रातू गढ़ में अब अजीब खामोशी और उदासी पसरी हुई है। सिंह द्वार के आजू-बाजू तोप भी निस्पंद और बेजान हो गए हैं। सूरज की रोशनी में जरूर किले का तेज बरकरार है, लेकिन किले का पत्ता-पत्ता-बूटा-बूटा अपने युवराज गोपाल शरण नाथ शाहदेव को याद कर रहा है। फूलों का बाग हो या बैठकखाना।
पहली मंजिल पर बनी अतिथिशाला के फानूस भी उदासी को महसूस कर सकते हैं। गलीचे और सोफे की कहानी भी जुदा नहीं है। इसी विशाल कमरे में पैर से बजाने वाला हारमोनियम भी एक कोने में रखा हुआ और एक प्राचीन वाद्ययंत्र भी। दीवारें राजा-महाराजा और परिवारिक सदस्यों की तस्वीरें से भरी पड़ी हैं। इंदिरा गांधी की तस्वीर भी राजा के साथ है। इस कमरे में बाहर से आने वाले अतिथियों का स्वागत-सत्कार होता था। बातचीत होती थी।
बहुत शौक से पाले से पक्षी
युवराज गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने यहां एक पक्षी उद्यान भी बनवाया था। यहां छोटे-छोटे पत्थरों से पहाड़ और झरने बनाए गए हैं, जो अब झंखाड़ हो चुके हैं। सफेद तोता एक दो बचे हुए हैं। विदेशी चिडिय़ों की संख्या में घट गई है। सफेद चूहों की जरूर भरमार है। खरगोश भी उछलकूद करते हुए मिल जाएंगे। लेकिन पक्षियों का बाड़े की रंगाई लगता है सालों से नहीं हुई है। जो कभी विदेशी पक्षियों से यह उद्यान चहकता रहता था, अब कलरव भी सुनाई नहीं देता।
धूपघड़ी रहती बंद
गढ़ में धूपघड़ी भी है। उसे अब बंद ही रखा जाता है। दुर्गा पूजा के समय खुलती है। धूप से समय का पता लगा सकते हैं। जिस कंपनी की यह घड़ी है, उसका नाम है। लंदन की इस कंपनी की शाखा कोलकाता में थी। क्योंकि लंदन-कलकत्ता दोनों नाम छपा है। जब कोई बाहर से आता है तो उसे दिखाया जाता है।
महाराजा उदय प्रताप ने कराया था निर्माण
किले का निर्माण 1870 से शुरू हुआ था। लेकिन कहीं इसका उल्लेख 1901 मिलता है। महाराजा प्रताप उदय नाथ शाहदेव ने इस गढ़ का निर्माण कलकत्ते के अंग्रेज कंपनी के ठेकेदार से कराया था। प्रताप उदयनाथ शाहदेव अपने वंश के 61 वें राजा था। उनका जन्म 1866 ईस्वी में हुआ था। उनका राज्यारोहण मात्र तीन साल, दो माह, 23 दिन की उम्र में हुआ था। महाराजा के नाबालिग रहने के कारण कोर्ट आफ वार्ड हो गया और उस समय अंग्रेजों ने राज्य संचालन के लिए अंग्रेज एवं अन्य को मैनेजर नियुक्त किया। जब वे 1887 में बालिग हो गए तो उन्होंने अपना अंग्रेज मैनेजर रखा, जिसका नाम जीटी पीपी था इनकी मृत्यु के बाद एलएन पीपी मैनेजर हुए। इनके बाद एटी पीपी। ये नौ अगस्त 1949 तक रहे। नागवंश के दो हजार साल के इतिहास में महाराजा उदय प्रताप ऐसे राजा हुए, जिन्होंने 81 साल तक शासन किया। किले पर बकिंघम पैलेस की भी छाप है।
एक सौ तीन कमरे
गढ़ 22 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें एक सौ तीन कमरें हैं। मुख्य द्वार के ठीक सामने दुर्गा मंडप है। उसके सामने बलि देने का स्थान बना हुआ है। काड़ा और खस्सी की बलि यहां दुर्गा पूजा के समय दी जाती है।
जगन्नाथ मंदिर भी
