नौमी तिथि मधु मास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता

संजय कृष्ण, रांची

foto विकिपीडिया से साभार
आज रामनवमी है। यानी भगवान राम का जन्म दिवस। आज ही के दिन प्रभु श्रीराम प्रकट हुए थे। बाबा तुलसीदास कह गए हैं-नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता...मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा...। न जाने कब से राम हमारे चित्त में बैठे हुए हैं। वाल्मीकि से लेकर संत कवियों तक। सगुण-निर्गुणवादियों ने भी प्रेम के साथ राम को याद किया है। एक मिथ चलता है, बाबा तुलसीदास के कारण उत्तर भारत में रामकथा लोकप्रिय हुई। पर, तुलसीदास से पहले कबीर हुए। कबीर ने कितने मन से याद किया है-कस्तूरी कुण्डल बसै, मृग ढूंढ़े वन माहि। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया खोजत नाहिं। सो, राम तो तब भी लोकप्रिय थे। उत्तर से लेकर दक्षिण तक। पूरब से लेकर पश्चिम तक...घट-घट में। गुरुनानक देव ने माना, यदि राम का जप नहीं किया तो जीवन व्यर्थ है। केशव 'रामचंद्रिकाÓ  लिखते और निराला 'राम की शक्ति पूजाÓ में तल्लीन नजर आते हैं। कोई राम शब्द पर मोहित है, कोई काया पर, कोई चरित पर। मैथिलीशरण गुप्त तो लिखते ही हैं-राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है। 


राम का चरित ही ऐसा था कि वे न केवल उत्तर भारत के प्रिय कवियों के प्रतिपाद्य रहे, वरन दक्षिण और अन्य धर्म में भी वे समादृत किए गए। बौद्ध और जैन में भी रामकथा कुछ भिन्न स्वरूप में मौजूद है। दक्षिण की ओर रुख करें तो तेलुगु की पहली रचना आंध्र महाभारत के अरण्य पर्व में 316 छंदों में राम का चरित वर्णित है। रंगनाथ रामायण की भी चर्चा होती है जो तुलसी से बहुत पहले सन् 1280 में लिखी गई। तेलुगु में अनेक रामायणों की रचना इस बात की साक्षी है राम दक्षिण में भी कितने लोकप्रिय हैं और वह भी तुलसीदास की रचना से पहले। कन्नड़ में जैन और हिंदू दोनों परंपराओं में रामकथा मिलती हैं। पूर्वोत्तर में भी राम की कहानी पढ़ी जा सकती है। असमिया में माधवकंदली रामायण, बांग्ला में कृत्तिवास रामायण, उडिय़ा में बलरामदास रामायण में राम का ही बखान है। मुगल बादशाहों को भी रामकथा प्रिय रही। इसलिए अकबर ने अलबदायूनी से और जहांगीर ने गिरिधरदास से फारसी में वाल्मीकि रामायण का अनुवाद करवाया। शाहजहां के काल में रामायण फैजी और औरंगजेब के समय तर्जुमाई रामायण रचे गए। आदिवासियों के बीच रामकथा गाई जाती रही। बैगा जाति की कथा में सीता कृषि की अधिष्ठात्री हैं। मुंडा लोककथा में भी सीता का अर्थ हल का फल ही होता है। छत्तीसगढ़ी रामायण भी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि वनगमन का अधिकांश समय भगवान राम ने इसी क्षेत्र में व्यतीत किया। सो, वहां की सरकार राम वन गमन पथ को पर्यटन की दृष्टि से विकसित कर रही है। झारखंड के सिमडेगा में रामरेखा धाम और चुटिया का प्राचीन राम मंदिर, मुंडारी, संताली, बिरहोरी में रामकथाएं राम की चहुंओर व्याप्ति की ओर ही संकेत करती हैं। फिर भी राम, किसी के लिए कल्पना, किसी के लिए मिथ, किसी के लिए अनैतिहासिक हों तो क्या किया जा सकता है। राम कितने मनभावन हैं कि जब कोई एक दूसरे से मिलता है तो अनायास फूंट पड़ता है-राम-राम।


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