्च द्वारा, 2,500 छात्राओं द्वारा एकत्र श्रीमती मेरी लकड़ा के मार्फत से प्राप्त, 12,200 बीआइटी मेसरा, पांच हजार विकास विद्यालय, 7,500 एसपी रांची द्वारा आइजी को प्रेषित, 20,000 एजी द्वारा सेंट?ल आफिस को प्रेषित।Ó इस सभा में यह भी जानकारी दी गई कि श्रीमती डेविस के अमेरीकी परिचित व्यक्ति को जब ज्ञात हुआ कि वे राष्टीय सुरक्षा कोष के लिए धन एकत्रित कर रही है तो भूतपूर्व अमेरिकी सिनेटर श्री डॉन हेवार्ड ने 40 डॉलर की सहायता श्रीमती डेविस के पास भेजी। इसके अतिरिक्त श्रीराम ग्रुप द्वारा 20 लाख रुपये तथा एसीसी ग्रुप द्वारा सात लाख रुपये का दान दिया गया।Ó डा. डेविस कांके मन:चिकित्सा केंद्र के निदेशक थे। बाद में वहीं पर उन्होंने अपना अलग अस्पताल खोल लिया था।
य सैनिकों की जांबाजी का ही यह नतीजा था कि पाकिस्तान की तानाशाह सैनिकों को समर्पण करना पड़ा। 14 दिन के घमासान युद्ध के बाद 1971 में 16 दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में पाकिस्तान के सपने जमींदोज हो गए। 7 जनवरी, 1972 को रांची के रोटरी हॉल में ले. जनरल जगदीश सिंह अरोड़ा ने पूरी कहानी बयां की। उनकी गाथा को तब 'आदिवासीÓ पत्रिका ने संपादित कर छापा था। एक अंश देखिए, 'भारतीय सेना का लौह शिकंजा कसने के साथ हमारे दिलेर एवं दक्ष हवाबाजों ने ढाका में ठीक निशाने पर पाकिस्तान गवर्नर डॉ. मल्लिक के सरकारी निवास-स्थान पर बम बरसाए। हमने ढाका एवं इस्लामाबाद में हुई बातचीत भी सुन लिया। जब तीसरी बार हमारे चतुर हवाबाजों ने बम की वर्षा की तो गवर्नर के होश फाख्ता हो गए तो उसकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया और होटल इंटर कांटिनेेंटल में उसने शरण मांगी।Ó आगे बताया, 'हमारी पहली टुकड़ी ने ढाका छावनी के करीब पहुंचकर गोलाबारी शुरू की। उस समय उनके पास चार तोपें थीं, लेकिन पाकिस्तानियों का हौसला पस्त हो चुका था।Ó... '15 दिसंबर को प्रात:काल पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने संदेश भेजा कि वह युद्ध विराम चाहते हैं, हमने जवाब दिया कि युद्ध विराम नहीं। कल सवेरे 9 बजे तक आत्मसमर्पण करें।Ó हुआ भी यही। पाकिस्तान के पास अब कोई विकल्प नहीं था। रांची के जवानों की कहानियां यहीं तक नहीं है। पाकिस्तान फौज के दुर्जेय समझे जाने वाले गढ़ जैसोर को रांची स्थित 9 वीं पैदल डिवीजन ने मुक्त कराया था। बांग्लादेश आजाद हो गया तो अपने देश में भी जश्न का माहौल था। यह जश्न पत्र-पत्रिकाओं में झलका। नए साल का स्वागत आजादी के तराने के साथ शुरू हुआ। आदिवासी के उसी अंक में रोज टेटे ने खडिय़ा में अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, जिसे हिंदी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया गया। रोज ने लिखा, जय मिली देश को, हार गया दुश्मन। जन्मा नया देश, नया सूर्य उदित हुआ, नए वर्ष में। रामकृष्ण प्रसाद 'उन्मनÓ ने उत्साहित होकर विजय गीत लिखा, 'लोकतंत्र की विजय हो गई, हार गई है तानाशाही, हम आगे बढ़ते जाते हैं, हर पग पर है विजय हमारी।Ó आचार्य शशिकर ने 'मुक्त कंठÓ से गाया, मुक्त कंठ, गाओ यह गान, धरा मुक्त है, मुक्त है आसमान। प्रो. रामचंद्र वर्मा 'विजय पर्वÓ का संदेश लेकर आए, 'वतन के सपूतों, खुशी अब मनाओ, विजय पर्व आया, विजय गीत गाओ। पराजित हुई शत्राु सेना समर में, फहरती हमारी ध्वजा अब गगन में। जहां में हमारा सुयश छा गया है, धवल कीर्ति को तुम अमर अब बनाओ।Ó
