अगस्त क्रांति से रांची का पठार भी सुलग उठा था। इस क्रांति में सर्वाधिक कीमत टाना भगतों ने चुकाई। एक दर्जन से अधिक टाना भगतों ने पटना के फुलवारी जेल कैंप में अपनी शहादत दी, जिसका इतिहास में कहीं जिक्र ही नहीं आता। उन्हें यहां से गिरफ्तार कर पटना भेज दिया गया था। हालांकि इन्होंने अङ्क्षहसात्मक आंदोलन किया था। उसी तरह यहां जिला स्कूल के छात्र भी इस आंदोलन में कूद पड़े। 14-15 अगस्त को जुलूस निकाला। 17 को मामला अधिक गंभीर हो उठा। विद्याॢथयों ने स्कूल-कालेज छोड़कर कहीं हिंसात्मक तो कहीं शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू कर दिया। यहां के पुलिस अधिकारियों ने बड़ी होशियारी काम लिया। उन्होंने प्रदर्शन करने वालों पर डंडा नहीं चलाया और न सरकारी इमारतों पर झंडा फहराने के काम में किसी भी प्रकार का दखल दिया। परिणाम यह हुआ कि शहर की जागरूक जनता झंडे फहराकर वापस लौट गई। सरकारी इमारतों पर थोड़ी बहुत जगह जहां ताले लगाए गए थे, पुलिस अधिकारियों की प्रार्थना और इस आश्वासन पर कि वे आजाद सरकार की आज्ञानुसार कार्य करने को तैयार हैं, खोल दिए गए। मांडर, कुडूं, चैनपुर, बेड़ो, बिशुनपुर जैसे सुदूर इलाकों में भी थानों पर टाना भगतों ने झंडे फहराए। कुंडू को छोड़कर बाकी सबमें ताला लगा दिया गया। युवाओं के जोश ने अहिंसा को पीछे छोड़ दिया और अरगोड़ा रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया। रांची और लोहरदगा के बीच की रेलवे लाइन उखाड़ दी गई। रांची हवाई अड्डे, लोहरदगा के फौजी कैंप, रांची की पोस्ट ऑफिस एवं ग्रीष्मकालीन सचिवालय पर भी तोड़-फोड़ की गई। तार काटने का काम कोकर में किया गया, तब यह गांव ही था। जिला स्कूल के भूगोल विभाग को भी 18 अगस्त को आग के हवाले कर दिया।
रांची जेल के सामने जुलूस पहुंचा तो अंदर बंद विद्याॢथयों ने जेल तोड़ कर बाहर निकलने की चेष्टा की, किंतु बाहर से पूरी सहायता न मिलने तथा अन्य कैदियों के बाधा उपस्थित करने से एक फाटक पार करने पर उन्हेंं रोक दिया गया। बाद में जेल में लाठी चार्ज हो गया, जिसमें शहर के सबसे धनी परिवार के लड़के आत्माराम बुधिया को गहरी चोट आई।
हजारीबाग में आंदोलन का श्रीगणेश 11 अगस्त से हुआ। सरस्वती देवी एमएलए ने एक जुलूस संगठित किया, जिसका उद्देश्य नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना था। दो-एक दिन तक इसी प्रकार जुलूस निकलते रहे। परंतु जब सरकारी अधिकारियों ने कुछ छेड़-छाड़ की तो उत्तेजित जनता ने पोस्ट आफिस, यूरोपियन क्लब, लाल कंपनी तथा डिप्टी कमिश्नर की अदालत में हल्की तोड़-फोड़ की।
इस इलाके में सबसे अधिक राजनीतिक चेतना अभ्रक की खानों तथा गिरिडीह के आस-पास कोयले की खानों में काम करने वाले मजदूरों में थी। ये लोग नेताओं की गिरफ्तारी की खबर सुनते ही अधीर हो उठे। उन्होंने झुमरीतिलैया में जुलूस निकाला। पोस्ट आफिस, रेलवे स्टेशन और शराब की भट्ठी पर तोड़-फोड़ की। डोमचांच में लोगों ने जुलूस निकाला। यहां जुलूस शांतिपूर्वक निकल रहा था, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों को यह हजम नहीं हुआ। उन्होंने जुलूस पर लाठी चार्ज कर दिया, हंटर चलाया। गोली भी चलाई, जिससें दो लोग मारे गए और 22 लोग घायल हो गए। जन-समूह विशाल था। वह निर्भीकता के साथ डटा रहा। सरकार का दमन चक्र इस जिले में बड़ी भयंकरता से चला। कोडरमा थाने में गिरफ्तार व्यक्तियों पर हंटर से खूब मार पड़ी। पुलिस ने अपनी राक्षसी प्रकृति का परिचय देते हुए लोगों को चौराहों पर नंगा करके हंटरों से पीटा और जब तक उनका शरीर लहू-लुहान न हो गया और वे अधमरे न हो गए तब तक उन पर बराबर मार पड़ती रही। असह्य पीड़ा के कारण बेहोश हो जाने पर भी मार बंद न हुई और बाद में वे जेलखानों की काल कोठरियों के अंदर ठूंस दिये गए। एक दो ने तो जेल के फाटक पर पहुंचते-पहुंचते ही दम तोड़ दिया। बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिकों को अपमानित किया गया और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया ।
