शहीद बुधु भगत का उपेक्षित गांव

सिलागाई अमर शहीद बुधु भगत का गांव हैं। गांव जाने के दो रास्ते हैं। एक चान्हो होते हुए। चान्हो से गांव की दूरी दस किमी है, लेकिन रास्ता बहुत खराब है। यह गांव चान्हो प्रखंड में ही पड़ता है। एक दूसरा रास्ता बेड़ो से तुको और यहां से एक रास्ता सिलागाई की ओर जाता है। यह रास्ता ठीक है और 25 किमी दूरी तय कर इस गांव में पहुंच सकते हैं। तुको से सड़क सिलागाई जाती है, वह कोलतार की है। थोड़ी संकरी भी। 
वीर बुधु भगत कोई सामान्य योद्धा नहीं थे। इस सुदूर गांव से उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध तब छेड़ा था, जब कहीं तथाकथित पहली स्वतंत्रता आंदोलन की 1857 की क्रांति बहुत दूर थी। यानी 1831-1832 में। जब इस गांव में जाएंगे और भर रास्ते आस-पास का प्राकृतिक नजारा आपकी आंखों को सुकून बख्शता है तो आपके दिमाग में यह जरूर बात आएगी कि इतना दूर...इस सुदूर गांव से 180 साल पहले क्रांति की एक ज्वाला उठी थी, जिसे इतिहास में लरका विद्रोह के नाम से दर्ज किया गया।

यह गांव आज भी गांव की तरह है। सड़कें जरूर बन गई हैं। स्कूल जो आठवीं तक था, दसवीं तक हो गया है। स्कूल के पास ही एक पार्क बन गया और यहीं पर हर साल जयंती व पुण्यतिथि पर मेला लगता है। बुधु भगत की आठवीं पीढ़ी की हुलस देवी कहती हैं गांव में करीब सात हजार की आबादी है। उरांव, मुस्लिम, महतो, ग्वाल आदि जातियां यहां रहती हैं। इसी परिवार की अंजू देवी पूर्व मुखिया रह चुकी हैं। कहती हैं, अब भी परिवार के लोग खेती-बारी पर ही निर्भर हैं। परिवार बड़ा हो गया है। घर आज भी मिट्टी के ही हैं। कल्याण विभाग ने जरूर आंगन में सोलर ऊर्जा का एक पोल लगा दिया है, जिससे रात का अंधेरा छंटता है।

परिवार के वरिष्ठ सदस्य रामदेनी भगत कहते हैं कि हम आठवीं पीढ़ी के हैं और 18 परिवार हैं। इस गांव को शहीद गांव का दर्जा दिया गया है, लेकिन सुविधा और विकास के नाम पर केवल घोषणाएं ही हुई हैं। गांव के बाहर उनके नाम पर पार्क है, लेकिन उसकी हालत भी ठीक नहीं। पार्क के ऊपर एक जंगल है। एक पाहन हमें उस जंगल में ले जाते हैं और कुछ छोटे-बड़े पत्थरों का एक टीला है और उसमें एक बड़ा साल होल है, जिसमें पानी था। पाहन बताते हैं कि यहां हमेशा पानी रहता है। बुधु भगत यहीं आकर बैठते थे। पाहन यह भी कहते हैं पहले यहां 24 घंटे पानी निकलता था, लेकिन अब कभी-कभी। पानी कहां से आता है, किसी को पता नहीं। गांव के लोग इसे वीर पानी कहते हैं। इस पहाड़ पर एक शेड बना है। और, अक्सर इस ऊंचे जंगल में शेड के पास जुआ खेलते हुए कुछ नवयुवक मिल जाएंगे। गांव में कई जातियां है। उरांव की बहुलता है। यहां गांव में उरांव के चार श्मशान हैं और चार पाहन भी।

सिलागाई की खास बात यह है कि इसे शहीद गांव का दर्जा दिया गया, बाकी सुविधा कुछ नहीं। यहां एक आंगनबाड़ी केंद्र है, जिसे आदर्श बनाने की कोशिश की गई है। इसकी दीवार पर एक सूचना है-मद-शहीद ग्राम विकास योजना अन्तर्गत 2017-18। योजना का नाम : चान्हो प्रखंड के शिलागांई में आंगनबाड़ी केंद्र के समीप शौचालय, चारदीवारी स्टैचू एवं सुंदरीकरण कार्य। प्राक्कलित राशि-7,19, 420। शौचालय का दरवाजा टूट चुका है। स्टैचू का बेस भी टूट चुका है। ले-देके एक चारदीवारी बची है। आंगनबाड़ी केंद्र के सामने ही चार जलमीनार बने हैं, जहां पानी ही नहीं आता। वीर बुधु परिवार की सदस्य व पूर्व मुखिया अंजू देवी कहती हैं इसे शहीद गांव का दर्जा दिया गया, लेकिन सुविधा कुछ नहीं। आंगनबाड़ी केंद्र भी केवल नाम का है। यहां सात लाख का काम हुआ, लेकिन देखिए। लगता है कि इसमें सात लाख खर्च हुआ है। गांव की की कहानी आप सुन लिए। अब वीर बुधु भगत की कहानी भी जानिए।


वीर बुधु भगत का जन्म रांची जिले के सिलागाई गांव में 17 फरवरी, 1792 ई. में हुआ था और 14 फरवरी, सन् 1832 ई. में ये शहीद हो गए। यानी फरवरी में ही जन्म और फरवरी में ही शहीद। डॉ महेश भगत एक दंतकथा बताते हैं कि जब अंग्रेजों से जब वीर बुधु युद्ध कर रहे थे तो उनका तीर उनके आंगन में गिरा व सिर घर में। धड़ भी गांव के बाहर एक टुंगरी पर। इसलिए, जहां सिर गिरा, वहां पिंड बनाकर आज भी पूजा होती है। वीर बुधु भगत 1831-1832 के 'लरका विद्रोहÓ के नायक रहे। बुधु बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेजी सेना की क्रूरता देख रहे थे। तैयार फसल जमींदार ले जाते और गांव के गरीब भूख रह जाते। बालक बुधु भगत कोयल नदी के किनारे बैठ इस क्रूरता के निजात के बारे में सोचते रहते। फिर तीर-तलवार चलाने में निपुणता प्राप्त की और फिर युद्ध छेड़ दिया। अपने दल को गुरिल्ला युद्ध में दक्ष बनाया। इसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। अंतत: अंग्रेज सरकार ने बुधु भगत को पकडऩे के लिए कैप्टन इंपे को भेजा। 14 फरवरी 1832 ई. को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने  घेर लिया। कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। अंतत: बुधु भगत अपने सैकड़ों साथियों के साथ शहीद हो गए। अब गांव में जयंती व शहीद दिवस पर मेला लगता है। नेता जाते हैं, घोषणा करते हैं। इसी तरह की एक घोषणा पिछले साल सीएम ने किया था कि उनके पैतृक घर के फर्श पर टाइल्स बिछवा देंगे। घर वालों ने कहा, साहेब, भला मिट्टी के घर में टाइल्स कहां शोभा देगी। पहले घर तो पक्का का बनवा दीजिए। परिवार के सदस्य साल भर से इसका इंतजार कर रहे हैं। हां, विकास के नाम पर गांव की सड़क जरूर पक्की हो गई है। बिजली आती-जाती रहती है। 

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