पूरा देश गुरु गोविंद सिंह जी का 350 वां प्रकाश पर्व चल रहा है। ऐसे समय में हजारीबाग जेल में बंद रहे सुधारवादी सिख नेता और लाहौर कांस्पाइरेसी केस के नायक क्रांतिकारी रणधीर सिंह और उनके जांबाज अनुयायियों को भी याद करना समीचीन होगा। उन अनुयायियों को, जो हजारीबाग जेल से फरार हुए थे। इनकी वीरगाथा को हम भुला बैठे हैं। ये वैसे ही अनुयायी थे, जैसे भगत सिंह ने देश के लिए अपने केश कटा लिए और इन्होंने भी अपने केश-दाढ़ी आग से जला डाले थे।
डर से दुबके रहे जेल के संतरी
रणधीर सिंह 1918 में जब हजारीबाग जेल में थे, तब उनके 18 अनुयायी भी जेल में बंद थे। ये अनुयायी जेल की दीवार फांदकर भाग निकले थे। इसका सजीव चित्रण भाई रणधीर सिंह ने अपनी आत्मकथा में किया है। लिखा है कि जब सिखों ने जेल से भागने की योजना बनाई और उन्हें भी साथ चलने को कहा, पर भाई रणधीर सिंह और कुछ दूसरे अनुयायियों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। तब फरवरी 1918 की एक रात 18 लोग हजारीबाग जेल की दीवार फांदकर भाग निकले। आधी रात को इनके भागने से लेकर सुबह तीन बजे तक जेल के संतरी डर से दुबके रहे।
तलाशने की शुरू हुई कार्रवाई
दूसरे दिन सुबह से भागे हुए लोगों को ढूंढऩे की कार्रवाई शुरू हुई। भागने वालों में पांच लोगों के पैर दीवार से कूदने के कारण टूट गए थे, जिसके कारण ये लोग चल सकने में असमर्थ थे। दो लोगों के पैर में मोच थी, पर वे चल सकते थे। तय हुआ कि पांचों को ढोकर आगे बढ़ा जाए। पर पांचों घायलों ने स्वयं को लाद कर ले जाने से इन्कार कर दिया और बाकियों से कहा कि उनकी चिंता छोड़कर वे तुरंत निकल जाएं। जिन दो लोगों- भाई हीरा सिंह और संधू राजिन्दर सिंह को मोच आई थी, वे दो मील जाते-जाते पस्त हो गए। शेष 11 लोग घने जंगलों में समा गए। भाई पाखर सिंह, भाई लाल सिंह, भाई सुंदर सिंह, भाई हरनाम सिंह और भाई केसर सिंह जो घायल थे और चल-फिरने में असमर्थ थे, खेतों में छुप गए। दूसरे दिन ये सभी पांचों और अन्य दो भी गांव वालों की सूचना पर पकड़ लिए गए। बाकी 11 में से छह-गेंदा सिंह निहंग, इंदर सिंह, अर्जन सिंह, भाई दल सिंह, भाई गुज्जर सिंह भाखना और भाई सज्जन सिंह नारंगवाल, जो 3-3 के दल में बंटकर भाग रहे थे, ये सभी करीब महीने-डेढ़ महीने के भीतर पुलिस और ग्रामीणों की भीड़ से लड़ते हुए मरणासन्न अवस्था में पकड़ लिए गए। पुलिस ने इन पर भारी इनाम की घोषणा की थी और इन्हें खूंखार डकैत व हत्यारा बताया था। इन सभी ने अपनी सिख पहचान छुपाने के लिए अपने केश-दाढ़ी आग से जला कर नष्ट कर दिए थे। भाई नत्था सिंह धुन और भाई हरि सिंह बनारस में गिरफ्तार किए गए। शेष 3 लोग भाई सुच्चा सिंह, भाई तेजा सिंह और भाई बुद्धा सिंह कभी नहीं पकड़े जा सके।
कौन थे भाई रणधीर सिंह
सुधारवादी सिख नेता और लाहौर कांस्पाइरेसी केस के नायक क्रांतिकारी भाई रणधीर सिंह का जन्म 7 जुलाई 1878 ई. में पंजाब के लुधियाना जिले में हुआ था। भाई रणधीर सिंह ने लाहौर के क्रिश्चियन कॉलेज से तालिम हासिल की थी। शिक्षा पूरी करने के कुछ ही समय बाद वे 'सिंह सभाÓ आंदोलन में शामिल हो गए। उनकी सशक्त लेखनी और काव्य प्रतिभा से इस आंदोलन को बड़ा बल मिला। वे केवल पंजाबी भाषा में ही लिखते थे। सिख जीवन दर्शन का उन्हें गहन ज्ञान था। भाई रणधीर सिंह का देहांत 16 अप्रैल 1961 को हुआ था।
