आक्टेव में भाग लेने आए दार्जिलिंग के पद्मश्री सोनम शेरिंग लेपचा 91 की उम्र को छू रहे हैं। वे दो लाख की आबादी वाले आदिवासी समुदाय लेपचा के लिजेंड हैं। साहित्य, संगीत और कला तीनों में पारंगत। इसलिए, उन्हें सम्मान से लोग लुपन बुलाते हैं। यानी गुरुजी। सोमवार को उनसे बातचीत हुई। स्वस्थ रहने के राज का खुलासा करते हुए बताया-योग। वे आधा घंटा प्रतिदिन योग करते हैं। इसके साथ रियाज तो है ही। बताते हैं कि लेपचा समुदाय में करीब बीस तरह के पारंपरिक वाद्य हैं। इन सभी वाद्यों में वे पारंगत हैं। चार होल की बासुंरी को पंतांग कहते हंै। ढोलक को टांगर बांग। एक वाद्य तंबक कहलाता है। सुत्संग, पोपटेक और न जाने क्या-क्या। इनमें वे पारंगत ही नहीं, इनके संरक्षण और संवर्धन का काम भी 1986 से कर रहे हैं। दार्जिलिंग के कालिंपोंग में उनका म्यूजियम है, जहां हर तरह के परंपरागत वाद्य और पहनावे रखे गए हैं।
गीत-संगीत के प्रति रुझान के बारे में बताते हैं कि मेरी चाची के पिता की बहन प्रिस्ट थीं। मातृ प्रधान समाज में महिला प्रिस्ट ही होती है। सभी कर्मकांड वही कराती। बचपन में उनके साथ जाया करता था। जब वे पूजा करतीं तो तरह-तरह के अलापा निकालती थीं। उन अलापों को सुना। इसके साथ फिर पारंपरिक कई रागों पर काम किया। इसकी टाइमिंग पर काम किया।
कक्षा दो तक पढ़े सोनम बताते हैं, इस तरह राग को पकडऩे-छोडऩे, ताल देने लगे। फिर पारंपरिक वाद्यों को बचाने का काम शुरू किया। करीब बीस तरह के पारंपरिक वाद्य प्रचलित हैं। इन्हें बजाना सीखा।
सोनम कहते हैं, जीवन में भी कई तरह के उतार-चढ़ाव आए। 35 साल की उम्र में मां चल बसी। बड़े भाई आर्मी में थे। वे 1944 में द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हो गए। इसी समय मैं भी आर्मी की ट्रेनिंग ले रहा था। 11 महीने पूरा हो गया। भाई की मौत के बाद मां अकेली हो गई तो ट्रेनिंग पूरी करने के बाद नौकरी छोड़कर घर आ गया। शादी हुई। लोकल प्रिटिंग प्रेस में काम करने लगा। रात स्वयं सेवक का काम करता था। एक रात कुछ चोर चोरी करने के लिहाज से घूम रहे थे। चोरों के सरदार को पकड़ लिया। इस पर सरकार ने अवार्ड दिया। फिर कुछ दिन तक बंगाल पुलिस में काम किया। दो साल बाद यह भी छोड़ दिया। खेती-बारी करने लगे। गीत-संगीत में रुचि थी ही। गांव-गांव प्रोग्राम देता था। पं बंगाल सरकार ने दार्जिलिंग में लोक मनोरंजन शाखा खोली तो उसमें लेपचा आर्टिस्ट के रूप में नियुक्ति हो गई। यह 1965 की बात है। यहां 28 साल सर्विस किया। इसी दौरान एक म्यूजियम खोला। चारों तरफ प्रसिद्धि मिली।
धर्म-संस्कृति पर भी किताबें लिखीं
इसी दौरान लेपचा भाषा में अपने धर्म, कर्मकांड, संस्कृति, संस्कार के बारे में अलग-अलग किताबें लिखीं। हमारे पूजा विधान अलग हैं। जन्म-मृत्यु के संस्कार अलग हैं। चूंकि हम मूल आदिवासी हैं। भूमिपुत्र हैं। इसलिए, हमारे पूजा के विधान अलग हैं। वे बताते हैं, हमारी अपनी लिपि है। हमारी भाषा प्राचीन है। ढेर सारी लोक कथाएं इसमें हैं। हमने कुछ लिखीं। इसके अलावा साहित्यिक किताबें भी लिखीं। गीति-नाट्य भी। हम प्रकृति पूजक हैं। पूजा के अलग-अलग विधान हैं। लेपचा दस्तू यानी मां की पूजा करता है।
