झारखंड में भी पगड़ी बदल कर हीरा लूटा गया था

भारत में संधि के अन्तर्गत पगड़ी या मुकुट बदलने की परंपरा रही है। इसी परंपरा के अन्तर्गत कोहीनूर हीरा भारत से बाहर चला गया। जो आज इंग्लैड की महारानी के मुकुट पर लगा है।

पगड़ी बदल कर हीरा प्राप्त करने का वाक्या झारखंड में भी हुआ था जिसके बारे में कम लोगों को ही मालूम है। मजेदार बात है कि दोनों वाक्ये में और भी समानतायें हैं। पहले कोहीनूर की बात कर लेते हैं। नादिर शाह ने जब दिल्ली पर हमला किया तो उस समय तक मुगल शासन कमजोर पड़ चुका था। मुगल बादषाह मुहम्मद शाह को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। काफी हीरे जवाहरात लूट लिए गए। खून की नदी बह गई। अंत में मजबूरन मुहम्मद शाह ने संधि का प्रस्ताव रखा। संधि के शर्तो में यह बात भी थी कि अगर जरूरत पड़ी तो नादिर शाह, मराठा शक्तियों के खिलाफ मुहम्मद शाह को सहायता प्रदान करेगा। इस बीच नादिर शाह को पता चला कि सबसे कीमती कोहीनूर हीरा मुहम्मद शाह ने अपनी पगड़ी में छिपा रखा है। नादिर शाह ने पगड़ी बदलने की रस्म पर जोर डाला। पगड़िया बदली गई। इस तरह कोहीनूर हीरा नादिर के हाथ में पड़ गया जो अन्ततः कई हाथों से होते हुए इंग्लैड के महारानी के पास पहुँच गया।

अब झारखंड की बात पर आते हैं। 12 अगस्त 1765 ई॰ को मुगल बादषाह शाह आलम द्वितीय से ब्रिटिष ईस्ट इंडिया कम्पनी को बंगाल, बिहार व उ़ड़ीसा की दीवानी (राजस्व प्रसाशन) मिली। इसी के साथ अंग्रेजों को झारखण्ड में पांव जमाने का मौका मिला। तब तक पलामू, झारखंड का राजा करीब-करीब स्वतंत्र था।

28 जनवरी 1771 ई॰ में कैप्टन कैमक झारखंड प्रवेष करता है। पलामू के चेरो राजा चित्रजीत राय पलामू के नये किला को परित्याग कर पुराने किले में शरण लेते हैं। पुराने पलामू किला को अंग्रेज सेना घेर लेती है। भयंकर गोलाबारी होती है। चेरो राजा चित्रजीत राय पराजित होते हैं तथा अपने दीवान जयनाथ सिंह के साथ रामगढ़ भाग जाते हैं।

राजगद्दी का एक अन्य दावेदार गोपाल राय अंग्रेजों के साथ संधि कर लेता है। 1 जुलाई 1771 को गोपाल राय को पलामू का राजा घोषित किया जाता है। इसके बाद की घटना के बारे में ब्रैडले-बर्ट अपनी किताब “छोटानागपुर, ए लिटल नोन प्राविन्स आफ दी एमपायर ;(Chotanagpur, a little known Province of the empire) के 17वें पृष्ठ पर लिखते है” कैप्टन कैमक अपनी सेना के साथ पलामू के राजा से मिलते हैं। राजा अपने को अंग्रेज सरकार के अधीनस्थ मानते हुए मराठा शक्तियों के विरूद्ध अंग्रेजों का साथ देने के वचन के साथ तीन हजार (3000) रूपया नजराना देता है। कैमक कम्पनी के लिए अपना काम पूरा करने के बाद अपने लिए भी कुछ प्राप्त करना चाहता है। राजा के पगड़ी में जड़े हीरों को देखकर वह दोस्ती के प्रतीक के तौर पर पगड़ी बदलने की रस्म की बात करता है। राजा न कहने की स्थिति में नहीं था। अन्ततः ये हीरे कैप्टन कैमक के हस्तगत हो जाता है।”
असीत कुमार



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