संजय कृष्ण
बिरसा मुंडा के आंदोलन की जब भी बात होगी, गया मुंडा जरूर याद
आएंगे। इनके बिना हम बिरसा आंदोलन की समझ हमारी अधूरी रहेगी। गया
मुंडा बिरसा मुंडा के दाहिने हाथ थे या कहें सेनापति की भूमिका
में। कभी रांची का हिस्सा रहा और अब जिले का अस्तित्व धारण कर चुके
खूंटी जिले के सैको या साइको से कुछ दूसरी पर गया मुंडा का घर हैै।
गांव का नाम एटकेडीह। यहीं उनके वंशज रहते हैं। घर अब पक्का का है,
लेकिन छत लोहे की चादर की। घर पर एक छोटा सा बोर्ड है, जिस पर लिखा
है, 'गया मुंडा शहीद स्थलÓ। पूरे 119 साल बाद याद इस क्रांतिकारी
की याद आई तो गांव के चौराहे पर छह जनवरी 2019 को एक प्रतिमा जरूर
लगा दी गई है।
झारखंड के ऐसे अनगिनत देश पर मर-मिटने वाले देश भक्तों को नहीं
जानते, जिन्होंने अपना पूरा परिवार खोया है। गया मुंडा भी उनमें से
एक हैं। मुरहू के कुदा पंचायत के एटकेडीह में इनका जन्म हुआ था।
अंग्रेजों को भगाने के लिए इन्होंने बिरसा मुंडा का न केवल साथ
दिया था, बल्कि पूरा परिवार ही कूद पड़ा था। इस बलिदान परिवार को
इतिहास में जगह नहीं मिली। बिरसा मुंडा का पूरा आंदोलन कुल पांच
साल तक चला-1895 सेे जून 1900 तक।
कुमार सुरेश सिंह लिखते हैं, बिरसा का आंदोलन जब चरम पर था, तब
खूंटी के एटकेडीह, सैको, रकब में हुए युद्धों के बाद गया मुंडा तथा
बिरसाइतों को गिरफ्तार करने के लिए खूंटी का प्रधान कांस्टेबल सैको
पहुंचा। उसे वहां पता चला कि पांच जनवरी 1900 को आंदोलनकारियों की
एक बैठक गया मुंडा के घर पर होनी है। प्रधान कांस्टेबल ने दो
सिपाहियों तथा दो चैकीदारों को गया मुंडा के यहां भेजा। जब तक ये
गया मुंडा के गांव एटकेडीह पहुंचते, इसके पूर्व वहां बैठक संपन्न
हो चुकी थी। बैठक से उठकर 80 आंदोलनकारियों का दल गया मुंडा के
नेतृत्व में गांव के पूरब स्थित तजना नदी के तट पर पहुंचा। उन्हेंं
गुप्त सूचना मिल चुकी थी कि पुलिस दल उन्हेंं पकडऩे के लिए गांव आ
रहा है। पुलिस दल पहले एटकेडीह पहुंचा। वहां गांव की महिलाओं ने
गुप्त एवं निश्चित योजना के अनुसार पुलिस वालों को सच्ची सूचना दी
कि सभी तजना नदी की ओर चले गए हैं। पुलिस दल नदी की ओर चला गया। वे
सभी तत्पर थे। पुलिस दल को तजना नदी के किनारे आते हुए देखकर गया
मुंडा चिल्लाए-'सामरे हिजुलेना को मारगोए कोयेÓ (सांभर हिरन आ गए
हैं उनको मार गिराओ)। सशस्त्र आंदोलनकारियों को अपनी ओर आते देख
सिपाही दो दलों में विभक्त होकर भाग खड़े हुए। जयराम नामक सिपाही
तथा एक चौकीदार ने घने जंगल में चेष्टा की किंतु गया मुंडा के
पुत्र सामरे मुंडा ने जयराम पर तीर चला दिया। वह घायल होकर भागने
लगा किन्तु एक खेत में वह गिर गया। गया मुंडा ने उसे पकड़कर उसका
वध कर दिया। उसके बेटे तथा अन्य कई आन्दोलनकारियों ने सिपाहियेां
को भी मार-मार कर वहीं समाप्त कर दिया। बाकी बच निकले। घटना की
सूचना मिलने के बाद बड़ी सावधानी से प्रधान कांस्टेबल घटनास्थल पर
आकर सिपाहियों की लाश सैको ले गया और फिर इन लाशों को चक्कादार
रास्ते से रांची लाया गया।Ó
जब गया मुंडा अपने सहयोगियों के साथ घर लौटे तो गांव की महिलाओं
ने उत्साहपूर्वक आगवानी की। उनेक पांव पखारे। पुरुषों ने उत्साह के
