अब्दुल गफ्फार खान हजारीबाग जेल में तीन साल तक रहे। जब उन्हें हजारीबाग जेल के लिए रवाना किया गया तो उनके साथ और भी राजनीतिक कैदी थे। सरहदी गांधी लिखते हैं, जिस समय हमारी गाड़ी यूपी पहुंची तो हमारा चार्ज लेने के लिए एक अंग्रेज अफसर और एक गौरा सार्जेंट आए। यह दिन उनका बड़ा दिन था-'25, दिसम्बरÓ। जिस समय इलाहाबाद पहुंचे तो यहां डॉ. साहब को हमारे साथ से उतार लिया गया और उन्हें इलाहाबाद नैनी जेल में भेज दिया गया, फिर सैयदुउल्ला को उतारा गया और उन्हें बनारस जेल भेजा गया, फिर बिहार प्रांत शुरू हो गया, यहां काजी अताउल्ला को मेरे साथ से उतार कर जेल भेज दिया गया। मैं हजारीबाग जेल के लिए रवाना कर दिया गया। हजारीबाग जेल स्टेशन से 40 मील दूर है।
जब मुझे जेल के अंदर किया और बैरक में ले गये तो जेल का अफसर जो हिंदू था, मुझसे बोला कि यह आपके साथ जो पुलिस अफसर था, यह कौन था? मैं बोला कि मुझसे क्यों इसके बारे में पूछते हो? तो वह मुझसे बोला कि मुझे तो काफी व्यक्ति लगा, वह मुझसे बोला कि यह बहुत खतरनाक व्यक्ति है, इसका ध्यान रखना। मुझे एक बैरक में अकेला बंद किया और वे मेरे पास से लौट गये।
मैं शाही कैदी था, डी. सी. मेरे पास प्रतिमास आता। मास की पहली तारीख को वह आया। वह भी मेरे इस कार्य पर कभी आनाकानी नहीं करता था। इन्हें भी फूल और सब्जियां उगाने का बहुत शौक था। मेरे साथ भी इसमें काफी सहयोग करता, कभी-कभी मेरे लिये बीज भी लाता, काफी अच्छा व्यक्ति था, उसके अंदर काफी मानवता थी।
मेरे साथ ही औरतों का जेलखाना था, उसमें राजनीतिक औरतें कैद थीं। राजेंद्र प्रसाद की बहन भी इनमें थीं। एक दिन छोटे डिप्टी सुपरिंटेंडेंट साहब मेरे पास आये और मुझसे बोले कि औरतों ने बहुत तंग कर दिया है, मुझसे कहती हैं कि आप हमें अब्दुल गफ्फार खान से मिलवाइये। यदि हमें नहीं मिलवाया तो हम धरना देंगी, यह तो मैं नहीं कर सकता हूं तो आप कृपा करके उनके पास जवाब भेज दें और मुझे इनसे मुक्त कीजिये। मैंने उनको जवाब भेजा और यह उनसे मुक्त हुआ।
इस जेलखाने में बाबू राजेंद्र प्रसाद और बिहार के बड़े-बड़े नेता कैद थे। आचार्य कृपलानी भी यहां थे। उन्हें हमारी जानकारी नहीं थी और न हमें उनकी जानकारी थी। हम बाहर घूम रहे थे, एक दिन हमें उनका मित्र मिल गया तो वह बहुत हैरान हुआ, बोला कि आप कब आये हैं, मैंने उससे कहा कि मेरा तो यहां आठवां महीना है और डॉ. साहब को कुछ दिन हुए हैं। वह मुझसे बोला कि यहां तो हमारे बिहार के काफी राजनीतिक कैदी हैं। उनसे हम फिर कभी-कभी मिलने के लिये जाते। बिहार के व्यक्ति बहुत अच्छे व्यक्ति हैं। बिहार का वह दरोगा साहब राजेंद्र प्रसाद का क्लासफेलो था। बहुत अच्छा व्यक्ति था और राष्ट्रभक्तों के साथ बहुत हमदर्दी रखता था। हमने एक दिन डिप्टी सुपरिंटेंडेंट साहब से यह बात कही कि इस जगह से जो राजनीति कैदी रिहा होकर जायें, उन्हें रिहा होने से पहली शाम हमारे पास भेज दें, हम उनके लिये पार्टी किया करेंगे।
