रांची लोकसभा में जाति का नहीं रहा है बोलबाला

संजय कृष्ण, रांची

बिना जातीय गणित के चुनाव जीतना मुश्किल है। यह पहले भी सच था और यह आज का भी सच है। बहुधा सीटों पर पार्टियां भी टिकट देने से पहले जाति ही देखती हैं। इसके बाद ही फैसला लेती हैं। उम्मीदवारों की योग्यता बहुत मायने नहीं रखती। 75 साल की आजादी में भी हमारा समाज इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि वह जाति के बदले योग्य व्यक्ति को संसद भेजे। पर कुछ अपवाद होता है। इसी अपवाद में रांची की लोकसभा सीट भी है। रांची लोकसभा सीट पर जाति कभी हावी नहीं रही। हां, पार्टी का बोलबाला जरूर रहा है। पिछली बार ही जब भाजपा से पांच बार रांची सीट से सांसद रहे रामटहल चौधरी को जब टिकट नहीं मिला तो उन्हें अपनी जाति पर भरोसा था और वे निर्दल ही मैदान में कूद गए, लेकिन दो प्रतिशत से अधिक मत मिला। रांची के पहले सांसद अब्दुल इब्राहिम मुस्लिम थे। वे मूल रूप से गया के शेरघाटी के रहने वाले थे। कांग्रेस के टिकट से मैदान में उतरे और विजयी रहे। इसके बाद वे कई बार प्रयास किए, लेकिन रांची की जनता ने फिर उन्हें संसद में नहीं भेजा। दूसरे आमसभा चुनाव में तो मुंबई से आकर एमआर मसानी उर्फ मीनू मसानी चुनाव जीत गए। वह भी झारखंड पार्टी से थे। जयपाल सिंह मुंडा ने अपनी पार्टी से उन्हें 1957 में प्रत्याशी बनाया। वह पारसी समुदाय से थे। मसानी जीतकर गए थे तो लौटे ही नहीं। इसके बाद आया 1962 का चुनाव। इब्राहिम अंसारी को कांग्रेस ने तीसरी बार अपना टिकट दिया, लेकिन रांची की जनता का कांग्रेस से दूसरे आमचुनाव में ही मोहभंग हो गया। इसलिए तीसरी बार 1962 में उसने स्वतंत्र पार्टी से मैदान में उतरे भद्र बंगाली प्रशांत कुमार घोष को संसद भेजा। ये पीके घोष के नाम से प्रसिद्ध थे। वे फारवर्ड ब्लाक के सदस्य थे। लेकिन स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष के आग्रह पर चुनाव लड़े। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए और 1967 में वे कांग्रेस से जीतकर संसद पहुंचे। 1971 में भी रांची की जनता ने उन्हें संसद भेजा। शहर में बंगालियों की आबादी अच्छी खासी है। बहुत सी गलियों के नाम देख सकते हैं। डेढ़ सौ साल पुराना यहां यूनियन क्लब है। फिर भी, इनकी इतनी संख्या नहीं है कि वे किसी को जीता सकें। इसके बाद भारतीय राजनीति में काफी उथल-पुथल रहा। इसी समय बांग्लादेश युद्ध भी हुआ। इमरजेंसी भी लगी। इंदिरा गांधी के खिलाफ पूरे देश में हवा बह रही थी। यह दूसरा अवसर था, जब एक बार फिर एक बाहरी व्यक्ति को रांची से टिकट दिया गया। प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा के परिवार के रवींद्र वर्मा को रांची से टिकट दिया गया। वे आए, यहां रहे और चुनाव जीतकर चले गए। ये भी दुबारा नहीं आए। इनका प्रचार करने के लिए लालकृष्ण आडवाणी भी रांची आए थे। कांग्रेस से यहां शिव प्रसाद साहू को टिकट मिला था, लेकिन वे हार गए। लेकिन 1980 के चुनाव में कांग्रेस से शिव प्रसाद साहू जीतकर संसद पहुंच गए। इसके बाद 1984 में भी इनकी किस्मत ने साथ दिया। इसके बाद देश की राजनीति की हवा बदल गई। पलामू के रहने वाले सुबोधकांत सहाय 1989 में पहली पर जनता दल से चुनावी मैदान में कूदे और संसद पहुंच गए। यहां भाजपा से रामटहल चौधरी दूसरे स्थान पर थे। लेकिन अगली बार रामटहल चौधरी की किस्मत ने साथ दिया और 1991 में संसद पहुंच गए। इसके बाद वे 1996, 1998, 1999, 2014 में भी भाजपा से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। सुबोधकांत सहाय इसके बाद कांग्रेस में शामिल हो गए और वे 2004 व 2009 में भी विजयी रहे। लेकिन अगली बार 2014 में रामटहल ने उनसे सीट छीन ली। 2019 में भाजपा ने रामटहल को टहला दिया और संजय सेठ को टिकट दे दिया। संजय सेठ भारी मतों से जीतकर संसद पहुंचे। दूसरे स्थान पर कांग्रेस से सुबोधकांत सहाय रहे। रामटहल को टिकट नहीं मिला तो पार्टी ही छोड़ दी और निर्दलीय लड़े। इस बार सुबोधकांत सहाय ने अपनी बेटी को टिकट दिलवा दिया है। संजय सेठ दुबारा मैदान में हैं। अब इन्हीं दोनों के बीच मुख्य मुकाबला है। इस तरह देखें तो रांची की जनता ने सिर्फ एक बार ही मुस्लिम को संसद भेजा है। अपनी जाति के आधार पर कोई प्रत्याशी जीत का दावा नहीं कर सकता।  

मुस्लिम एक बार

पारसी एक बार

बंगाली तीन बार

क्षत्रिय एक बार

साहू  दो बार

कायस्थ तीन बार

महतो पांच बार

वैश्य एक बार

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रांची संसदीय लोकसभा कब कौन जीता

1952 अब्दुल इब्राहिम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1957 मीनू मसानी झारखंड पार्टी

1962     प्रशांत कुमार घोष स्वतंत्र पार्टी

1967     प्रशांत कुमार घोष             भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1971     प्रशांत कुमार घोष             भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1977 रवीन्द्र वर्मा जनता पार्टी

1980 शिव प्रसाद साहू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई)

1984 शिव प्रसाद साहू                भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1989 सुबोधकांत सहाय जनता दल

1991 रामटहल चौधरी भारतीय जनता पार्टी

1996       रामटहल चौधरी भारतीय जनता पार्टी

1998       रामटहल चौधरी भारतीय जनता पार्टी

1999       रामटहल चौधरी भारतीय जनता पार्टी

2004 सुबोधकांत सहाय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

2009        सुबोधकांत सहाय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

2014 रामटहल चौधरी भारतीय जनता पार्टी

2019 संजय सेठ                 भारतीय जनता पार्टी

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