जमशेदपुर में मिल एरिया में रहने वाले मजदूरों ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया। जमशेदपुर की टाटा स्टील कंपनी के सात सौ तथा अन्य कंपनियों के मजदूरों ने नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में अगस्त से हड़ताल शुरू की। इन मजदूरों पर कांग्रेस का अधिक प्रभाव था। अतएव उनके सब प्रदर्शन पूर्ण रूप से अहिंसक रहे। उन्होंने किसी भी अफसर की जान लेने का प्रयत्न नहीं किया। पूरे 13 दिन तक बड़े शांति पूर्ण ढंग से हड़ताल को चलाया। मजदूरों के त्याग ने कुछ सिपाहियों को भी प्रभावित किया और 28 सिपाहियों ने शांतिपूर्वक हथियार रख दिये और सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यहां पर मजदूरों तथा विद्याॢथयों का पूरा सहयोग रहा। स्कूलों में हड़ताल हुई और जुलूम भी निकले। जमशेदपुर में ब्लूम ब्रिज को तोडऩे की चेष्टा की गई। रांची के आसपास तार भी काटे गए।
छह सितंबर को जमशेदपुर में 15 हजार से अधिक लोगों का जुलूस निकला, जिसमें दलितों की संख्या अधिक थी ये लाग राष्ट्रीय नारे लगाते हुए जेल के फाटक पर जा पहुंचे और वहां के अधिकारियों से कहा- हम अपने नेताओं के दर्शन करना चाहते हैं, उन्हेंं बाहर निकालिए।. जनता को यह शक था कि उसके नेताथों पर जेल में सख्ती की जाती है। जेल अधिकारी जनता की मांग को ठुकरा न सके। वे डर के मारे कांप रहे थे। उन्होंने जनता की आज्ञा का पालन करने में ही अपना भला समझा। तुरंत नेता लोग बाहर लाए गए। जनता उन्हेंं ठीक स्थिति में देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई। उसने खूब जोर से जयघोष किया और अपने नेताओं को फूलों की मालाओं से लाद दिया तथा मानपत्र भेंट कर वापस लौट गई। यहां शांतिपूर्ण आंदोलन चलता रहा।
पलामू के देहातों में प्राय: शांति थी लेकिन शहर आग की लपटों जल रहे थे। वहीं के विद्याॢथयों तथा वकीलों ने आगे बढ़कर जनता का नेतृत्व किया। हड़ताल और जुलूस विशेष कार्यक्रम थे। डालटनगंज, गढ़वा, हुसैनाबाद, लेस्लीगंज और लातेहार के थानों पर जनता ने झंडे फहराने की चेष्टा की तथा गढ़वा को छोड़कर शेष थानों पर झंडे फहराये भी गए। डालटनगंज थाने की पुलिस को अ्रात्म-समर्पण के लिए बाध्य किया गया और जेल पर आक्रमण करके जनता ने अपने नेता रामकिशोर एमएलए को जेल से बाहर निकाल लिया। डालटनगंज, गढ़वा और हरिहरगंज के डाकखाने भी जनता के आक्रमण के शिकार हुए। डालटनगंज के थाने को तो लोगों ने जलाकर खाक कर दिया। इसके अतिरिक्त स्थान-स्थान पर शराब की भट्ठियों को भी बर्बाद किया गया।
इस जिले में सरकार द्वारा जो दमन हुआ वह अन्य स्थानों से मिलता जुलता था। हां एक बात खास थी। यहां के जमीदारों ने दमन करने में पुलिस का साथ दिया और किसानों को पिटवाया, गिरफ्तार करवाया और इस प्रकार देशद्रोही का कलंकपूर्ण खिताब प्राप्त किया। संथाल परगना भी अगस्त क्रांति की लपटों से अछूता न रहा। देवघर, दुमका, गोड्डा, जामताड़ा, करमाटाड़, राजमहल, साहिबगंज आदि स्थानों पर जनता ने जुलूस निकाले। झंडा फहाराया। यहां 600 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए, जिनमें 200 आदिवासी थे। इस जिले में छह लोग गोली के शिकार हुए और 20 जेलों में मर गए। यहां पर कई लोगों को 35 साल तक की सजाएं हुईं। जब देश आजाद हुआ तो रांची के पहाड़ी मंदिर पर तिरंगा फहराया गया।
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