आंजन गांव के रहस्य से पर्दा उठाता है 'द इटर्नल मिस्ट्रीÓ


संतोष किड़ो पेशे से पत्रकार रहे हैं और अब सेंट जेवियर्स कालेज में पत्रकारिता पढ़ाते हैं। पेश के दौरान भी वे खालिस पत्रकार नहीं रहे। उनमें एक रचनाकार भी था। एक कथाकार भी। अभी उनका पहला उपन्यास 'द इटर्नल मिस्ट्रीÓ छपकर आया है
दर असल, यह उपन्यास उनके दिमाग में लंबे समय से पक रहा था। गाहे-बेगाहे जब मिलते तो इसका जिक्र जरूर करते। इस उपन्यास के लिए उन्होंने काफी मेहनत की। शोध किया और आंजन गांव में हफ्तों रहे। उस मिथ और उस कथा सूत्र को पकडऩे की कोशिश की, जो हजारों सालों से कही जा रही थी। 
आंजन, आप सब जानते हैं, यह गुमला जिले में पड़ता है और यह हनुमान की जन्मस्थली मानी जाती है। यहां जो प्राचीन प्रतिमा है, वह देश के दूसरे हिस्सों में नहीं मिलती है। यहां वह अपनी मां अंजनी की गोंद में विराजमान है। भारत के गांव-गांव में स्थापित उनकी प्रतिमा से सब परिचित हैं, लेकिन यह प्रतिमा भी दुर्लभ मानी जाती है। देश का बड़ा हिस्सा नहीं जानता कि हनुमान की जन्मस्थली झारखंड में है। इस उपन्यास से लोग इस गांव के बारे में भी जानेंगे।   यह उपन्यास इस अर्थ में अलग है कि यह मिथ से विज्ञान और विज्ञान से मिथ की यात्रा करता है और इस यात्रा के दौरान कई रहस्यात्मक चीजों से साबका पड़ता है। मुंबई से एक वैज्ञानिक कुछ शोध करने के लिए सिलसिले में आंजन गांव आता है और इस दौरान उसे कुछ अजीब-अजीब एहसास होते हैं। शोध का काम पूरा करने के बाद वह रिपोर्ट भेज देता है और उसकी यात्रा शुरू होती है। उसे एहसास होता है, जीवन के बारे में, मृत्यु के बारे में और उस नदी के बारे में, जो कल-कल बहती है। जीवन और रहस्य भी इन तीनों के इर्द-गिर्द घूमता है। अंजनी सुत के साथ शिवलिंग के मिथ से भी पर्दा उठता है। एक अलग दुनिया खुलती है, जो अब तक अनजान रही। इस बीच कथा पहाड़ी नदी के प्रवाह की तरह आगे बढ़ती है। उबड़-खाबड़ और हजारों-लाखों साल पुराने पठारों-पहाड़ों से टकराती हुई। इस उपन्यास की खासियत यह है कि इसमें मिथ भी है, इतिहास भी, पुरातत्व और लोक का संसार भी। इसलिए यह उपन्यास जितना कल्पना है, उससे कहीं ज्यादा हकीकत। एक आदिवासी परिप्रेक्ष्य में भी आंजन गांव को देखने की कोशिश की गई है। दूसरे शब्दों में इसे रामकथा से भी जोड़ सकते हैं। संतोष ने अपने इस पहले उपन्यास से प्रकाशन जगत में भी कदम बढ़ा दिया है। प्रकाशन का नाम 'चेरो एंड साल बुक्सÓ है। आइआइएम रांची से निकले देवाशीष मिश्र के साथ इसकी स्थापना पिछले साल की थी। इस प्रकाशन की यह पहली पुस्तक है।     

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