बैलगाड़ी से निकली थी पहली शोभायात्रा

रांची में सरहुल की पहली शोभायात्रा में बैलगाड़ी भी शामिल थी। 1961 में पहली बार सरहुल पर शोभायात्रा निकाली गई थी। करीब सौ लोग पहली बार इस शोभायात्रा में शामिल हुए थे। करम टोली से निकलकर सिरमटोली तक यह शोभायात्रा निकली थी। लोग मांदर-ढोल बजाते-नाचते गए थे। इसके बाद करम टोली का मौजा हातमा पड़ता है, इसलिए 1964 में हातमा से निकलने लगी।   

सरना स्थल बचाने की कोशिश
करम टोली से शोभायात्रा निकालने के पीछे एक रोचक इतिहास है। इसके पहले लोग सरहुल गांव-मौजा में ही मनाते आ रहे थे। सिरमटोली में सरना स्थल है। 1961 में सिरम टोली सरना स्थल की जमीन को गांव के चमरा पाहन का बेटा मोगो हंस और पुजार मंगल पाहन ने रामगढ़ के एक मोटर गैराज कारोबारी सरदार के हाथों बेच दिया और सरदारजी ने उस जमीन की रजिस्ट्री कोलकाता में करा लिया। इसके बाद उन्होंने सरना स्थल पर घेराबंदी करने का प्रयास किया ताकि वहां एक बड़े गैराज का निर्माण हो सके। इसके लिए सरना स्थल पर निर्माण सामग्री गिरा कर घेराबंदी करने लगे। उसी दौरान सिरम टोली गांव के सीबा बाड़ा, जो वन विभाग के कर्मचारी थे, ड्यूटी जाने के लिए घर से बाहर निकले और उन्होंने सरदारजी को अपना सामान गिराकर घेराबंदी करते देखा तो वे तुरंत घर वापस लौट आए और गांववासियों को सूचना दी तब ग्रामीणों ने एकजुट होकर सरदारजी का विरोध किया। इसके बाद सरदारजी ने सिरम टोली के सिवा बाड़ा, बिजला तिर्की और बोलो कुजूर समेत कई अन्य के खिलाफ चुटिया थाने में प्राथमिकी दर्ज कर दी। चुटिया थाने ने कार्रवाई करते हुए तीनों को जेल भेज दिया। इससे गांव वाले आक्रोशित हो गए।  सरदारजी ने गांव वालों के आक्रोश से बचाने के लिए मंगल पाहन को पंजाब भेज दिया।


बैठक में लिया गया निर्णय
इधर, सिरम टोली के लोगों ने अपने सरना स्थल जमीन को बचाने के लिए करम टोली के लोगों से संपर्क किया। तब करम टोली के लोगों ने गांव में बैठक की और इसमें निर्णय लिया गया कि इस मामले में आदिवासी छात्रावास के छात्रों को भी शामिल किया जाए उस समय आदिवासी छात्रावास में करमचंद भगत रहते थे। वे रांची कालेज के छात्र थे और उसी वर्ष 1961 के लिए रांची कालेज के छात्रसंघ के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। उसी साल उनका विवाह करमटोली निवासी जनसंपर्क अधिकारी रामनारायण खलखो की पुत्री के साथ हुआ था। करम टोली के लोगों के आमंत्रण पर करमचंद भगत आदिवासी छात्रावास के छात्रों के साथ बैठक में शामिल हुए और इसमें निर्णय लिया गया कि करम टोली से एक जुलूस के साथ सिरमटोली जाकर वहां शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया जाएगा। इसके लिए सरहुल पूजा का दिन निर्धारित किया गया। सरना समाज के जागा उरांव, महादेव उरांव, सुशील टोप्पो, फागू उरांव  ने मिलजुल कर प्रभावशाली लोगों से समर्थन की अपील की गई इसकी जिम्मेदारी छात्र नेता करमचंद भगत को दी गई। उन्होंने छात्रों को संगठित किया एवं जुलूस को प्रभावी बनाने के लिए छात्रों एवं समाज के प्रबुद्ध जनों को एकजुट करने का प्रयास किया। इसी बीच देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर कार्तिक उरांव लंदन से वापस लौटे थे और उनकी नियुक्ति एचईसी में डिप्टी चीफ इंजीनियर के पद पर हुई थी। करमचंद के नेतृत्व में छात्रों ने कार्तिक उरांव को भी जुलूस में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।


इस तरह निकली पहली शोभायात्रा
 इस प्रकार करमचंद भगत के नेतृत्व में करमटोली के शशि भूषण मानकी के आवास के पास स्थित सखुआ के पेड़ के पास लोग एकत्रित हुए। यहां सरहुल पूजा संपन्न करने के बाद कार्तिक उरांव को बैलगाड़ी पर बैठाया गया और यहां से जुलूस निकली। करमचंद भगत के नेतृत्व में आदिवासी छात्रावास के छात्रों की टोली मांदर की ताल पर नाचते गाते हुए करमटोली के प्रबुद्ध लोगों के करीब 100 लोगों के साथ करम टोली से सिरम टोली के सरना स्थल तक पहुंची। पहले तीन सालों तक यह शोभायात्रा करम टोली के रहने वाले सहायक उत्पाद आयुक्त शशि भूषण मानकी के आवास के पास स्थित साल वृक्ष से लेकर सिरम टोली सरना स्थल तक निकाली गई थी। सामाजिक परंपरा के अनुसार सरहुल की पूजा गांव के सरना स्थल में की जाती है और करम टोली गांव का मुख्य सरना स्थल रांची कालेज के पीछे हातमा में  स्थित है। इसलिए सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सरहुल की पूजा का आयोजन हातमा सरना स्थल में ही किया जाना चाहिए। इस प्रकार वर्ष 1964 से इस पूजा का आयोजन हातमा सरना स्थल में किया जाने लगा और वहीं से शोभा यात्रा निकाली जाने लगी।  



1967 में लिया विशाल रूप
1967 में सरहुल की शोभायात्रा ने विशाल रूप ले लिया। वर्ष 1967 में करमचंद भगत बेड़ो से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुुंच गए और कार्तिक उरांव भी उसी वर्ष लोहरदगा से लोकसभा में पहुंच गए। अब जब सरहुल का पर्व आया तो बड़े जोर-शोर से तैयारी होने लगी। शोभायात्रा को लेकर आसपास के गांवों-जिलों में भी इसकी चर्चा होने लगी और लोग इसमें शामिल होने के लिए आने लगे। इन दोनों नेताओं के कारण तब जिला प्रशासन ने शोभायात्रा के लिए पांच जीप मुहैया कराई गई। मांदर-ढोल की संख्या भी बढऩे लगी। पारंपरिक वेशभूषा में लोग शामिल होने लगे और आज लाखों की संख्या में लोग इस शोभायात्रा में शामिल होते हैं।

डा. रविन्द्र नाथ भगत
प्रोफेसर प्रबंधन विभाग
बीआईटी मेसरा
एवं पूर्व कुलपति विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग

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