अंबेडकर ने हाशिए की वैचारिकी निर्मित की

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संजय कृष्ण : काशी हिंदू विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चौथीराम यादव ने मंगलवार को जागरण से विशेष बातचीत में कहा कि दलित साहित्य में भी अंतर्विरोध उभर रहे हैं। यह ठीक भी है। जैसे डा. धर्मवीर खुद को अंबेडकर से आगे बताते हैं। वे अंबेडकर को खारिज करते हैं। उन्हें अंबेडकर का बौद्ध होना अखरता है। वे दलित के लिए आजीवक धर्म की वकालत करते हैं। लेकिन दलित बुद्ध-अंबेडकर के प्रति वही भाव रखते हैं। धर्मवीर के लिए बौद्ध धर्म क्षत्रिय धर्म लगता है। बुद्धिज्म में वह स्पेस है, जहां दलितों के लिए एक जगह है। बुद्धिज्म के तीन सूत्र हैं। समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व। यही तीन सूत्र फ्रेंच रेवोल्यूशन के भी हैं। जनता के हित में जो भी बात होगी, सामाजिक क्रांति की भी जब बात होगी तो यही तीन सूत्र होंगे। ये तीनों सूत्र परंपरा और इतिहास से अंबेडकर ने लिए।
बुद्ध को पहला गुरु माना अंबेडकर ने
अंबेडकर ने जो देखा-भोगा था, उसे दूर करने के लिए बुद्ध के पास गए। बुद्ध को पहला गुरु माना, क्योंकि बुद्ध तार्किक बात करते हैं। बौद्ध चिंतक अश्वघोष, नागार्जुन, दिग्नाग..जातिवाद पर तार्किक प्रहार करते हैं। ये तीनों ब्राह्मण थे, पर अपने समय के बेहद प्रगतिशील। इसके बाद दूसरे गुरु हुए कबीर। कबीर का समय बुद्ध से भी जटिल था, क्योंकि इस समय हिंदू कट्टरपंथी एवं मुस्लिम कट्टरपंथी दोनों समाज पर हावी थे। कबीर दोनों को बता रहे थे, अरे इन दोऊ राह न पाई...। कबीर ने भी जातिवाद पर प्रहार किया। तीसरे गुरु थे, ज्योतिबा फुले। आधुनिक काल में वही काम किया जो भक्ति काल में कबीर ने। ज्योतिबा ने एक काम और किया, वह है शिक्षा। दलितों को शिक्षा से जोड़ा। इसी काम को अंबेडकर ने आगे बढ़ाया।
माक्र्स से भी प्रभावित थे
अंबेडकर माक्र्स से भी प्रभावित थे। उन्होंने डांगे के साथ काम किया था। दोनों में इस बात को लेकर मतभेद था कि अंबेडकर मानते थे कि पूंजीवाद के जाति और वर्ग दोनों शत्रु हैं। डांगे मानते थे कि वर्ग खत्म हो जाएगा तो जाति स्वयं खत्म हो जाएगी। पर, अंबेडकर की सोच यह थी कि अमीर-गरीब यदि दो वर्ग हो जाएं तो अमीर दलित को अपमान सहना ही पड़ेगा, जबकि गरीब ब्राह्मण भी सम्मान पाएगा। सामाजिक लड़ाई के बिना वर्ग की लड़ाई का कोई माने नहीं है। अंबेडकर को बाइपास करके माक्र्सवादी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते।

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