[ घटना प्रधान उपन्यासों का जो क्षेत्र देवकीनन्दन जी खत्री ने हिन्दी साहित्य में तय्यार किया उस क्षेत्र में आने वाले दूसरे सफल उपन्यासकार गोपालराम जी गहमरी हैं। पाठकों की अभिरुचि का ज्ञान देवकीनन्दन जी की रचनाओं की लोकप्रियता से स्पष्ट हो गया था। हिंदी के पाठक आँखें पसारे घटना प्रधान मनोरंजक उपन्यास साहित्य के लिये उतावले हुए बैठे थे । 'चन्द्रकान्ता' को कई-कई बार पढ़कर अब वह नई पुस्तकें प्राप्त करने की आशा में थे । तिलस्म और ऐयारी के अतिरिक्त कुछ नवीनता भी पाठक चाहते थे। ठीक इसी समय गहमरी जी अपने जासूसी उपन्यास लेकर हिन्दी पाठकों के सम्मुख आये | हिन्दी के पाठकों ने आपका हाथों हाथ स्वागत किया और लेखक को भरसक उत्साह प्रदान किया। लेखक ने बड़े परिश्रम और उत्साह से काम लेकर मौलिक तथा अनुवादों से पाठकों का मनोरंजन करने में कोई कसर उठा नहीं रखी । ]
जासूसी उपन्यास पूर्ण रूप से अँगरेजी साहित्य की देन हैं । देश की अराजकता को समाप्त करने में स्काटलैंड यार्ड के जासूसी विभाग ने जो चमत्कार पूर्ण कार्य किया उसका वर्णन इंग्लैंड के उपन्यासकारों ने चार चांद लगाकर किया और इस प्रकार एक ऐसे जासूसी साहित्य का निर्माण हुआ जिसमें घटना प्रधानता के साथ-साथ केवल कोरी चमत्कार-वृत्ति की ही प्रधानता नहीं रही, वरन् कुछ वास्तविक तथ्य भी सामने आये ।
उसका मानव जीवन से बहुत कुछ सम्बन्ध ठहरा। जासूसी विभाग की निर्भयता और बुद्धि चातुरी का ही इस साहित्य में विशेष रूप से दिग्दर्शन मिलता है । इंगलैंड की जनता हत्यारों और डाकुओं से परेशान थी। इसलिए वहाँ इस साहित्य का विशेष सम्मान हुआ और पाठकों के लिये यह अधिकाधिक हृदयग्राही बनता चला गया । इसी प्रकार के उपन्यास हिंदी में श्री गहमरी जी ने लिखे और उनमें निर्भीक जासूसी विभाग के कार्यकर्ताओं की मुक्त कंठ से रोचकता के साथ उन्होंने प्रशंसा की ।
अराजकता इस समय भारत में भी कम नहीं थी। जनता ने व्यवस्था की भावना में जब मनोरंजन की सामग्री प्राप्त की तो उन्होंने अपना ध्यान विशेष रूप से उपन्यास साहित्य की ओर लगा लिया । 'फ़िलिप प्रोपेनहम', 'शरलाक होम्स', 'एडगर बैलेस' आदि उपन्यासकारों ने जासूसी विषयों पर जैसी मनोरंजक रचनायें की थीं गहमरी जी ने भी उसी प्रणाली को अपनाया और हिंदी के उपन्यास भंडार को भरना प्रारम्भ कर दिया । जिस प्रकार अंगरेजी में 'ब्लेक सीरीज़', 'सिक्स पेन्स सीरीज़' और 'फ़ोर पेन्स सीरीज़' इत्यादि प्रकाशित हुई उसी प्रकार हिंदी में भी रचनायें प्रकाशित की जाने लगीं और उनका पाठकों ने बहुत अच्छा स्वागत किया । ह्वीलर के बुक स्टालों पर उनकी अच्छी मांग हुई और रेल के यात्रियों ने यात्रा समय को सफल बनाने के लिये उन पुस्तकों का सुन्दर उपयोग किया ।