वातावरण में शिकार गीत गाये। उनके मुंह से यह गीत फूट पड़ा-
हथियार हमारे हाथों में चमचमाते हैं।
हम एक पंक्ति में खड़े हैं।
हमारे बायें हाथ में धनुष है, और दायें में तीर
हमारे हाथों में हथियार चमचमाते हैं।
ओ बिरसा, हम एक पंक्ति में खड़े हैं।
बंदगांव में ठहरे रांची के डिप्टी कमिश्नर स्ट्रीटफील्ड को यह
सूचना मिली तो छह जनवरी 1900 को 11 बजे दिन में वह गया मुंडा के घर
एटकेडीह पहुंचा। उसने बरामदे में किसी भी व्यक्ति को नहीं पाया।
लेकिन घर के अंदर सभी थे, इसका आभास मिल रहा था। एक दारोगा ने
मुंडारी में आवाज देकर घर में से किसी को भी बाहर आने को कहा
किन्तु अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला। एक सिपाही ने अंदर प्रवेश
करने की चेष्टा की, किंतु तुरंत ही वह घर से बचाओ-बचाओ चिल्लाते
हुए बाहर निकल आया। घर के अंदर सभी स्वजन हथियार से लैस थे। डिप्टी
कमिश्नर ने हथियारबंद परिवार को आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन
उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ। गया मुंडा ने दहाड़ते हुए कहा, घर
उनका है और डिप्टी कमिश्नर को मेरे घर में प्रवेश करने का कोई
अधिकार नहीं है। गया मुंडा के साथ घर में महिलाएं भी थीं। बेेटे,
बेटियां और बहुएं थीं। इस कारण डिप्टी कमिश्नर बंदूक का प्रयोग
नहीं करना चाहता था। घर में घुसकर उन्हेंं पकडऩा भी आत्महत्या के
समान था। ऐसे में खबर मिली कि आस-पास के क्षेत्र में लगभग 100
क्रांतिकारी छिपे हुए हैं, जो गया की सहायता के लिए कभी भी धावा
बोल सकते हैं। डिप्टी कमिश्नर को एक तरकीब सूझी घर से बाहर निकालने
की। उसने घर के पीछे से घर में आग लगा दी। हवा बहुत तेज थी। घर
तेजी से जलने लगा। घर के लोग आग की आंच को देर तक बरदाश्त नहीं कर
सकते थे। उनके पास बाहर निकलने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था।
गया मुंडा सहित घर के लोग जल्दी-जल्दी बाहर निकले। गया के हाथ में
एक लंबी लाठी थी। उसका छोटा लड़का बलुवा तथा 14 साल का पोता रामू
धनुष और तीर लिए हुए था। दो पुत्रवधुओं में से एक के हाथ में डाली
तथा लेंबू के हाथों में लाठी, तलवार और टांगी थी। गया मुंडा नाच
रहा था और तलवार भांज रहा था। डिप्टी कमिश्नर को कुछ समझ नहीं आ
रहा था। किसी तरह डिप्टी कमिश्नर ने अपनी पिस्तौल से गया मुंडा की
दाहिनी बांह और कंधे को लक्ष्य कर गोली चला दी। गोली ठीक जगह लगी
और वह लडख़ड़ाकर संभलते हुए तलवार लेकर झपट पड़ा। डिप्टी कमिश्नर ने
फिर गोली चलाई लेकिन निशाना चूक गया। इसके बाद दोनों में हाथापाई
होने लगी। गया मुंडा ने डिप्टी कमिश्नर के बाए कंधे पर तलवार से
वार किया, लेकिन ठीक से नहीं लगी। बस खरोंच आई। दोनों लड़ते हुए
आखिर जमीन पर गिर गए। एक औरत डिप्टी कमिश्नर पर वार करने लगी। गया
मुंडा की पत्नी माकी मुंडा डिप्टी कमिश्नर को काटना चाहती थी। किसी
तरह पुलिस के जवानों ने दोनों को अलग किया। औरतें भी जमकर लड़ी, जब
तक उनका हथियार छीन नहीं लिया गया। ये वीरांगनाएं ऐसी थी कि अपना
बच्चा भी साथ लेकर लड़ रही थीं।
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