'तीर्थÓ की उपेक्षा का मलाल पर, लोकतंत्र में आस्था बरकरार


बिसुआ टाना भगत जतरा टाना भगत के वंशज हैं। वे चिंगरी गांव के नया टोला में रहते हैं। गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड का ऐतिहासिक गांव है। गांव कहना ठीक नहीं, यह वास्तव में तीर्थ है। मुख्य सड़क से गांव के अंदर जो पीसीसी सड़क जाती है,  सौ कदम अंदर चलने पर दाहिने ही पहला घर उनका है। घर में खेत है या खेत में घर कहना मुश्किल है। गांव के मकान मिट्टी हैं और छप्पर खपरैल के। अभी बिसुआ को पीएम आवास की कुछ राशि मिली है तो अपना नया मकान बना रहे हैं। मलाल उन्हें इस बात का है कि उन्हें भी वही राशि मिली, जो दूसरों को इस मद में मिलती है।
पर, ज्यादा दुख उन्हें इस बात का है कि राज्य सरकार ने जो पांच एकड़ जमीन दी है, उस पर किसी और का कब्जा है। आज तक उन्हें वह जमीन नसीब नहीं हो सकी। जब जमीन को अपने अधिकार में लेना चाहा तो किसी और ने दावा कर दिया और अब मामला कोर्ट में पहुंच गया। दो बार गुमला कोर्ट गया, लेकिन सुनावाई से आगे बात नहीं बढ़ पाती तो अब जाना ही बंद कर दिया।
सुबह-सुबह की बेला में, जब सूर्य की किरणें धरती को चूम रही थीं, बिसुआ के माथे की नसों में उभार दिखने लगा था। बोलने लगे, यहां गांव में उनका स्मारक भी ढंग का नहीं बना। शहीद आवास के नाम पर भी केवल खानापूर्ति की गई है। उनके बेटे श्रीचंद कहते हैं कि हमारी आस्था लोकतंत्र में हैं। हम सिर्फ मतदान ही कर सकते हैं। लेकिन जो जीतकर जाता है, मतदाता को भूल जाता है। श्रीचंद कहते हैं हमारे बच्चों को शिक्षा की भी कोई सुविधा नहीं। फीस नहीं जमा करने पर स्कूल वाले बच्चों को भगा देते हैं। सरकार कम से कम हमारे बच्चों को शिक्षा तो दे ही सकती है। परिवार की अपेक्षा है कि यहां जतरा टाना भगत के नाम पर भव्य एक स्मारक बने। यह टाना भगतों का तीर्थ है।  
युवक मनोज भगत भी यही कहते हैं। चिंगरी गांव के ही हैं। गांव के मुहाने पर ही जतरा की एक एक आदमकद प्रतिमा लगी है। चारों तरफ दीवार खड़ी कर दी गई है। मनोज दिल्ली में काम करते हैं और मतदान करने के लिए अपने गांव आए हैं। कहते हैं कि यहां हर गुरुवार को टाना भगत आते हैं, पूजा-पाठ और भजन करते हैं। अब कुछ ही बचे हैं, जिनका विश्वास जतरा टाना भगत के धर्म में हैं। चुनाव को लेकर उनमें कोई शंका नहीं। वे बताते हैं कि यहां कमल की हवा है। पर, एक दूसरे युवा बाबूलाल उरांव तीर की बात करते हैं। वे तीर की कई उपलब्धियां गिनाते हैं। कहते हैं कि दर्जन भर विद्या का मंदिर बना। आज शिक्षा बहुत जरूरी है। बाबूलाल के दो बड़े भाई बेहतर इलाज के अभाव में समय से पहले चल बसे। सो, पुलिस में लगी उनकी नौकरी को उनके पिता ने छुड़वा दिया और खेती-बारी में लगा दिया। वे खेती करते हैं। कहते हैं कि यहां खेती प्रकृति पर निर्भर है। लेकिन यहां सिंचाई की व्यवस्था हो जाए तो यह इलाका पंजाब को पीछे छोड़ सकता है। दोनों युवा एक ही गांव के हैं, आदिवासी हैं, लेकिन दोनों के विचार भिन्न हैं। दोनों साफगोई से बात करते हैं।

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