गहमरी जी ने 'जासूस' नाम का एक मासिक पत्र निकाला जिसमें उनके धारावाहिक उपन्यास प्रकाशित हुए। हिंदी पाठकों में इस पत्र ने पर्याप्त ख्याति प्राप्त की और यह पत्र आज तक भी सफलता पूर्वक चलता चला जा रहा है। जैसा इस पत्र का नाम है इसमें वैसी ही जासूसी विषय की सामग्री रहती है और वह भी विशेष रूप से घटना प्रधानता को लिये हुए। चरित्र चित्रण की ओर इन उपन्यासों में भी ध्यान नहीं दिया गया। इस पत्र से उपन्यास पठन पाठन को प्रोत्साहन अवश्य मिला है और यही एक बहुत महत्वपूर्ण बात है क्योंकि उपन्यासों की मांग ने ही पाठकों में उच्चकोटि के उपन्यास पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न की और लेखकों में विश्व - साहित्य पर दृष्टि डालने की उमंग पैदा हुई । लेखकों ने उपन्यास के व्यापक क्षेत्र का विश्लेषण प्रारम्भ किया और नवीनतम दृष्टि कोणों को प्रकट करने के योग्य अपनी भाषा और अपने विचारों को बनाया ।
जिस घटना प्रधान उपन्यास क्षेत्र का निर्माण हिंदी जगत में देवकीनन्दन जी खत्री ने किया था उसमें सुन्दर जासूसी उपन्यासों की रचना करके गोपालराम जी गहमरी ने उपन्यास साहित्य को एक विशेष आकर्षक और क्रांतिकारी विचारधारा तथा साहित्य की देन प्रदान कीा ऐयारी उपन्यासों के अंतर्गत घटनाओं के जमघट में मार्ग- प्रदर्शन -कार्य नायक को करना होता था । कोई क्रम बद्धता उन घटनाओं में स्वतन्त्र रूप से नहीं मिलती । घटनायें स्वतन्त्र रूप से बिखरी हुई रहती हैं और उनका पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने का कोई स्वतन्त्र माध्यम नहीं होता । केवल नायक के ही सम्पर्क में आकर उन घटनाओं का कुछ ढांचा तय्यार होता है और यदि वह नायक एक क्षण के लिये भी पाठक की दृष्टि से ओझल हो जाये तो कथा एक भानमती का पिटारा बनकर पाठक को बोझिल सी प्रतीत होने लगती है । इस प्रकार के उपन्यासों में नायक का पल्ला पकड़ कर ही पाठक एक गहन बन की यात्रा करता है परन्तु जासूसी उपन्यासों में परिस्थिति इसके बिलकुल ही विपरीत है। जासूसी उपन्यासों की पटनायें क्रम बद्ध होती हैं। इनकी घटनाओं का पूर्वापर सम्बन्ध रहता है और बिना किसी क्रम के कोई घटना आगे नहीं बढ़ती । घटनायें सर्वदा कार्य कारण रूप में गुँथ कर प्रगति करती हैं, केवल कल्पना के आधार पर नहीं। इन उपन्यासों में मानव की भावनाओं को जाग्रत करने की अधिक शक्ति वर्तमान रहती है और निराशा, शोक, ताप इत्यादि भावनायें घटनाओं के क्रम में आकर स्वयं उद्दीप्त हो उठती हैं। जिस प्रकार 'चन्द्रकान्ता' को पढ़ने से केवल कपोल कल्पित कल्पना के अतिरिक्त पाठक के और कुछ हाथ नहीं लगता उस प्रकार का अभाव हमें जासूसी उपन्यासों के पढ़ने के पश्चात् नहीं होता। इन उपन्यासों में कोरी हवाई घोड़ों की ही उड़ान नहीं है वरन देश और काल की आवश्यकता की छाया भी सजीव रूप से मिलती है। यह उपन्यास एक प्रकार से अव्यवस्था के प्रति विद्रोह हैं और आतंक के विपरीत साहस की कसौटी ।
