कलकत्ता
13 अगस्त 1947
चि. वल्लभभाई,
मैं तो यहां फंस गया हूं, और अब भारी खतरे का काम सिर पर ले रहा हूं। सुहरावर्दी और मैं आज दंगेवाले मुहल्लेमें साथ-साथ रहने जा रहे हैं। अब जो हो सो सही। देखते रहना। मैं लिखता रहूंगा।
मालूम होता है कि काका ने कश्मीर छोड़ दिया।
सुभाष बोस के विषय में मुझे तो तुम्हारे पत्र से ही मालूम हुआ। मुझे इन सब बातों पर भरोसा नहीं हो रहा है।
राजाजी के बारे में शरदबाबू को जैसा तुमने लिखा है वैसा ही मैं भी लिख चुका था। उसका कोई उत्तर नहीं मिला। इस बार तो वे मेरे पास आए भी नहीं थे।
मैं नहीं मानता कि कृपलानी के बारे में अखबारों ने जैसा आया है वैसा उन्होंने कहा होगा। लियाकत अली का वक्तव्य मुझे पसंद नहीं आया। वातावरण जहर से भरा है। कौन किसका है यह जल्दी पता नहीं चलता।
खाकसारों का मामला समझा। मैं यह धर्म समझकर चला हूं कि उन्हें ऐसी स्थिति में रख दिया जाए कि वे (हमारे खिलाफ ) कुछ भी न कह सकें। दूसरों के बारेमें भी ऐसा ही करता हूं।
काम सारा कठिन है और कठिनाई बढ़ती दिखाई देती है। ऊपर से अब यह दैवी प्रकोप आ पड़ा दीखता है। वर्षा न आई तो क्या करेंगे? बहुतों को मरना ही पड़ेगा न?
राजाओं की समस्या इतनी विकट है कि उसे तुम ही निपट सकोगे, परंतु तुम्हारे स्वास्थ्य से कौन निपटेगा?
बापू के आशीर्वाद
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(गांधी वांगमय से)
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/08/2019 की बुलेटिन, "प्रथम पुण्यतिथि पर परम आदरणीय स्व॰ अटल बिहारी वाजपाई जी को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंदुर्लभ पत्र से अवगत कराने के लिए आभार ।
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