परिवार के बारे में कहते हैं कि तीन शादी हुई है। पहली पत्नी की निधन हो गया। पहली पत्नी से छह, दूसरी से चार और तीसरी पत्नी से एक बेटी है। तीसरी पत्नी को भी कला के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री मिल चुका है।
विरासत को कौन संभालेगा? इस सवाल पर कहते हैं, पहली पत्नी के बेटे नार्ब शेरिंग लेपचा आगे बढ़ा रहे हैं। रांची भी उनके साथ आए हंै। 66 की उम्र। आर्मी में 28 साल सर्विस के बाद अवकाश ग्रहण किए हैं। वैसे, 91 की उम्र में सोनम सक्रिय हैं। अपने समाज के लिए काम करते हैं। सोनम अपने समुदाय के पहले रेडियो कलाकार भी हैं। 66 वर्षीर्य उनके सबसे बड़े बेटे नोर्बूू शेरिंग लेपचा बताते हैं कि हमारा समुदाय तीन देशों में है। नेपाल, दक्षिणी भूटान, सिक्किम और दार्जिलिंग। इनमें कुछ बौद्ध हो गए, कुछ ईसाई और कुछ हिंदू। वे अपने बारे में बताते हैं कि वे बौद्ध हैं। पिता के बारे में कहते हैं, पिता ने तिस्ता और रंगीत नदी पर गीति नाट्य लिखा, जो खूब चर्चित और मंचित हुआ। तिस्ता सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्य तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। पश्चिम बंगाल में यह दार्जिलिङ जिले में बहती है। तिस्ता नदी को सिक्किम और उत्तरी बंगाल की जीवनरेखा कहा जाता है। पुराणों के अनुसार यह नदी देवी पार्वती के स्तन से निकली है। तिस्ता का अर्थ त्रि-स्रोता या तीन-प्रवाह है। रंगीत भी सिक्किम की सबसे बड़ी नदी तिस्ता की सहायक नदी है। यह पश्चिमी सिक्किम के हिमालय की पहाडिय़ों से निकलती है और जोरेथाँग, पेलिंग और लेगशिप जैसे कस्बों के बीच से बहती है। शेरिंग के कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने पद्मश्री 2007 में दिया। इसके पूर्व संगीत नाटक अकादमी 1997 में। गुरु रवींद्र रत्नम 2008 और बंग विभूषण 2011। वे 91 की उम्र में सक्रिय हैं। वे शतायु हों।
गीत-संगीत के प्रति रुझान के बारे में बताते हैं कि मेरी चाची के पिता की बहन प्रिस्ट थीं। मातृ प्रधान समाज में महिला प्रिस्ट ही होती है। सभी कर्मकांड वही कराती। बचपन में उनके साथ जाया करता था। जब वे पूजा करतीं तो तरह-तरह के अलापा निकालती थीं। उन अलापों को सुना। इसके साथ फिर पारंपरिक कई रागों पर काम किया। इसकी टाइमिंग पर काम किया।
कक्षा दो तक पढ़े सोनम बताते हैं, इस तरह राग को पकडऩे-छोडऩे, ताल देने लगे। फिर पारंपरिक वाद्यों को बचाने का काम शुरू किया। करीब बीस तरह के पारंपरिक वाद्य प्रचलित हैं। इन्हें बजाना सीखा।
सोनम कहते हैं, जीवन में भी कई तरह के उतार-चढ़ाव आए। 35 साल की उम्र में मां चल बसी। बड़े भाई आर्मी में थे। वे 1944 में द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हो गए। इसी समय मैं भी आर्मी की ट्रेनिंग ले रहा था। 