जंगलों को साफ कर बनाया गया था कांग्रेस का अधिवेशन स्थल
आंधी-पानी ने कांग्रेस अधिवेशन को बना दिया यादगार
संजय कृष्ण, रांची
आजादी के इतिहास में रामगढ़ एक अहम किरदार के रूप में सामने आता है। 1857 की क्रांति के दरम्यान तो इसकी भूमिका महत्वपूर्ण थी ही। लंबे समय तक यह हजार बागों वाले शहर हजारीबाग का एक अंग रहा और लंबे समय बाद यह जिला बना। पर, जिला बनने से पहले रामगढ़ दो कारणों से इतिहास में स्थान पा सका। एक का जिक्र ऊपर हो चुका है, दूसरा है 18 से 20 मार्च 1940 में हुए राष्ट्रीय कांग्रेस के 53 वें अधिवेशन का। उस समय देश के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं ने इस धरती पर शिरकत की। यह अधिवेशन इसलिए भी कांग्रेेस और देश के इतिहास में दर्ज हो गया कि एक तो तेज-आंधी पानी ने नेताओं का स्वागत किया और दूसरे सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी एक अलग राह बनाई। कांग्रेस अधिवेशन में करीब दस हजार की भीड़ थी। हालांकि सुभाष चंद्र बोस की सभा में भी भीड़ कम न थी। गांधी ने यहां लगी प्रदर्शनी का जब उद्घाटन किया तो उस समय दस हजार श्रोता उन्हें सुन रहे थे। इस अधिवेशन ने देश की दिशा तय की।
अधिवेशन के लिए रामगढ़ का चुनाव
रामगढ़ में अधिवेशन करने से पहले कई और स्थानों पर विचार हुआ था। इनमें सबसे पहले सोनपुर पर विचार हुआ, जहां का पशु मेला प्रसिद्ध है। इसके बाद ऐतिहासिक बौद्ध तीर्थ स्थल राजगृह पर विचार किया गया। फिर पटना के पास फुलवारी शरीफ पर विचार हुआ, लेकिन हजारीबाग के उस समय कांग्रेसी नेता बाबू रामनारायण सिंह ने डा. राजेंद्र प्रसाद को बहुत जोर दिया कि छोटानागपुर हमेशा उपेक्षित रहा है। इस बार यहां की धरती पर इसका आयोजन किया जाए। इस तरह स्थल चयन में रामगढ़ को लोगों ने पसंद किया। कांग्रेसी नेता रामदास गुलारी ने इस स्थान को स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक उपयोगी समझा। डा. राजेंद्र प्रसाद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, 'मेरी भी धारणा थी कि उन सुन्दर सुहावने जगलों के बीच दामोदर नदी के किनारे का अधिवेशन अपने ढंग का निराला होगा।Ó यहां दामोदर नदी के किनारे जंगल काटकर अधिवेशन के लिए जमीन तैयार की गई। बांध बनाया गया।
आंधी-पानी ने किया स्वागत
अधिवेशन के पहले दिन 18 मार्च को जोर की आंधी-पानी आई। रहने के लिए जो झोपड़े बने थे, भीग गए। खुले अधिवेशन और पंडाल विषय-निर्वाचिनी के लिए भी पंडाल बना था। इसके अलावा प्रदर्शनी के लिए भी झोपड़े बनाए गए थे। नदी में कुंआ खोदकर पंप लगाया गया। पानी साफ करने के लिए बडी-बड़ी टंकियां पक्की बनी थीं, जिनमें एक समय एक लाख आदमियों के लिए दो या तीन दिनों तक के खर्च-भर पानी रह सके। एक बांध भी यहां बनाया गया था। पंडाल के पास में ही घनघोर जंगल था। अधिवेशन के लिए टिकट था। भीड़ काफी थी कि अचानक बादलों ने दस्तक दे दी और पानी बरसने लगा। चंद मिनटों में इतनी बारिश हुई कि नीची जमीन पानी में भर गई। बारिश का जोर बढ़ता ही गया। इतना पानी भर गया कि खड़ा रहना भी मुश्किल हो गया। कठिन हो गया। बारिश में ही सभापति मंच पर आ और दो चार शब्द कहने और अधिवेशन समाप्त कर दिया गया। दूसरे दिन रिमझिम रिमझिम पानी बरसता रहा। बाद में लोगों से आग्रह किया गया कि लोग अपने-अपने घर चले जाएं। अधिवेशन में मौलाना अबुल कलाम आजाद सभापति चुने गए। मानवेन्द्रनाथ राय भी उमीदवार थे पर उनको थोड़े ही वोट मिले। तीन दिनों तक चले अधिवेशन में देश-दुनिया की निगाहें रामगढ़ पर थीं। आखिरकार, 20 मार्च को यह संपन्न हो गया।
समझौता विरोधी सभा
इसी दौरान एक दूसरी बड़ी सभा हुई, उसे समझौता-विरोधी-सभा कहा गया। उसके मुखिया सुभाषचंद्र बोस थे। स्वामी सहजानन्द सरस्वती और धनराज शर्मा उनके साथ थे। इसी सभा में उन्होंने फारवर्ड ब्लाक का गठन किया। इस सभा के बाद ब्रिटिश सरकार ने सुभाष चंद्र बोस को नजरबंद कर दिया गया। सहजानन्द सरस्वती को भी बाद में गिरफ्तार किया गया तथा तीन साल के लिए जेल में बन्द किया गया। यहीं से गांधी-सुभाष के रास्ते अलग हो गए।
नहीं हो सकी आकाश से पुष्पवर्षा
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में अधिवेशन तो हुआ, लेकिन बारिश ने आकाश से पुष्प वर्षा पर पानी फेर दिया। रांची के प्रमुख व्यवसायी धर्मचंद्र सरावगी एक कुशल पायलट भी थे। विमान से पुष्प वर्षा की जिम्मेदारी इन्हें दी गई थी। अधिवेशन में उद्घाटन के अवसर पर आकाश से पुष्पवृष्टि कर अध्यक्ष अब्दुल कलाम आजाद का स्वागत करना था। ठीक समय पर धर्मचंदजी ने अपने फ्लाइंग क्लब का वायुयान लेकर रामगढ़ की ओर उड़े। किंतु तूफान और मूसलाधार वृष्टि के कारण पुष्प वृष्टि नहीं कर सके। जहाज संकट में फंस गया। धर्मचंदजी ने बड़े साहस व सूझबूझ से काम लेते हुए विमान को जमशेदपुर हवाई अड्डे पर उतार लिया।
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