डर से दुबके रहे जेल के संतरी
रणधीर सिंह 1918 में जब हजारीबाग जेल में थे, तब उनके 18 अनुयायी भी जेल में बंद थे। ये अनुयायी जेल की दीवार फांदकर भाग निकले थे। इसका सजीव चित्रण भाई रणधीर सिंह ने अपनी आत्मकथा में किया है। लिखा है कि जब सिखों ने जेल से भागने की योजना बनाई और उन्हें भी साथ चलने को कहा, पर भाई रणधीर सिंह और कुछ दूसरे अनुयायियों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। तब फरवरी 1918 की एक रात 18 लोग हजारीबाग जेल की दीवार फांदकर भाग निकले। आधी रात को इनके भागने से लेकर सुबह तीन बजे तक जेल के संतरी डर से दुबके रहे।
तलाशने की शुरू हुई कार्रवाई
दूसरे दिन सुबह से भागे हुए लोगों को ढूंढऩे की कार्रवाई शुरू हुई। भागने वालों में पांच लोगों के पैर दीवार से कूदने के कारण टूट गए थे, जिसके कारण ये लोग चल सकने में असमर्थ थे। दो लोगों के पैर में मोच थी, पर वे चल सकते थे। तय हुआ कि पांचों को ढोकर आगे बढ़ा जाए। पर पांचों घायलों ने स्वयं को लाद कर ले जाने से इन्कार कर दिया और बाकियों से कहा कि उनकी चिंता छोड़कर वे तुरंत निकल जाएं। जिन दो लोगों- भाई हीरा सिंह और संधू राजिन्दर सिंह को मोच आई थी, वे दो मील जाते-जाते पस्त हो गए। शेष 11 लोग घने जंगलों में समा गए। भाई पाखर सिंह, भाई लाल सिंह, भाई सुंदर सिंह, भाई हरनाम सिंह और भाई केसर सिंह जो घायल थे और चल-फिरने में असमर्थ थे, खेतों में छुप गए। दूसरे दिन ये सभी पांचों और अन्य दो भी गांव वालों की सूचना पर पकड़ लिए गए। बाकी 11 में से छह-गेंदा सिंह निहंग, इंदर सिंह, अर्जन सिंह, भाई दल सिंह, भाई गुज्जर सिंह भाखना और भाई सज्जन सिंह नारंगवाल, जो 3-3 के दल में बंटकर भाग रहे थे, ये सभी करीब महीने-डेढ़ महीने के भीतर पुलिस और ग्रामीणों की भीड़ से लड़ते हुए मरणासन्न अवस्था में पकड़ लिए गए। पुलिस ने इन पर भारी इनाम की घोषणा की थी और इन्हें खूंखार डकैत व हत्यारा बताया था। इन सभी ने अपनी सिख पहचान छुपाने के लिए अपने केश-दाढ़ी आग से जला कर नष्ट कर दिए थे। भाई नत्था सिंह धुन और भाई हरि सिंह बनारस में गिरफ्तार किए गए। शेष 3 लोग भाई सुच्चा सिंह, भाई तेजा सिंह और भाई बुद्धा सिंह कभी नहीं पकड़े जा सके।
कौन थे भाई रणधीर सिंह
सुधारवादी सिख नेता और लाहौर कांस्पाइरेसी केस के नायक क्रांतिकारी भाई रणधीर सिंह का जन्म 7 जुलाई 1878 ई. में पंजाब के लुधियाना जिले में हुआ था। भाई रणधीर सिंह ने लाहौर के क्रिश्चियन कॉलेज से तालिम हासिल की थी। शिक्षा पूरी करने के कुछ ही समय बाद वे 'सिंह सभाÓ आंदोलन में शामिल हो गए। उनकी सशक्त लेखनी और काव्य प्रतिभा से इस आंदोलन को बड़ा बल मिला। वे केवल पंजाबी भाषा में ही लिखते थे। सिख जीवन दर्शन का उन्हें गहन ज्ञान था। भाई रणधीर सिंह का देहांत 16 अप्रैल 1961 को हुआ था।
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