11 महीने पूरा हो गया। भाई की मौत के बाद मां अकेली हो गई तो ट्रेनिंग पूरी करने के बाद नौकरी छोड़कर घर आ गया। शादी हुई। लोकल प्रिटिंग प्रेस में काम करने लगा। रात स्वयं सेवक का काम करता था। एक रात कुछ चोर चोरी करने के लिहाज से घूम रहे थे। चोरों के सरदार को पकड़ लिया। इस पर सरकार ने अवार्ड दिया। फिर कुछ दिन तक बंगाल पुलिस में काम किया। दो साल बाद यह भी छोड़ दिया। खेती-बारी करने लगे। गीत-संगीत में रुचि थी ही। गांव-गांव प्रोग्राम देता था। पं बंगाल सरकार ने दार्जिलिंग में लोक मनोरंजन शाखा खोली तो उसमें लेपचा आर्टिस्ट के रूप में नियुक्ति हो गई। यह 1965 की बात है। यहां 28 साल सर्विस किया। इसी दौरान एक म्यूजियम खोला। चारों तरफ प्रसिद्धि मिली।
धर्म-संस्कृति पर भी किताबें लिखीं
इसी दौरान लेपचा भाषा में अपने धर्म, कर्मकांड, संस्कृति, संस्कार के बारे में अलग-अलग किताबें लिखीं। हमारे पूजा विधान अलग हैं। जन्म-मृत्यु के संस्कार अलग हैं। चूंकि हम मूल आदिवासी हैं। भूमिपुत्र हैं। इसलिए, हमारे पूजा के विधान अलग हैं। वे बताते हैं, हमारी अपनी लिपि है। हमारी भाषा प्राचीन है। ढेर सारी लोक कथाएं इसमें हैं। हमने कुछ लिखीं। इसके अलावा साहित्यिक किताबें भी लिखीं। गीति-नाट्य भी। हम प्रकृति पूजक हैं। पूजा के अलग-अलग विधान हैं। लेपचा दस्तू यानी मां की पूजा करता है।
परिवार के बारे में कहते हैं कि तीन शादी हुई है। पहली पत्नी की निधन हो गया। पहली पत्नी से छह, दूसरी से चार और तीसरी पत्नी से एक बेटी है। तीसरी पत्नी को भी कला के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री मिल चुका है।
विरासत को कौन संभालेगा? इस सवाल पर कहते हैं, पहली पत्नी के बेटे नार्ब शेरिंग लेपचा आगे बढ़ा रहे हैं। रांची भी उनके साथ आए हंै। 66 की उम्र। आर्मी में 28 साल सर्विस के बाद अवकाश ग्रहण किए हैं। वैसे, 91 की उम्र में सोनम सक्रिय हैं। अपने समाज के लिए काम करते हैं। सोनम अपने समुदाय के पहले रेडियो कलाकार भी हैं। 66 वर्षीर्य उनके सबसे बड़े बेटे नोर्बूू शेरिंग लेपचा बताते हैं कि हमारा समुदाय तीन देशों में है। नेपाल, दक्षिणी भूटान, सिक्किम और दार्जिलिंग। इनमें कुछ बौद्ध हो गए, कुछ ईसाई और कुछ हिंदू। वे अपने बारे में बताते हैं कि वे बौद्ध हैं। पिता के बारे में कहते हैं, पिता ने तिस्ता और रंगीत नदी पर गीति नाट्य लिखा, जो खूब चर्चित और मंचित हुआ। तिस्ता सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्य तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। पश्चिम बंगाल में यह दार्जिलिङ जिले में बहती है। तिस्ता नदी को सिक्किम और उत्तरी बंगाल की जीवनरेखा कहा जाता है। पुराणों के अनुसार यह नदी देवी पार्वती के स्तन से निकली है। तिस्ता का अर्थ त्रि-स्रोता या तीन-प्रवाह है। रंगीत भी सिक्किम की सबसे बड़ी नदी तिस्ता की सहायक नदी है। यह पश्चिमी सिक्किम के हिमालय की पहाडिय़ों से निकलती है और जोरेथाँग, पेलिंग और लेगशिप जैसे कस्बों के बीच से बहती है। शेरिंग के कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने पद्मश्री 2007 में दिया। इसके पूर्व संगीत नाटक अकादमी 1997 में। गुरु रवींद्र रत्नम 2008 और बंग विभूषण 2011। वे 91 की उम्र में सक्रिय हैं। वे शतायु हों।
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