संजय कृष्ण
बंगलादेश की आजादी में भारत की बड़ी भूमिका रही। भारती
देश में भी एक उत्साह था। सैनिकों ने देश का मस्तक ऊंंचा किया था। सैनिकों के प्रति देश नतमस्तक था। रांची में शहीद परिवारों को सहयोग देने के लिए होड़ लग गई थी। 26 शहीद परिवारों को पांच-पांच हजार की मुआवजा राशि तो दी ही गई। जमीन, नौकरी आदि का आश्वासन भी सरकार की ओर से दिया गया। 21 जनवरी को रांची के बारी पार्क में एक समारोह का आयोजन किया गया। इसमें 7 लाख, पांच हजार रुपयों का वितरण किया गया। बिहार के राज्यपाल देवकांत बरुआ ने शहीद परिवार वालों को ये रुपये दिए। परमवीर चक्र विजेता अल्बर्ट एक्का के परिवार को राज्यपाल ने अपनी ओर से 25 हजार रुपये देने की घोषणा की। उनके गांव में पांच एकड़ भूमि भी दी गई, जिसका पर्चा 21 जनवरी को ही राज्यपाल ने अल्बर्ट एक्का के पिता को दिया। उस समय श्रीमति डेविस ने श्रीमति एक्का के लिए डेड़ सौ रुपये मासिक की नौकरी की व्यवस्था की। कहा कि जब वे चाहेंगी, उन्हें यह सुविधा मुहैय्या करा दी जाएगी। यही नहीं, अल्बर्ट एक्का की स्मृति में वेलफेयर सिनेमा के पास स्थित सरकारी भवन का नाम भी अल्बर्ट एक्का के नाम पर किए जाने की सहमति बनी।
रांची के तत्कालीन डीसी ईश्वर चंद्र कुमार ने भी शहीद परिवार वालों के लिए कई योजनाओं की घोषणा की। कुमार ने बताया कि '12 शहीदों के परिवार वालों को नौकरी देने की बात तय हो गई है। तीन लोगों ने शिक्षक बनने की चाहना की है। जिला परिषद की ओर से उन्हें शिक्षक का पद दिया जाएगा। 4 व्यक्तियों ने एचइसी में नौकरी करने की इच्छा व्यक्त की है। उन्हें टाउन प्रशासकीय विभाग में नौकरी दिलाने के लिए एचइसी के अधिकारियों से मैंने बात कर ली है। 3 व्यक्तियों को पुलिस की नौकरी में बहाल कर दिया जाएगा। घर बनाने के लिए जो खर्च पड़ेगा उसके लिए मैंने रांची नगर पालिका के अध्यक्ष शिव नारायण जायसवाल से बातें कर ली है। वे खर्च अपने पास से देने को प्रस्तुत हैं।Ó
शहीद परिवारों की सहायता के लिए कई संगठन भी आए और आर्थिक सहायता दी। कुमार ने इसकी भी जानकारी दी, '5.51 लाख रुपये नागरिकों एवं ग्रामीणों द्वारा, 51हजार विजय मेले से आई राशि, 11 हजार विधवा कल्याण हेतु श्रीमती अरोड़ा को प्रेषित, 11 हजार श्री बागची द्वारा, 27,800 रोमन कैथोलिक द्वारा, 3,500 एक अन्य चर्च द्वारा, 2,500 छात्राओं द्वारा एकत्र श्रीमती मेरी लकड़ा के मार्फत से प्राप्त, 12,200 बीआइटी मेसरा, पांच हजार विकास विद्यालय, 7,500 एसपी रांची द्वारा आइजी को प्रेषित, 20,000 एजी द्वारा सेंट?ल आफिस को प्रेषित।Ó इस सभा में यह भी जानकारी दी गई कि श्रीमती डेविस के अमेरीकी परिचित व्यक्ति को जब ज्ञात हुआ कि वे राष्टीय सुरक्षा कोष के लिए धन एकत्रित कर रही है तो भूतपूर्व अमेरिकी सिनेटर श्री डॉन हेवार्ड ने 40 डॉलर की सहायता श्रीमती डेविस के पास भेजी। इसके अतिरिक्त श्रीराम ग्रुप द्वारा 20 लाख रुपये तथा एसीसी ग्रुप द्वारा सात लाख रुपये का दान दिया गया।Ó डा. डेविस कांके मन:चिकित्सा केंद्र के निदेशक थे। बाद में वहीं पर उन्होंने अपना अलग अस्पताल खोल लिया था।