बिहार के लोग बहुत अच्छे व्यक्ति हैं, लेकिन छुआछूत इनमें बहुत ज्यादा है। हमारे साथ एक जगह रहने से इन लोगों में काफी परिवर्तन और काफी सुधार आया। बिहार की औरतें और पुरुष बहुत बहादुर हैं। उन्होंने मुल्क की आजादी के लिये बहुत कुर्बानियां दी हैं। मैं आपको एक बहादुर औरत का किस्सा सुनाता हूं। वह हमारे साथ कैद थी।
डॉक्टर साहब के आने के बाद फिर हमें अन्य बैरक में बदल दिया गया। उस बैरक के पास काफी जमीन व्यर्थ पड़ी थी, मैंने छोटे साहब से कहा कि मैं यह जमीन आबाद करूंगा, इसमें मेरे साथ सहयोग करें। उसने मुझे दो कैदी दिये। मैंने उस जमीन पर कार्य शुरू किया और उसे बोने योग्य बनाया। इस खेत में एक रहट भी था, मैंने आलू गन्ने और तरह-तरह की सब्जी रोपी। बिहार के पपीते बहुत मीठे होते हैं, मैंने एक बड़ी पट्टी को अच्छी तरह जोता और ये इसमें रोप दिये। डी. सी. साहब प्रतिमास आते, उन्हें मेरे साथ इस कार्य में काफी दिलचस्पी थी और वे कभी-कभी मूली-शलजम के बीज भी लाकर देते और मुझसे कहते कि मेरी भी कृषि के प्रति काफी दिलचस्पी है।
यह जेलखाना जंगल में था। कभी-कभी शेरों की आवाजें भी हम सुनते। इस जेलखाने में रात को काफी सांप निकलते और वे इतने जहरीले थे कि व्यक्ति को काट लें और उसे तुरंत इंजेक्शन नहीं दिया जाये तो दो घंटे में ही व्यक्ति की मृत्यु हो जाती। मैं रात को भोजन के बाद घूमता था।
यहां हमारा एक मशक्कती था, डॉक्टर साहब के साथ उसकी अच्छी गप-शप लगती थी। वह डॉक्टर साहब से बोला कि हमारी औरतें और पुरुष हाथ बांधकर और इक_े नाच-गाना करते हैं। एक दिन हमने इससे प्रश्न किया कि कैसे कैद हुए हो? तो वह बोला कि मैंने एक व्यक्ति को मार दिया था और जब मुझ पर मुकदमा बन गया तो संबंधियों ने मेरे लिये वकील किया। वकील ने मुझे बयान दिखलाया कि ऐसा आप कहेंगे। मैं उससे बोला कि यह तो झूठ है और मैं झूठ नहीं बोलूंगा। वकीलों ने लोगों को झूठ बोलने का आदी बना दिया है। वास्तविकता यह है कि ये वकील जिस समय से पैदा हुए हैं तब से देश में झूठ और झूठे मुकदमे बढ़ गये हैं, मगर मैंने झूठ नहीं बोला और सच बोला। सच बोलने के फलस्वरूप मैं फांसी से बच गया।
यहां पपीतों का बाग जब पक गया तो एक-दो पपीते हमने खाये कि हमारी रिहाई का आदेश आ गया। हमने तो काफी पपीते बोये थे और वे पक रहे थे। चाहे इस जेलखाने में पपीते लगाने का आदेश नहीं था, मगर गुझे जनरल साहब ने विशेष अनुमति दी हुई थी तो हम जब जेल से छूट रहे थे, जेल वाले और कैदी काफी उदास थे कि आप रिहा हो जाओगे और चले जाओगे ये पपीते जड़ से निकाल दिये जायेंगे। पपीते पकाई पर आ गये थे, बहुत मीठे थे। पहले इस जेलखाने में पपीते रोपने की अनुमति थी, मगर कैदी उन्हें उखाड़ लेते थे और दीवार के पास लगाकर भाग जाते थे तो पपीते रोपना बंद हो गया था।
