महाश्वेता के उपन्यासों में सतही जानकरी

रांची : आदिवासियों पर लिखे महाश्वेता देवी के उपन्यासों में सतही जानकारी मिलती है। ये बातें जेएनयू के प्रोफेसर डा. वीर भारत तलवार ने कही। वे सोमवार को विकास मैत्री में रोज केरकेट्टा के कहानी संग्रह पगहा जोरी-जोरी रे घाटो का विमोचन कर रहे थे। आदिवासी लेखन की चार प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए तलवार ने कहा कि पहली प्रवृत्ति उन लेखकों की है, जो ऊंचे ओहदे पर थे और उन लोगों ने आदिवासियों पर लिखीं, इनमें योगेंद्र नाथ सिन्हा प्रमुख हैं, जिन्होंने हो आदिवासी पर वनलक्ष्मी की रचना की, जो गलत और सवर्ण दृष्टि से लिखी गई है। दूसरे किस्म के वे लेखक हैं, जिन्होंने सतही जानकारी के आधार पर कहानियां या उपन्यास लिखे, इनमें महाश्वेता देवी प्रमुख हैं। तीसरे वे हैं, जो आदिवासी नहीं हैं, पर पूरी संवेदना के साथ लिखा। इनमें पुन्नी सिंह का नाम लिया जा सकता है। चौथे लेखक वे हैं, जो बहुत कम हैं, वह हैं आदिवासी लेखक। इनमें हरिराम मीणा और रोज केरकेट्टा को लिया सकता है। रोज ने अपने कथा संग्रह में आदिवासी जीवन को सघनता और संपूर्णता के साथ शामिल किया है। जो जिया है, उसे ही लिखा है। संग्रह में व्यापकता है, विविधता है, आधुनिकता है, और जो सबसे बड़ी बात है, वह है प्रतिरोध का राजनीतिक स्वर। तलवार ने साहित्य में चल रहे स्त्री विमर्श के अलग इस संग्रह का जिक्र करते हुए कहा कि कहानियां पुरुष के विरोध में नहीं, व्यवस्था के विरोध में खड़ी हैं। यहां अलग तरह का नारीवाद है। उन्होंने, जल, जंगल, जमीन को संदर्भित करते हुए भी कहानियों का पाठ प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में रविभूषण ने रोज केरकेट्टा की कहानियां जनजातियों की कहानियां हैं, जिसमें स्त्री पात्र प्रमुख हैं। वर्तमान से अधिक अतीत पर बल है। इस मौके पर दिल्ली से आए सबलोग के संपादक किशन कालजयी ने भी कहानियों को प्रतिरोध की कहानियां बताई। मौके पर वाल्टर भेंगरा तरुण, माया प्रसाद, बीपी केशरी, रणेंद्र आदि ने भी कृति पर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन सुनील मिंज ने किया और धन्यवाद ज्ञापन श्रावणी ने किया। पुस्तक देशज प्रकाशन ने छापी है। मौके पर घनश्याम, डा. गिरिधारी राम गौंझू, केडी सिंह, महताब आलम, वंदना टेटे, शेखर, राहुल सिंह, मिथिलेश सहित शहर के जाने-माने रंगकर्मी, लेखक व साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।