गांधी ने संत पॉल स्कूल के मैदान में दिया था भाषण

चर्च रोड स्थित संत पॉल स्कूल के मैदान में महात्मा गांधी ने 17 सितंबर, 1925 को अपराह्न तीन बजे एक सभा को संबोधित किया था। सभा में रांची की जनता की ओर से उन्हें एक मानपत्र तथा देशबंधु स्मारक कोष के लिए एक हजार एक रुपये की थैली भी भेंट की गई थी।  
गांधीजी ने इस सभा में कहा था कि सिर्फ चरखा ही भारत के करोड़ों लोगों की भूख मिटा सकता है। बेशक खाली समय में करने को और भी धंधे हैं, परन्तु जिसे लाखों लोग अपना सकें, ऐसा उपयुक्त धंधा चरखे पर सूत कातने के अलावा और कोई नहीं है। मैं पूरे देश में घूमता रहा हूं, लेकिन अभी तक किसी ने कोई ऐसा धंधा नहीं सुझाया जो चरखे का स्थान ले सके। बिहार के पास एक लाख रुपये की खादी पड़ी है। यदि वह बिक जाए तो प्राप्त धन से दूनी खादी बन सकेगी है। अकेला रांची ही आसानी से इतनी खादी खरीद सकता है। लोग मिल के कपड़े को स्वदेशी मान लेते हैं, लेकिन दिल्ली और बंबई के बने बिस्कुट क्या घर की रोटी का स्थान ले सकते हैं? तब फिर आपको भी बंबई की मिलों में बने कपड़े के बजाय बिहार में बनी खादी क्यों नहीं पहननी चाहिए?
यदि आपको अपनी निर्वसना मां-बहनों का तन ढंकना हो तो आपको खादी ही खरीदनी चाहिए। खादी अपेक्षाकृत महंगी है तो क्या हुआ, उसके लिए दी गई हर पाई गांवों की गरीब स्त्रियों को मिलती है। बंबई के अंत्यजों की रक्षा इसी चरखे ने की है।
अस्पृश्यता को समस्या का उल्लेख करते हुए गांधीजी ने कहा कि हिंदू धर्म में अस्पृश्यता जैसी कोई चीज नहीं है। इसी अस्पृश्यता ने भारतीयों को सारे संसार में अस्पृश्य बना दिया है। आपको इन अस्पृश्य भारतीयों की दशा देखनी हो तो दक्षिण अफ्रिका जाइए, आपको मालूम होगा कि अस्पृश्तया क्या चीज है। स्वर्गीय गोखले इसे अच्छी तरह जानते थे और अब भारत भी जान गया है। तुलसीदास ने आपको दया-धर्म की शिक्षा दी है, लेकिन आज आप उसके विपरीत आचरण कर रहे हैं। आपको अस्पृश्यता की यह समस्या दूर करती ही है, अन्यथा स्वराज्य कभी नहीं मिल सकता।
प्रस्तुति : संजय कृष्ण।

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