फादर कामिल बुल्के: कुछ यादें कुछ बातें

डा. दिनेश्वर प्रसाद
यूं तो फादर कामिल बुल्के के साथ मिलते रहने के अनेक अवसर आए, लेकिन इनमें से कुछ मेरे स्मृति पटल पर विशेष रूप से अंकित हो गए हैं। मुझे उनसे मिलाने तत्कालीन उडिय़ा विभागाध्यक्ष और मेरे बंधु कृष्णचरण साहु आए थे। मैंने वहां एक शुक्रवार का जो दृश्य देखा वह एक विद्वान के जीवन का न होकर एक परोपकारी मानव सेवी का था। बाद में पता चला कि हर शुक्रवार को वहां यही देखने को मिलता है। शहर और बाहर के अनेकानेक लोग अपनी-अपनी पारिवारिक समस्याएं लेकर आते हैं और उनसे समाधान चाहते हैं। कई समस्याएं तो नितांत गोपनीय होती थीं। यही नहीं रविवार उनके साथ मिलने का सबसे मुक्त दिवस होता था। दोपहर के कुछ देर बाद दो-ढाई बजे के आस-पास उनके परिचित-अपरिचित उनसे मिलने आते थे और फादर बड़ी-बड़ी प्लेटों में मक्खन और पाव रोटी फिर काफी के प्याले उनके जलपान के लिए लाते थे। फादर अक्सर काफी खुद बनाते थे। काफी की मात्रा एक व्यक्ति की काफी पूरे बॉल में उसे दी जाती थी और वह बहुत रुचिपूर्वक उनके साथ बातचीत करते हुए उसका आनंद उठाता था। फादर से बातचीत करने के अनेक विषय होते थे। समान्यत: पारिवारिक, वैदुषिक और सामाजिक। लेकिन किसी-किसी दिन जब अतिथि शीघ्र चले जाते और सांझ होने लगती तो फादर संस्मरणशील हो जाते। उन्हें अपना अतीत याद होने लगता और वे कभी बचपन के दिनों की घटनाएं, माता की परोपकारिता, पिता का चारित्रिक दृढ़ता, मित्र बंधुओं के साथ उल्लासपूर्ण बातचीत आदि के प्रसंग सुनाते। एक-दो अवसर ऐसे भी आए जब वह मां के स्नेह के प्रसंग सुनाते-सुनाते रोने लगते थे।
किंतु सप्ताह शुक्रवार से ही नहीं बनता। रविवार के दिन और कभी-कभी शुक्रवार को काफी लेने के बाद वे अपनी साइकिल से भ्रमण के लिए निकल पड़ते ओर तीस-चालीस किमी की यात्रा कर अंधेरा होते-होते मनरेसा हाउस लौट जाते। एक समय था जब रविवार को उन्हें प्रार्थनालय में प्रवचन देने को कहा जाता। बाहरी तौर पर जो व्यक्ति प्रसन्न भाव और अनौपचारिक दिखाई देता था, वह कितना परिश्रमी और अनुशासनप्रिय है, इसका बोध भी मुझे कई बार हुआ। कई दिन उन्होंने मुझे कहा, आज अमुक कार्य पूरा करना है। हमलोग फिर मिलेंगे। बाद के दिनों में जब मैंने उनके सहयोगी के रूप में कई प्रकार के कार्य किए तो मैंने पाया कि वह कितना कठोर परिश्रम करते हैं। उनका योरोपीय मानस सुनिश्चितता से घटकर कुछ भी नहीं स्वीकार करता। बाइबिल के अनुवाद के रूप में सुनिश्चित अभिव्यक्ति, कोश निर्माण की अवधि में सुनिश्चित पर्याय के संधान की उनकी साधना उन सब लोगों के लिए अनुकरणीय है, जो वैदुषिक क्षेत्र में टिकने योग्य कुछ करना चाहते हैं।
फादर कामिल बुल्के के साथ जुड़े हुए ढेर सारे प्रसंग हैं। उनके स्वभाव की उदारता और विनोदप्रियता के ढेर सारे अवसर ...मैं यह जानता हूं कि जो यह कर रहा हूं वह अतीत-व्यतीत हो चुका है। आज भी मेरी आंखों की राह पर कभी-कभी वे चलते हुए दिखाई देते हैं। मैं देख रहा हूं-फादर साइकिल लेकर नगर के अपने मित्रों के यहां चल पड़े हैं। कहां चल पड़े हैं-क्या राधाकृष्ण जी के यहां? क्या अपने किसी शिष्य से मिलने, जो अचानक बीमार पड़ गया है?
-डा. प्रसाद फादर कामिल बुल्के के निकट सहयोगी रहे हैं। फादर के निधन के बाद उनके कई अधूरे कामों को पूरा किया। अब दिवंगत।

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