प्रवेश द्वार के पहले ही दाहिने जगन्नाथ स्वामी का मंदिर है। यहां विशाल रथयात्रा भी निकाली जाती है। मंदिर से सटा हुआ विशाल घर है, जिसमें रथ को रखा जाता है। यहां की रथयात्रा देखने के लिए भी लोग दूर-दूर से आते हैं।
पहली मंजिल पर बनी अतिथिशाला के फानूस भी उदासी को महसूस कर सकते हैं। गलीचे और सोफे की कहानी भी जुदा नहीं है। इसी विशाल कमरे में पैर से बजाने वाला हारमोनियम भी एक कोने में रखा हुआ और एक प्राचीन वाद्ययंत्र भी। दीवारें राजा-महाराजा और परिवारिक सदस्यों की तस्वीरें से भरी पड़ी हैं। इंदिरा गांधी की तस्वीर भी राजा के साथ है। इस कमरे में बाहर से आने वाले अतिथियों का स्वागत-सत्कार होता था। बातचीत होती थी।
बहुत शौक से पाले से पक्षी
युवराज गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने यहां एक पक्षी उद्यान भी बनवाया था। यहां छोटे-छोटे पत्थरों से पहाड़ और झरने बनाए गए हैं, जो अब झंखाड़ हो चुके हैं। सफेद तोता एक दो बचे हुए हैं। विदेशी चिडिय़ों की संख्या में घट गई है। सफेद चूहों की जरूर भरमार है। खरगोश भी उछलकूद करते हुए मिल जाएंगे। लेकिन पक्षियों का बाड़े की रंगाई लगता है सालों से नहीं हुई है। जो कभी विदेशी पक्षियों से यह उद्यान चहकता रहता था, अब कलरव भी सुनाई नहीं देता।
धूपघड़ी रहती बंद
गढ़ में धूपघड़ी भी है। उसे अब बंद ही रखा जाता है। दुर्गा पूजा के समय खुलती है। धूप से समय का पता लगा सकते हैं। जिस कंपनी की यह घड़ी है, उसका नाम है। लंदन की इस कंपनी की शाखा कोलकाता में थी। क्योंकि लंदन-कलकत्ता दोनों नाम छपा है। जब कोई बाहर से आता है तो उसे दिखाया जाता है।
महाराजा उदय प्रताप ने कराया था निर्माण
किले का निर्माण 1870 से शुरू हुआ था। लेकिन कहीं इसका उल्लेख 1901 मिलता है। महाराजा प्रताप उदय नाथ शाहदेव ने इस गढ़ का निर्माण कलकत्ते के अंग्रेज कंपनी के ठेकेदार से कराया था। प्रताप उदयनाथ शाहदेव अपने वंश के 61 वें राजा था। उनका जन्म 1866 ईस्वी में हुआ था। उनका राज्यारोहण मात्र तीन साल, दो माह, 23 दिन की उम्र में हुआ था। महाराजा के नाबालिग रहने के कारण कोर्ट आफ वार्ड हो गया और उस समय अंग्रेजों ने राज्य संचालन के लिए अंग्रेज एवं अन्य को मैनेजर नियुक्त किया। जब वे 1887 में बालिग हो गए तो उन्होंने अपना अंग्रेज मैनेजर रखा, जिसका नाम जीटी पीपी था इनकी मृत्यु के बाद एलएन पीपी मैनेजर हुए। इनके बाद एटी पीपी। ये नौ अगस्त 1949 तक रहे। नागवंश के दो हजार साल के इतिहास में महाराजा उदय प्रताप ऐसे राजा हुए, जिन्होंने 81 साल तक शासन किया। किले पर बकिंघम पैलेस की भी छाप है।
एक सौ तीन कमरे
गढ़ 22 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें एक सौ तीन कमरें हैं। मुख्य द्वार के ठीक सामने दुर्गा मंडप है। उसके सामने बलि देने का स्थान बना हुआ है। काड़ा और खस्सी की बलि यहां दुर्गा पूजा के समय दी जाती है।
जगन्नाथ मंदिर भी
प्रवेश द्वार के पहले ही दाहिने जगन्नाथ स्वामी का मंदिर है। यहां विशाल रथयात्रा भी निकाली जाती है। मंदिर से सटा हुआ विशाल घर है, जिसमें रथ को रखा जाता है। यहां की रथयात्रा देखने के लिए भी लोग दूर-दूर से आते हैं।
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