बछिया एक दाता हजार

जानकर ताज्जुब होगा कि तीर्थनगरी प्रयाग में एक ही बछिया को एक नहीं, हजारों लोग दान देते हैं। तंबुओं की इस तीर्थ नगरी में 
पुल 10-11 के बीचे गंगा के रेतीले विशाल तट पर दर्जनों पंडे ाक्तों को कथा बांच रहे हैं। दान-पुण्य की महिमा बता रहे हैं तो दूर-दराज से आए ाक्त वैतरणी पार करने की अािलाषा लिए बछिया ाी दान कर रहे हैं। मजा यह कि बछिया एक है और दान करने वाले हजार। आदित्य पंडा चौकी लगाए गंगा घाट पर अपने एक ाक्त को बछिया दान की महिमा बताते हैं। इसके बाद उससे पूंछ पक
ड़वाते हैं। मंत्र बुदबुदाते हैं। हाथ मे दक्षिणा लेते हैं और, दान का कर्मकांड पूरा। माघ पूर्णिमा की पूर्व संध्या। सामने गंगा का अविरल प्रवाह यमुना से मिलने क लिए बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। संध्या के चार बज रहे थे। रेत पर कुछ बच्चे ोल रहे हैं तो कुछ गंगा मैया में डुबकी लगा रहे।
 प्रयाग की इन मनोरम छटा को निहारने के बाद आदित्य पंडा की चौकी पर बैठता हूं तो वे बछिया दान की महिमा बताते कहते हैं कि जैसा यजमान वैसी सेवा। बछिया दान के लिए कम से कम 11 रुपये तो दक्षिणा देनी पड़ेगी। पूछता हूं, 11 रुपये में बछिया मिल जाती है? कहते हैं, 11 रुपये में आज क्या मिलेगा? लेकिन गरीब यजमान है और उसके पास पैसा है नहीं, पर पुण्यनगरी में वह चाहता है कि वैतरणी पार के लिए एक बछिया दान करे तो वह कहां से करेगा? उसकी मन की शांति के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। आदित्य बहुत उत्साह से बताते हैं कि इस एक बछिया से अब तक दस हजार लोगों का गोदान करा चुका हूं। अमावस पर तो कई हजार। आदित्य का यह पुश्तैनी पेशा है। 
 एक दूसरे पंडा विमल मिश्र बताते हैं अमावस्या के दिन पांच हजार लोगों को गोदान करवाया। विमल ने पास ही एक मरियल से बछिया बांध राी थी। उस ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि इस एक बछिया को एक महीने में दस हजार लोगों से अधिक ने अपनी मुक्ति के लिए दान कर चुके हैं। वैतरणी का डर और आस्था की चाह के कारण लोग गोदान करते हैं। विमल बताते कि 11, 21, 51, 100 से लेकर हजार और उससे ऊपर तक। जैसा ाक्त वैसी पूजा। वह बताते हैं कि दान का बड़ा महत्व है। वह ाी माघ के महीने और प्रयाग की धरती पर तो पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। जो ाी आता है, चाहता है कि पुण्य का लाा लेकर जाए। इस बार महाकुंा के कारण ाी श्रद्धालु काफी आ रहे हैं। उनका कहना है कि गो दान, गंगा पूजन, बेड़ी दान, पिंड दान और अस्थि पूजन करवाया जाता है। वह प्रयाग की महिमा बताते हैं कि यह तो महातीर्थ है। को कही सकई प्रयाग प्रााऊ...। विमल आगे बताते हैं कि 'सूर्य और चंद्रमा जब प्रतिवर्ष मकर राशि में संचरण करते हैं तब माघ में माघ मेले का आयोजन होता है। वृहस्पति जब मेष राशि चक्र की वृषा राशि में 12 साल में आते हैं तब प्रयाग में कुंा लगता है और इस बार तो महाकुंा लगा है। इसे पूर्णकुंा ाी कहा जा रहा है, क्योंकि ऐसे नक्षत्र का योग अब 360 साल बाद आएगा।Ó इंटर पास विमल और ाी बहुत कुछ बताते हैं। पर, पीढिय़ों से चले आ रहे इस पेशे में अपने बेटों को नहीं डालना चाहते। कहते हैं  'यह काम अच्छा नहीं है। आपस में लड़ाई-झगड़ा ाी ाूब होता है। प्रशासन ाी कोई मदद नहीं करता।Ó ौर, विमल अकेले नहीं है न आदित्य। जैसी जिसकी धारणा...पर धर्म की इस नगरी में आस्था का प्रबल प्रवाह कम होता दिााई नहीं देता।