ऐयारी के उपन्यासों का क्षेत्र अपरिमित होता है और उनका कार्यकलाप भी प्रतिबन्धविहीन होता है। उनका क्षेत्र इतना व्यापक है कि जहां पर भी कल्पना की उड़ान जा सकती है वहीं पर ऐयारी प्रधान उपन्यास का नायक पहुँच सकता है। परन्तु जासूसी उपन्यास का क्षेत्र सीमित है। जासूसी उपन्यासों में भावुकता की अपेक्षा बुद्धि का व्यापक प्रभाव दिखाई देता है और यह उपन्यास तिलस्मी उपन्यासों की अपेक्षा मानव के कार्य कलापों के अधिक निकट है । मानव की शक्तियां सीमित हैं, परिमित हैं । इसलिये इन उपन्यासों का क्षेत्र भी सीमित और परमित हो जाता है जिनमें मानवी भावना और बुद्धिगम्य पात्रों का चित्रण किया गया है। जासूसी उपन्यासों के विषय शेखचिल्ली की कहानियां अथवा 'अलादीन के चिराग़' की गाथायें नहीं बन सकतीं। बुद्धि और विज्ञान के नवीनतम आविष्कारों का प्रयोग मात्र ही एक जासूसी उपन्यासकार कर सकता है। एक डाकू को बन्दी बनाने के लिए एक जासूस रेल, तार, फ़ोन, मोटर, हवाई जहाज़ इत्यादि का ही आश्रय लेकर सफल हो सकता है, जादू की बाँसरी बजाकर अथवा मुख में सर्वसिद्धिफल दबा कर नहीं । 'ओपिन सीसेम' कहने मात्र से उसके सम्मुख बड़े-बड़े खजानों के द्वार नहीं खुल सकते । 'सेना' शब्द मात्र उच्चारण करने से उसके · सम्मुख उसकी सहायता के लिये 'सेना' नहीं आ सकती। इस प्रकार हमने देखा कि जासूसी उपन्यास एक विशेष प्रगति के मार्ग होकर मानव के अधिक निकट आ गये और इसीलिये उनका सम्मान भी पाठकों ने विशेष साहस के साथ किया । देवकीनन्दन खत्री और गोपालराम जी गहमरी के उपन्यासों की तुलना करने में भी हमें उक्त विचारावली को पूर्ण रूप से ध्यान में रखना चाहिये ।
गहमरीजी के उपन्यासों की विशेषता
''श्री गहमरी' जी ने अपने उपन्यासों में अधिक पात्रों का जमाव न रखकर कुछ चुने हुए पात्रों को ही लिया है । आधुनिक समाज का भी चित्र उनके उपन्यासों में मिलता है और चरित्र चित्रण को भी एक दम भुला कर विशेषता चित्रण वास्तव में चरित्र चित्रण के लिये नहीं होता, यह तो होता है घटनाओं को बल देने के लिये और घटनाओं के महत्व को कम न होने देने के लिये । लेखक का विशेष बल घटना पर ही रहता है । गोपालराम जी 'गहमरी' के प्रायः सभी पात्र निर्भीकं, साहसी, चतुर और कुटिल होते हैं । चोर डाकुओं को तो चतुर रखना ही होता है और जासूसों को उनसे भी अधिक चतुर बनाये बिना लेखक का काम नहीं चल सकता । लेखक ने मानव के बल, चातुरी और बुद्धिमत्ता को पूर्ण रूप से निभाया है; मानव में दानवी अथवा दैवी शक्तियों की झांकी देखने का प्रयत्न नहीं किया । देवकीनन्दन जी खत्री के उपन्यासों की अपेक्षा यह उपन्यास हमारे अधिक निकट हैं और हमारे जीवन के साथ विशेष रूप से सम्बन्धित हैं । लेखक का प्रधान ध्येय घटना वैचित्र्य होते हुए भी उनकी रचनाओं में अनेकों स्थलों पर मानव की स्वाभाविक वृत्तियों का स्वाभाविक स्पष्टीकरण हो