य सैनिकों की जांबाजी का ही यह नतीजा था कि पाकिस्तान की तानाशाह सैनिकों को समर्पण करना पड़ा। 14 दिन के घमासान युद्ध के बाद 1971 में 16 दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में पाकिस्तान के सपने जमींदोज हो गए। 7 जनवरी, 1972 को रांची के रोटरी हॉल में ले. जनरल जगदीश सिंह अरोड़ा ने पूरी कहानी बयां की। उनकी गाथा को तब 'आदिवासीÓ पत्रिका ने संपादित कर छापा था। एक अंश देखिए, 'भारतीय सेना का लौह शिकंजा कसने के साथ हमारे दिलेर एवं दक्ष हवाबाजों ने ढाका में ठीक निशाने पर पाकिस्तान गवर्नर डॉ. मल्लिक के सरकारी निवास-स्थान पर बम बरसाए। हमने ढाका एवं इस्लामाबाद में हुई बातचीत भी सुन लिया। जब तीसरी बार हमारे चतुर हवाबाजों ने बम की वर्षा की तो गवर्नर के होश फाख्ता हो गए तो उसकी सरकार ने इस्तीफा दे दिया और होटल इंटर कांटिनेेंटल में उसने शरण मांगी।Ó आगे बताया, 'हमारी पहली टुकड़ी ने ढाका छावनी के करीब पहुंचकर गोलाबारी शुरू की। उस समय उनके पास चार तोपें थीं, लेकिन पाकिस्तानियों का हौसला पस्त हो चुका था।Ó... '15 दिसंबर को प्रात:काल पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने संदेश भेजा कि वह युद्ध विराम चाहते हैं, हमने जवाब दिया कि युद्ध विराम नहीं। कल सवेरे 9 बजे तक आत्मसमर्पण करें।Ó हुआ भी यही। पाकिस्तान के पास अब कोई विकल्प नहीं था। रांची के जवानों की कहानियां यहीं तक नहीं है। पाकिस्तान फौज के दुर्जेय समझे जाने वाले गढ़ जैसोर को रांची स्थित 9 वीं पैदल डिवीजन ने मुक्त कराया था। बांग्लादेश आजाद हो गया तो अपने देश में भी जश्न का माहौल था। यह जश्न पत्र-पत्रिकाओं में झलका। नए साल का स्वागत आजादी के तराने के साथ शुरू हुआ। आदिवासी के उसी अंक में रोज टेटे ने खडिय़ा में अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, जिसे हिंदी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया गया। रोज ने लिखा, जय मिली देश को, हार गया दुश्मन। जन्मा नया देश, नया सूर्य उदित हुआ, नए वर्ष में। रामकृष्ण प्रसाद 'उन्मनÓ ने उत्साहित होकर विजय गीत लिखा, 'लोकतंत्र की विजय हो गई, हार गई है तानाशाही, हम आगे बढ़ते जाते हैं, हर पग पर है विजय हमारी।Ó आचार्य शशिकर ने 'मुक्त कंठÓ से गाया, मुक्त कंठ, गाओ यह गान, धरा मुक्त है, मुक्त है आसमान। प्रो. रामचंद्र वर्मा 'विजय पर्वÓ का संदेश लेकर आए, 'वतन के सपूतों, खुशी अब मनाओ, विजय पर्व आया, विजय गीत गाओ। पराजित हुई शत्राु सेना समर में, फहरती हमारी ध्वजा अब गगन में। जहां में हमारा सुयश छा गया है, धवल कीर्ति को तुम अमर अब बनाओ।Ó
संजय कृष्ण
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