हमारे बावर्ची ने हमारी रिहाई की बात सुनी तो रुआंसा-सा हो गया। मैंने उससे कहा कि हमारी रिहाई से उदास हो? तो वह बोला कि नहीं आपकी रिहाई से खुश हूं, लेकिन मैं स्वयं से दुखी हूं। जेल वाले भी हमारी रिहाई से उदास थे, मैं भी अपने उन पपीतों पर काफी दु:खी था।
(अब्दुल गफ्फार खान लिखित और अखलाक अहमद 'आहनÓ द्वारा अनूदित 'मेरा जीवन मेरा संघर्षÓ से साभार)
जब मुझे जेल के अंदर किया और बैरक में ले गये तो जेल का अफसर जो हिंदू था, मुझसे बोला कि यह आपके साथ जो पुलिस अफसर था, यह कौन था? मैं बोला कि मुझसे क्यों इसके बारे में पूछते हो? तो वह मुझसे बोला कि मुझे तो काफी व्यक्ति लगा, वह मुझसे बोला कि यह बहुत खतरनाक व्यक्ति है, इसका ध्यान रखना। मुझे एक बैरक में अकेला बंद किया और वे मेरे पास से लौट गये।
मैं शाही कैदी था, डी. सी. मेरे पास प्रतिमास आता। मास की पहली तारीख को वह आया। वह भी मेरे इस कार्य पर कभी आनाकानी नहीं करता था। इन्हें भी फूल और सब्जियां उगाने का बहुत शौक था। मेरे साथ भी इसमें काफी सहयोग करता, कभी-कभी मेरे लिये बीज भी लाता, काफी अच्छा व्यक्ति था, उसके अंदर काफी मानवता थी।
मेरे साथ ही औरतों का जेलखाना था, उसमें राजनीतिक औरतें कैद थीं। राजेंद्र प्रसाद की बहन भी इनमें थीं। एक दिन छोटे डिप्टी सुपरिंटेंडेंट साहब मेरे पास आये और मुझसे बोले कि औरतों ने बहुत तंग कर दिया है, मुझसे कहती हैं कि आप हमें अब्दुल गफ्फार खान से मिलवाइये। यदि हमें नहीं मिलवाया तो हम धरना देंगी, यह तो मैं नहीं कर सकता हूं तो आप कृपा करके उनके पास जवाब भेज दें और मुझे इनसे मुक्त कीजिये। मैंने उनको जवाब भेजा और यह उनसे मुक्त हुआ।
इस जेलखाने में बाबू राजेंद्र प्रसाद और बिहार के बड़े-बड़े नेता कैद थे। आचार्य कृपलानी भी यहां थे। उन्हें हमारी जानकारी नहीं थी और न हमें उनकी जानकारी थी। हम बाहर घूम रहे थे, एक दिन हमें उनका मित्र मिल गया तो वह बहुत हैरान हुआ, बोला कि आप कब आये हैं, मैंने उससे कहा कि मेरा तो यहां आठवां महीना है और डॉ. साहब को कुछ दिन हुए हैं। वह मुझसे बोला कि यहां तो हमारे बिहार के काफी राजनीतिक कैदी हैं। उनसे हम फिर कभी-कभी मिलने के लिये जाते। बिहार के व्यक्ति बहुत अच्छे व्यक्ति हैं। बिहार का वह दरोगा साहब राजेंद्र प्रसाद का क्लासफेलो था। बहुत अच्छा व्यक्ति था और राष्ट्रभक्तों के साथ बहुत हमदर्दी रखता था। हमने एक दिन डिप्टी सुपरिंटेंडेंट साहब से यह बात कही कि इस जगह से जो राजनीति कैदी रिहा होकर जायें, उन्हें रिहा होने से पहली शाम हमारे पास भेज दें, हम उनके लिये पार्टी किया करेंगे।
बिहार के लोग बहुत अच्छे व्यक्ति हैं, लेकिन छुआछूत इनमें बहुत ज्यादा है। हमारे साथ एक जगह रहने से इन लोगों में काफी परिवर्तन और काफी सुधार आया। बिहार की औरतें और पुरुष बहुत बहादुर हैं। उन्होंने मुल्क की आजादी के लिये बहुत कुर्बानियां दी हैं। मैं आपको एक बहादुर औरत का किस्सा सुनाता हूं। वह हमारे साथ कैद थी।