जाता है । तनिक तनिक सी सूचनाओं पर बड़े-बड़े रहस्यों का किस प्रकार उद्घाटन हो जाता है इसका व्यापक विवेचन हमें गहमरी जी के उपन्यासों में मिलता है। चोरी, जारी, खून, डकैती इत्यादि के रहस्यों की जासूस लोग किस प्रकार खोज करते हैं और किस प्रकार साधारण बातों से असाधारण रहस्यों को मालूम कर लेते हैं बस यही इन उपन्यासों के प्रधान विषय हैं । इस प्रकार के विषयों पर व्यापक और विस्तृत प्रकाश डालने में गहमरी जी पूर्ण रूप से सफल हुए हैं और लोक हित की भावना को लेते हुए आपका साहित्य केवल मनोरंजन की ही सामग्री बनकर नहीं रह गया है। उसकी उपयोगिता भी है । इस प्रकार हम उपन्यास क्षेत्र में गहमरी जी को निश्चित रूप से देवकीनन्दन खत्री जी से एक पर आगे बढ़ा हुआ पाते हैं ।
भाषा और शैली
गोपालराम जी गहमरी के उपन्यासों की भाषा उनके विषय के सर्वथा अनुकूल है। उनकी भाषा में वक्रता रहती है और चटपटेपन का प्रभाव नहीं पाया जाता। कहीं कहीं पर पूर्वी शब्दों का प्रयोग रहता है परन्तु शैली वह खटकने वाला प्रयोग नहीं है और मुहावरों की तो आपकी शैली में ऐसी भरमार रहती है कि कहीं कहीं पर उसमें बड़ी भारी बनावट खटकने वाली सी प्रतीत होने लगती है | आपकी लेखन शैली मनोरंजक है और विशेष रूप से जिस विषय को आप पकड़ते हैं उसका संचालन बहुत ही बुद्धिमत्ता से करते हैं । घटनाओं का तारतम्य इतना सुन्दर रहता है कि कहीं पर भी लड़ी टूटने की संभावना नहीं रहती। आपने अनेकों उपन्यास लिखे हैं । किसी विशेष उपन्यास का विशेष महत्व नहीं है इसलिए सभी उपन्यास मनोरंजन की दृष्टि से एक ही से महत्वपूर्ण हैं | पाठक इनके जिस उपन्यास को भी उठाकर पढ़ेगा ! उसके पढ़ने में उसे बराबर ही आनन्द लाभ होगा और मनोरंजन की पर्याप्त सामग्री भी मिलेगी। आपका लिखने का ढंग सब लेखकों से पृथक है और आपकी भाषा तथा शैली पर आपकी छाप रहती है ।
इस प्रकार हिन्दी साहित्य में जासूसी उपन्यासों के प्रवर्तक के रूप में हम गोपालराम जी गहमरी को मानते हैं और जिस दृष्टि कोण को लेकर आप उपन्यास साहित्य में आये उस दृष्टिकोण को आपने सफलता पूर्वक निभाया है। पाठकों में उपन्यास पढ़ने की रुचि पैदा करने वाले लेखकों में आपका स्थान बहुत ऊंचा है । यह ठीक है कि आपने 'चन्द्रकान्ता सन्तति' जैसी कोई विख्यात रचना हिंदी साहित्य को प्रदान नहीं की परन्तु आपका संपूर्ण साहित्य हिंदी साहित्य के एक बड़े भारी अभाव की पूर्ति है और के निश्चित रूप से हिंदी उपन्यास- साहित्य में दूसरा क़दम हम इसे निसंकोच भाव से कह सकते हैं। गोपालराम जी गहमरी उपन्यास साहित्य को कल्पना की उड़ानों से हटाकर वास्तविकता के क्षेत्र में ले आये ।
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हिन्दी के उपन्यासकार
प्रकाशक- भारती भाषा भवन, दिल्ली, अक्टूबर 1951
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