डॉक्टर साहब के आने के बाद फिर हमें अन्य बैरक में बदल दिया गया। उस बैरक के पास काफी जमीन व्यर्थ पड़ी थी, मैंने छोटे साहब से कहा कि मैं यह जमीन आबाद करूंगा, इसमें मेरे साथ सहयोग करें। उसने मुझे दो कैदी दिये। मैंने उस जमीन पर कार्य शुरू किया और उसे बोने योग्य बनाया। इस खेत में एक रहट भी था, मैंने आलू गन्ने और तरह-तरह की सब्जी रोपी। बिहार के पपीते बहुत मीठे होते हैं, मैंने एक बड़ी पट्टी को अच्छी तरह जोता और ये इसमें रोप दिये। डी. सी. साहब प्रतिमास आते, उन्हें मेरे साथ इस कार्य में काफी दिलचस्पी थी और वे कभी-कभी मूली-शलजम के बीज भी लाकर देते और मुझसे कहते कि मेरी भी कृषि के प्रति काफी दिलचस्पी है।
यह जेलखाना जंगल में था। कभी-कभी शेरों की आवाजें भी हम सुनते। इस जेलखाने में रात को काफी सांप निकलते और वे इतने जहरीले थे कि व्यक्ति को काट लें और उसे तुरंत इंजेक्शन नहीं दिया जाये तो दो घंटे में ही व्यक्ति की मृत्यु हो जाती। मैं रात को भोजन के बाद घूमता था।
यहां हमारा एक मशक्कती था, डॉक्टर साहब के साथ उसकी अच्छी गप-शप लगती थी। वह डॉक्टर साहब से बोला कि हमारी औरतें और पुरुष हाथ बांधकर और इक_े नाच-गाना करते हैं। एक दिन हमने इससे प्रश्न किया कि कैसे कैद हुए हो? तो वह बोला कि मैंने एक व्यक्ति को मार दिया था और जब मुझ पर मुकदमा बन गया तो संबंधियों ने मेरे लिये वकील किया। वकील ने मुझे बयान दिखलाया कि ऐसा आप कहेंगे। मैं उससे बोला कि यह तो झूठ है और मैं झूठ नहीं बोलूंगा। वकीलों ने लोगों को झूठ बोलने का आदी बना दिया है। वास्तविकता यह है कि ये वकील जिस समय से पैदा हुए हैं तब से देश में झूठ और झूठे मुकदमे बढ़ गये हैं, मगर मैंने झूठ नहीं बोला और सच बोला। सच बोलने के फलस्वरूप मैं फांसी से बच गया।
यहां पपीतों का बाग जब पक गया तो एक-दो पपीते हमने खाये कि हमारी रिहाई का आदेश आ गया। हमने तो काफी पपीते बोये थे और वे पक रहे थे। चाहे इस जेलखाने में पपीते लगाने का आदेश नहीं था, मगर गुझे जनरल साहब ने विशेष अनुमति दी हुई थी तो हम जब जेल से छूट रहे थे, जेल वाले और कैदी काफी उदास थे कि आप रिहा हो जाओगे और चले जाओगे ये पपीते जड़ से निकाल दिये जायेंगे। पपीते पकाई पर आ गये थे, बहुत मीठे थे। पहले इस जेलखाने में पपीते रोपने की अनुमति थी, मगर कैदी उन्हें उखाड़ लेते थे और दीवार के पास लगाकर भाग जाते थे तो पपीते रोपना बंद हो गया था।
हमारे बावर्ची ने हमारी रिहाई की बात सुनी तो रुआंसा-सा हो गया। मैंने उससे कहा कि हमारी रिहाई से उदास हो? तो वह बोला कि नहीं आपकी रिहाई से खुश हूं, लेकिन मैं स्वयं से दुखी हूं। जेल वाले भी हमारी रिहाई से उदास थे, मैं भी अपने उन पपीतों पर काफी दु:खी था।
(अब्दुल गफ्फार खान लिखित और अखलाक अहमद 'आहनÓ द्वारा अनूदित 'मेरा जीवन मेरा संघर्षÓ से साभार)
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